Aug 8, 2023
वैसे किसी भी पैसेंजर प्लेन का कमांडर पायलट होता है। लेकिन एक ऐसा शख्स है जिसकी परमिशन के बिना पायलट किसी भी हालत में फ्लाइट टेक ऑफ नहीं करता है।
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असल में पायलट को जब तक इस बात की मूंजरी नहीं मिलती है कि अब फ्लाइट बैलेंस हो चुकी है, तब तक वह प्लेन नहीं उड़ा सकता है।
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असल में फ्लाइट इंजीनियर हेड का रोल बहुत अहम होता है। क्योंकि इसका काम यात्रियों के बैठने के बाद प्लेन का बैलेंस चेक करना होता है।
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असल में जब विमान में ईंधन भरा जाता है, तो उसके अनुसार यात्रियों के बैठने का प्रबंध होता है। इसके अलावा लगेज भी उसी अनुसार रखे जाते हैं। यह तीनों मिलकर फ्लाइट का बैलेंस बनाते हैं।
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इसलिए पायलट को किसी भी हालत में बैलेंस ओके के बिना विमान उड़ाने की अनुमति नहीं होती है। और इसके लिए उसे फ्लाइट इंजीनियर की मंजूरी का इंतजार करना पड़ता है।
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फ्लाइट इंजीनियर के पास अधिकार इस तरह का है कि वह किसी भी पैसेंजर को सीट बदलने को कह सकता है। और अगर पैसेंजर मानता नहीं है तो उसे फ्लाइट से उतारा भी जा सकता है।
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पैसेंजर, तेल और लगेज का बैलेंस देखना फ्लाइट इंजीनियर का काम होता है। और उसके आगे पायलट भी मजबूर होता है।
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जब फ्लाइट इंजीनियर हर तरफ से संतुष्ट हो जाता है। तभी वह टेक ऑफ के लिए ओके करता है। और उसके बाद ही पायलट फ्लाइट उड़ाता है।
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