रवि वैश्य
Jan 24, 2023
1958 में माओत्सेतुंग ने ये मुहिम चलवाई थी कि जिसमें 4 जीव-जंतुओं को मारने का फैसला हुआ- चूहे, मच्छर, मक्खियां और गौरैया
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माओत्सेतुंग का मानना था कि ये चिड़िया फसल के दाने खा जाती है जिससे काफी नुकसान हो रहा है जिससे गौरेया को मारने की मुहिम ही चलवा दी
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गौरैयों (Sparrows killing) को मारने पर इनाम घोषित था, यानी जो जितनी गौरेया मारेगा उसे उतना ही इनाम मिलेगा
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गौरैया जहां भी वे बैठी दिखें, चीनी जनता ड्रम, टिन, थालियां बजाते हुए उनकी तरफ दौड़ पड़ती
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बर्तनों का शोर करते हुए लोग गौरेया के पीछे लगातार भागते थे, गौरेया जल्दी ही थककर गिर जाती थी और चीनी उन्हें मार डालते थे
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गौरैया का वंश आगे ना बढ़े इसके लिए लोग उनके घोंसले खोजकर उनके अंडे फोड़ देते थे या चिड़िया के बच्चों को जमीन पर पटककर उनकी जान लेते थे
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गौरैया को अनाज खाने वाला कहकर मार दिया गया था लेकिन वो टिड्डियों और कीड़ों को खाकर फसलों की रक्षा करती थीं, ये बात चीन को बाद में समझ में आई
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चीन में 1960 में फसल बहुत कम आई क्योंकि ज्यादातर फसल पर टिड्डियां और कीड़े लग चुकी थे, क्योंकि टिड्डिओं और कीड़ों को गौरेया खा लेती थीं, लेकिन गौरेयों ही मार दी गईं थीं
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गौरैया न होने के कारण टिड्डियों और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले दूसरे कीड़ों की तादाद तेजी से बढ़ चुकी थी जिससे अनाज के उत्पादन में भारी गिरावट आ गई
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पैदावार लगातार घटती गई और यहां तक कि इस वजह से चीन में भयंकर अकाल पड़ा, बताते हैं इस दौरान 2 करोड़ से भी ज्यादा चीनी लोग मारे गए थे
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