अमेरिका का गजब चुनाव, ज्यादा वोट पाकर भी हार जाता है उम्मीदवार, ऐसा है इलेक्टोरल वोटों का गणित
US Presidential Election 2024: 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन का मुकाबला डोनाल्ड ट्रंप से हुआ। इस चुनाव में क्लिंटन को देश भर में ट्रंप से ज्यादा वोट मिले। क्लिंटन का वोट प्रतिशत 48.18 प्रतिशत था लेकिन वह चुनाव हार गईं। वहीं, ट्रंप को 46.09 फीसद वोट मिले थे लेकिन इलेक्टोरल वोट में ट्रंप बाजी मार ले गए और वह राष्ट्रपति चुने गए।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024
- अमेरिका में कुल 50 राज्य हैं, राज्यों की आबादी के हिसाब से मिलते हैं इलेक्टोरल वोट
- सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट पाने वाला उम्मीदवार हार जाता है, ऐसा कई बार हुआ है
- अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए सबसे ज्यादा इलेक्टोरल वोट जीतने पड़ते हैं
US Presidential Election 2024: दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका के चुनाव के बारे में कई अनूठी और दिलचस्प चीजें जानने-सुनने को मिलती हैं। यहां राष्ट्रपति चुनाव में देश भर में सबसे ज्यादा वोट (पॉपुलर वोट) पाने वाले उम्मीदवार की हार हो जाती है। यह हैरान करने वाली बात लग सकती है लेकिन अमेरिका में ऐसा होता आया है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को देश भर में सबसे ज्यादा वोट (पॉपुलर वोट) पाने की जरूरत नहीं होती बल्कि उसे इलेक्टोरल वोट में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने पड़ते हैं। जो उम्मीदवार इलेक्टोरल वोट सबसे ज्यादा हासिल करता है, जीत उसी की होती है। इलेक्टोरल वोटों की संख्या प्रत्येक राज्य में अलग होती है। अमेरिका में 50 राज्य हैं और इन राज्यों को इलेक्टोरल वोट उनकी आबादी के हिसाब से आवंटित होता है।
जब ज्यादा वोट पाकर भी हार गईं क्लिंटन
रिपोर्टों की मानें तो अमेरिका में ऐसा पांच बार हो चुका है जब हारने वाले प्रत्याशी को ज्यादा वोट मिले हैं। 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन का मुकाबला डोनाल्ड ट्रंप से हुआ। इस चुनाव में क्लिंटन को देश भर में ट्रंप से ज्यादा वोट मिले। क्लिंटन का वोट प्रतिशत 48.18 प्रतिशत था लेकिन वह चुनाव हार गईं। वहीं, ट्रंप को 46.09 फीसद वोट मिले थे लेकिन इलेक्टोरल वोट में ट्रंप बाजी मार ले गए और वह राष्ट्रपति चुने गए। इसलिए प्रत्याशियों की जीत और हार राष्ट्रीय मतों पर नहीं बल्कि राज्यों के इलेक्टोरल वोटों पर निर्भर करता है। अमेरिका में कुल 538 इलेक्टर हैं। चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी को 270 इलेक्टोरल वोट से ज्यादा की जरूरत होती है। अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन, डीसी (डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया) से तीन अतिरिक्त निर्वाचक होते हैं।
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कम आबादी वाले राज्यों को मिलते हैं कम वोट
प्रत्येक राज्य को उसके सांसदों की संख्या के आधार पर इलेक्टोरल वोट निर्धारित किए जाते हैं। सबसे कम आबादी वाले कई राज्यों जैसे अलास्का, डेलावेयर, नॉर्थ डकोटा, साउथ डकोटा, वर्मोंट और व्योमिंग में तीन-तीन निर्वाचक हैं, क्योंकि उनके पास सदन में एक प्रतिनिधि (निचले सदन के सदस्य) और दो सीनेटर (उच्च सदन के सदस्य) हैं। सबसे बड़े कैलिफोर्निया में 54 निर्वाचक वोट हैं। उम्मीदवार इलेक्टोरल वोटों में बढ़त कायम करने के लिए बड़े राज्यों पर अपना फोकस रखते हैं जहां इन वोटों की संख्या ज्यादा है। इस चुनाव में कैलिफोर्निया और पेन्सिलवेनिया को दोनों उम्मीदवारों ने ज्यादा समय दिया और वोटरों को लुभाने की कोशिश की।
बैटल ग्राउंड स्टेट्स निभाते हैं जीत में बड़ी भूमिका
अमेरिका में असली चुनाव नतीजे स्विंग स्टेट्स से निकलते हैं। इन्हें बैटल ग्राउंड स्टेट्स भी कहा जाता है। ये सात स्टेट्स हैं। इनके नाम हैं- एरिजोना, नेवादा, विस्कॉन्सिन, मिशिगन, पेंसिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलिना और जॉर्जिया। दरअसल, अमेरिका में इन सात राज्यों के अलावा अन्य राज्यों के मतदाता परंपरागत रूप से या तो डेमोक्रेट या रिपब्लिकन पार्टी का समर्थन करते आए हैं। प्रत्येक चुनाव में इन राज्यों की स्थिति कमोबेश एक जैसी रहती है, यानी कि यहां चुनाव परिणाम में बड़े फेरदबल की उम्मीद नहीं रहती लेकिन इन सात राज्यों के मतदाताओं का रुझान स्थिर नहीं रहता, यह चुनाव के समय बदल जाता है। इसलिए इन सात राज्यों में जो उम्मीदवार बढ़त बना लेता है, चुनाव परिणाम उसके पक्ष में जाने की गुंजाइश सबसे ज्यादा रहती है। स्विंग स्टेट्स पेन्सिलवेनिया में सबसे ज्यादा इलेक्टोरल वोट 19 हैं। यहां सबसे ज्यादा वोट हासिल करने के लिए ट्रंप और हैरिस ने अपना पूरा दम खम लगाया है।
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