Apr 22, 2024

'वो अफसाना जिसे अंजाम तक..', सुहानी हवा के झोंके से हैं साहिर लुधियनवी के ये शेर

Suneet Singh

रोना आया..

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया,बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया।

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खूबसूरत मोड़ देकर..

वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।

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निभा तो दी..

अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं,तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी।

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नजर

ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है,क्यूं देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम।

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देंगे वही..

हम ग़म-ज़दा हैं लाएं कहां से ख़ुशी के गीत,देंगे वही जो पाएंगे इस ज़िंदगी से हम।

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गुजरे जिधर से हम..

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके,कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम।

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इक धुंध से..

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है,इक धुंद से आना है इक धुंद में जाना है।

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इल्जाम

वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया है,इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा।

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वही आंसू, वही गम..

तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं,वही आंसू वही आहें वही ग़म है जिधर जाएं।

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