पीयूष मिश्रा बेहतरीन एक्टर, शानदार सिंगर, डायरेक्टर और ऐसे शायर हैं जिन्होंने आम जन की भावनाओं को अल्फाज दिए हैं।
अजीब दस्तूर है मोहब्बत का, रुठ कोई जाता है, टूट कोई जाता है।
इलाइची के दानों सा मुकद्दर है अपना, महक उतनी ही बिखरी पीसे गए जितना।
हल्की-फुल्की सी है जिंदगी, बोझ तो केवल ख्वाहिशों का है।
शुक्र करो कि हम दर्द सहते हैं, लिखते नहीं, वरना कागजों पर लफ्जों के जनाजे उठते।
कैसे करें हम खुद को तेरे प्यार के काबिल, जब हम आदतें बदलते हैं, तुम शर्तें बदल देती हो।
औकात नहीं थी जमाने में जो मेरी कीमत लगा सके, कमबख्त इश्क में क्या गिरे, मुफ्त में नीलाम हो गए।
आज मैंने फिर जज्बात भेजे, आज तुमने फिर अल्फाज ही समझे।
ख्वाहिशों को जेब में रखकर निकला कीजिए, जनाब, खर्चा बहुत होता है मंजिलों को पाने में।
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