Nov 14, 2024
भावार्थ : संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है।
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भावार्थ : अत्यधिक ऐश्वर्यवान तथा बुरे व्यसनों मे लिप्त व्यक्ति रस्सियों से बंधे हुए व्यक्ति के समान होते हैं और अन्ततः उनका भाग्य उनको प्रताडित कर अत्यन्त कष्ट देता है।
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भावार्थ : मदिरा पीने से उसका दुष्प्रभाव कण्ठ पर पडता है और तंबाकू खाने से मन पर प्रभाव पड़ता है। परन्तु संपत्तिवान होने का नशा ना केवल उनके संपूर्ण शरीर पर बल्कि स्त्रियों और संतान के चेहरों पर भी देखा जा सकता है।
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भावार्थ : भोग करने से कभी भी कामवासना शान्त नहीं होती है, परन्तु जिस प्रकार हवनकुण्ड में जलती हुई अग्नि में घी आदि की आहुति देने से अग्नि और भी प्रज्ज्वलित हो जाती है वैसे ही कामवासना भी और अधिक भडक उठती है।
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भावार्थ : मनुष्य का कर्तव्य है कि यथा सम्भव किसी को पीडा दे कर उसका हृदय न दुखाये, भले ही स्वयं दुःख उठा ले। किसी के प्रति अकारण द्वेष-भाव न रखे और कोई कटु बात कह कर किसी का मन उद्विग्न न करे।
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भावार्थ : निम्न वर्ग के लोग केवल पैसे में रुचि रखते हैं, और ऐसे लोग सम्मान की परवाह नहीं करते हैं। मध्यम वर्ग धन और सम्मान दोनों चाहता है, और केवल उच्च वर्ग की गरिमा महत्वपूर्ण है। सम्मान पैसे से ज्यादा कीमती है।
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भावार्थ : जिस प्रकार लोग नदी पार करने के बाद नाव को भूल जाते हैं, उसी तरह लोग अपना काम पूरा होने तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं और काम पूरा होने के बाद दूसरे को भूल जाते हैं।
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भावार्थ : यह क्षणभुंगर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है।
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भावार्थ : मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्लभ है।
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