डराने वाली मौसम विभाग की रिपोर्ट, 2028 तक टूटेंगे गर्मी के सभी रिकॉर्ड
Global Warming: रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात की 98 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच सालों में कोई एक साल ऐसा होगा, जब रिकॉर्ड तोड़ गर्मी दर्ज की जाएगी। WMO की Global Annual to Decadal Climate Update रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पूरी तरह शून्य तक कम न किया गया तो इस दशक में बदतर गर्मी के रिकॉर्ड टूटेंगे।
2028 तक होगी प्रचंड गर्मी
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात की 98 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच सालों में कोई एक साल ऐसा होगा, जब रिकॉर्ड तोड़ गर्मी दर्ज की जाएगी। वहीं, इस बात की 66 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच सालों में एक वर्ष 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग की सीमा को पार कर जाएगा।
इस बात की भी 32 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच वर्षों में औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से अधिक हो जाएगा। अस्थायी रूप से तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की संभावना 2015 से लगातार बढ़ी है, जब यह शून्य के करीब थी। वर्ष 2017 और 2021 के बीच के वर्षों के लिए यह संभावना 10 प्रतिशत थी।
पहले ही एक डिग्री बढ़ चुका है औसत तापमानमानव जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने 19वीं शताब्दी के अंत से पहले ही वैश्विक औसत तापमान को 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ा दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022 का औसत वैश्विक तापमान ला-नीना स्थितियों के शीतलन प्रभाव के बावजूद 1850-1900 के औसत से लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक था। तापमान अब लगभग 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक बढ़ रहा है। हम दुनिया को इतनी तेजी से गर्म कर रहे हैं, जिससे विश्व स्तर पर और स्थानीय स्तर पर गर्मी के रिकॉर्ड बन रहे हैं। जलवायु पर मानवीय प्रभावों के कारण तापमान अभूतपूर्व उच्च स्तर पर पहुंच रहा है। मौसमी घटना ‘अल-नीनो’ की संभावना तापमान के और अधिक बढ़ने की वजह बन सकती है।
जून-जुलाई में जोर पकड़ेगा अल-नीनो प्रभाव
वर्तमान रिकॉर्ड वैश्विक औसत तापमान 2016 में सामने आया था। उस वर्ष की शुरुआत में एक प्रमुख अल नीनो घटना ने वैश्विक औसत तापमान को बढ़ा दिया था। अल-नीनो मौसम की एक घटना है जो तब होती है जब मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य से ऊपर बढ़ जाता है। ये बढ़ा हुआ तापमान वायुमंडलीय पैटर्न में बदलाव की वजह बनता है। इसकी वजह से भारतीय प्रायद्वीपों में मानसून चक्र कमजोर पड़ता है, जिसकी वजह से बारिश भी कम होती है। अल-नीनो की स्थिति प्रशांत महासागर क्षेत्र में बनने लगी है और इसके जून और जुलाई में जोर पकड़ने की संभावना बढ़ रही है। यह 2016 के बाद पहली महत्वपूर्ण अल-नीनो घटना हो सकती है।
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