Sudan Crisis: सूडान से लोगों को निकालने में आ रही दिक्कत, जानें कैसे अलग है यहां बचाव अभियान चलाना
Sudan crisis: देश के अलग-अलग हिस्सों में समय-समय पर हिंसा, गृह युद्ध अथवा युद्ध जैसे हालात बनते हैं। हिंसा या युद्ध ग्रस्त देशों से अपने नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए देशों को बचाव अभियान चलाना पड़ता है। यूक्रेन-रूस युद्ध की बात करें तो रूस का हमला शुरू होने पर यूक्रेन में बड़ी संख्या में छात्र एवं नागरिक फंस गए।
Sudan Crisis: अफ्रीका के तीसरे सबसे बड़े देश सूडान में गत 15 अप्रैल से जो हिंसा छिड़ी है उसमें अब तक कम से कम 427 लोगों की मौत हो चुकी है। सड़कों पर अराजकता का माहौल है। खाने-पीने की चीजें नहीं मिलने की वजह से मानवीय संकट पैदा हो गया है। सेना प्रमुख और अर्धसैनिक बल आरएसएफ के बीच सत्ता एवं वर्चस्व की लड़ाई थमती नजर नहीं आ रही है। इन सबके बीच राहत वाली खबर यह है कि दोनों गुटों ने एसएएफ और आरएसएफ विदेशी नागरिकों को निकालने के लिए 72 घंटे का सीजफायर करने की घोषणा की है। जाहिर है कि सीजफायर के लिए दोनों पक्ष रजामंद हुए हैं। इससे भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, सऊदी अरब, फ्रांस सहित उन सभी देशों को अपना बचाव अभियान आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
सूडान में बचाव अभियान चलाना मुश्किल है
देश के अलग-अलग हिस्सों में समय-समय पर हिंसा, गृह युद्ध अथवा युद्ध जैसे हालात बनते हैं। हिंसा या युद्ध ग्रस्त देशों से अपने नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए देशों को बचाव अभियान चलाना पड़ता है। यूक्रेन-रूस युद्ध की बात करें तो रूस का हमला शुरू होने पर यूक्रेन में बड़ी संख्या में छात्र एवं नागरिक फंस गए। यहां भारत सहित अन्य देशों ने सफलतापूर्वक अपने मिशन को अंजाम दिया। इस लड़ाई में दो देश आमने-सामने थे। दुनिया के बाकी मुल्कों से इन दोनों देशों के संबंध थे। देशों की अपील पर मानवीय गलियारा बनाने के लिए यूक्रेन और रूस दोनों राजी हुए।
छोटे-छोटे गुट आपस में लड़ते हैं तो ज्यादा मुश्किलें आती हैं
बचाव अभियान चलाने में समस्या तब आती है जब देश में गृह युद्ध शुरू हो गया हो। कोई सरकार न हो। छोटे-छोटे गुट या मिलिशिया आपस में लड़ने लगते हैं तो बचाव अभियान चलाना बहुत मुश्किल हो जाता है। सरकारें समझ नहीं पातीं कि जमीन पर किससे बात की जाए। इन गुटों पर भी अंतरराष्ट्रीय दबाव एक तरीके से काम नहीं करता। ऐसी सूरत में किसी तरह का हस्तक्षेप काफी जोखिम भरा होता है। सूडान की हालत भी इन परिस्थितियों से ज्यादा अलग नहीं है। यहां गनीमत है कि दोनों गुट के मुखिया देश के दो शक्तिशाली संस्थाओं के प्रमुख हैं। इनके अपने पड़ोसी देशों से संबंध हैं। इन पड़ोसी देशों ने सूडान के सेना प्रमुख एवं अर्धसैनिक बलों के प्रमुख से बात की और सीजफायर कराने के लिए राजी किया।
अभियान के लिए फ्रांस कर रहा अपने जिबूती बेस का इस्तेमाल
रिपोर्टों के मुताबिक सूडान से अब तक अमेरिका, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, इटली, स्पेन, स्वीडन डेनमार्क, फिनलैंड, नार्वे, पोलैंड, नीदरलैंड, बुल्गारिया, तुर्की, ग्रीस, जापान, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, फिलिस्तीन, दक्षिण कोरिया, जॉर्डन, मिस्र और भारत ने अपने नागरिकों को निकाला है या निकालने की प्रक्रिया में हैं। ज्यादातर देशों ने अपने युद्धक विमानों एवं पोतों को सूडान के पड़ोसी देशों में तैनात किया है। लोगों को निकालने में फ्रांस जिबूती स्थित अपने सैन्य अड्डे का इस्तेमाल कर रहा है।
भारत ने 'ऑपरेशन कावेरी' शुरू किया
फ्रांस ने भारत सहित कई देशों के नागरिकों को वहां से निकाला है। भारत सरकार ने हिंसाग्रस्त देश से अपने नागरिकों को निकालने के लिए सोमवार को ‘ऑपरेशन कावेरी’शुरू किया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ‘सूडान में फंसे हमारे नागरिकों को वापस लाने के लिए ऑपरेशन कावेरी शुरू हो गया है। करीब 500 भारतीय सूडान के बंदरगाह पहुंच गए हैं। कई और रास्ते में हैं। ’ज्यादातर देशों के लिए बचाव अभियान चलाना आसान नहीं है। सूडान में ब्रिटेन के करीब 2,000 नागरिक मौजूद हैं। ज्यादातर लोगों की शिकायतें हैं कि उनकी सरकारें बचाव अभियान को लेकर उन्हें ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं करा रही हैं।
1.6 करोड़ लोगों तक मानवीय मदद पहुंचाने की जरूरत
ब्रिटेन के डेवलपमेंट मिनिस्टर एंड्रिउ मिशेल का कहना है कि सूडान में 1.6 करोड़ लोगों तक मानवीय मदद पहुंचाने की जरूरत है। मंत्री का कहना है कि सूडान मे स्थितियां काफी जटिल हो गई हैं। छह करोड़ लोगों के पास खाने-पीने की चीजों की कमी हो गई है। उन्होंने कहा कि हालात नहीं सुधरे तो स्थितियां और भयावह होंगी। सूडान में हालात बिगड़ने के बाद आम लोग भागकर पड़ोसी देशों की ओर रुख कर रहे हैं। ये लोग अलग-अलग जोखिम भरे रास्तों से होते हुए मिस्र, लीबिया, चाड, साउथ सूडान, इथियोपिया एवं इरीट्रिया पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
सूडान से निकलना चाहते हैं स्थानीय निवासी
अनेक सूडानी नागरिक मिस्र तथा अन्य देशों के लोगों के साथ जान जोखिम में डालकर अपने वाहनों से मिस्र की ओर जाने वाली उत्तरी सीमा की ओर जा रहे हैं। मिस्र के छात्र सुलेमान अल-कूनी ने मिस्र के साथ लगे आरकिन सीमा क्षेत्र में कहा, ‘हमने अपने जोखिम पर 15 घंटे तक सड़क मार्ग से सफर किया।’उसने कहा कि इस सुदूर इलाके में सैकड़ों लोगों को लेकर बसें कतार में खड़ी हैं। अल-शरीफ (27) अपने लिए, अपनी छोटी बहन, मां, मौसी और दादी के लिए खार्तूम से बाहर पागलों की तरह वाहन की तलाश कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मिस्र की सीमा तक जाने के लिए 50 लोगों के लिए एक बस किराये पर लेने के लिए कम से कम 14,000 डॉलर देने होंगे।
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