Dec 4, 2022
By: लवीना शर्माप्याज-लहसुन सब्जियों की ही किस्म है लेकिन फिर भी पूजा-पाठ के भोग में इसका प्रयोग नहीं किया जाता। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है।
समुद्र मंथन से जब अमृत निकला था तो अमृत पाने की लालसा में देवताओं और राक्षसों में छीना-झपटी शुरू हो गई।
समुद्र मंथन से निकले अमृत को देवताओं को पिलाने के उद्देश्य से श्री हरि विष्णु ने लिया मोहिनी रूप। विष्णु जी की इस चाल को एक राक्षस समझ गया और वो अमृत का पान करने के लिए देवताओं की लाइन में आकर बैठ गया।
भगवान विष्णु ने उस राक्षस को देवता समझकर अमृत की कुछ बूंदे दे दीं लेकिन तभी उन्हें सूर्य और चंद्रमा ने बताया कि ये राक्षस है। भगवान विष्णु ने तुरंत उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया।
अमृत राक्षस के मुख में चला गया था। सिर कटने से खून और अमृत की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं। कहते हैं उससे ही लहसुन और प्यार की उत्पत्ति हुई थी।
जिस राक्षस का सिर और धड़ भगवान विष्णु ने काटा था, उसका सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के रूप में जाना जाने लगा।
चूंकि ये दोनों सब्जियां राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज गंध है और ये अपवित्र हैं। इसलिए इन्हें कभी भी भगवान के भोग में इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
वेद-शास्त्रों के अनुसार लहसुन और प्याज तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है। माना जाता है कि इनका सेवन करने से व्यक्ति को अधिक गुस्सा, अंहकार, उत्तेजना, विलासिता का अनुभव होता है।
सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक भोजन में शांति और संयम जैसे गुण होते हैं। राजसिक भोजन में जुनून और खुशी तो तामसिक भोजन में अंहकार, क्रोध, जुनून और विनाश जैसे गुण होते हैं।
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