Apr 19, 2024

'चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें..', किसी और ही दुनिया में ले जाते हैं साहिर के ये शेर

Suneet Singh

दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ, याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ।

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ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने,कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं।

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हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा,जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा।

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हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया,करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें।

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वफ़ा-शिआर कई हैं कोई हसीं भी तो हो,चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें।

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किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे,हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके।

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फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला, देखिए आप ने फिर प्यार से देखा मुझ को।

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तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को,बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने।

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अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है,ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ।

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