Apr 21, 2024

सफलता का स्वाद चखना है तो याद कर लें संस्कृत के ये श्लोक, मिलेगी मंजिल

Suneet Singh

संस्कृत

संस्कृत इस सृष्टि की सबसे पुरानी भाषा मानी जाती है। हमारे वेद पुरारण भी इसी भाषा में हैं।

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संस्कृत के श्लोक

संस्कृत के तमाम श्लोकों में सफल जीवन के मूल मंत्र भी छिपे हैं। पढ़ें संस्कृत के कुछ श्लोक जो दिला सकते हैं सफलता।

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श्लोक

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥

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अर्थ

इस श्लोक में बताया गया है कि सफलता कभी भी आसान रास्तों पर चल कर नहीं मिलती है। इसलिए उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को पाने की राह चलना शुरू करो। रास्ते कठिन हैं, कई बार ये अत्यन्त दुर्गम भी होंगे। विद्वानों का कहना है कि सफलता प्राप्ति कठिन राहों पर चलकर ही होती है।

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श्लोक

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।

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अर्थ

सपने देखने से नहीं बल्कि मेहनत करने से सफलता मिलती है। श्लोक में कहा गया है कि सिर्फ इच्छा करना ही आपको सफलता नहीं दिलाता, बल्कि इसके लिए मेहनत करनी पड़ती है। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे कोई हिरण सोये हुए शेर के मुंह में स्वयं नहीं आता, उसके शिकार के लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

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श्लोक

काव्य-शास्त्र-विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥

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अर्थ

इस श्लोक में बुद्धिमान और मूर्ख लोगों के बीच का फर्क बताया गया है। समझदार लोग जहां अपना समय काव्य और शास्त्र का विनोद करने में बिताते हैं, वहीं मूर्खों का समय व्यसन, नींद व कलह में बीतता है।

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श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

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अर्थ

भगवान कृष्ण यहां अर्जुन को कर्म पर ध्यान देने को कह रहे हैं। वह कहते हैं - धनंजय! तू आसक्तियों का त्याग कर दे, सफलता हो या विफलता - इनमें समान भाव रखो और इसी तटस्थ भाव से अपने कर्म करो। इसी समता को ही योग कहते हैं।

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