Dec 6, 2024
आपने देखा होगा कि गैस जलाने पर स्टोव से नीले रंग की आग निकलती है। वहीं, चूल्हा जलाने पर आग का रंग पीला हो जाता है। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है ? आज हम आपको इस सवाल का सही जवाब देते हैं।
Credit: Istock
दरअसल, एलपीजी सिलेंडर ये लेकर मोम और दियासलाई से लेकर चूल्हे तक सब कुछ कार्बन आधारित है। चूंकि, वातावरण में ऑक्सीजन होती है इसलिए इनकी लपटों और उसके रंग में अंतर होता है।
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अब बात करते हैं इसके पीछे की साइंस की..जब इलेक्ट्रॉन फोटोन में ऊर्जा ट्रांसफर होती है तो उससे लौ निकलती है। जैसे ही ऑक्सीजन और लौ का संपर्क होता है वैसे ही कार्बन परमाणु कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल जाते हैं और लौ का रंग बदलने लगता है।
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अगर ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होगी तो वह कार्बन को पूरी तरह कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल देगी और इससे लौ नीली हो जाएगी।
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लेकिन यदि ऑक्सीजन की मात्रा कम है तो कार्बन, कार्बन डाई ऑक्साइड में नहीं बदल पाता और लौ का ऊपरी हिस्सा काला दिखता है।
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लौ का नारंगी और पीला रंग होने का संबंध मोम, लकड़ी दियासलाई और कागज से है। जो कि, जटिल कार्बन अणु माने जाते हैं।
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यदि वायुमंडल में व्याप्त ऑक्सीजन के लिहाज से देखें तो इनमें कार्बन का अंश अधिक पाया जाता है। इससे ऑक्सीकरण पूरी तरह नहीं हो पता और लौ नारंगी और पीली हो जाती है।
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एलपीजी और मीथेन की बात करें तो साधारण ईंधन में बहुत कम कार्बन होता है, इसीलिए इनका ऑक्सीजन से जब भी टकराव होता है तो इन पर ऑक्सीजन पूरी तरह अपना कब्जा जमा लेती है। यही वजह है कि, आग की लौ नीली दिखती है।
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परिणामस्वरूप कहें तो वायुमंडल की ऑक्सीजन के आधार पर आग का रंग निर्धारित होता है। वह जल रही चीज के कार्बन से जिस तरह प्रतिक्रिया करती है लपट का रंग उसी तरह से हो जाता है।
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