बांग्लादेश में सियासी दल बनाने पर मंथन कर रहे हिंदू, 22 फीसदी से सिमटकर रह गए महज 8 प्रतिशत

आवामी लीग की नेता शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद हिंदू समुदाय के विरुद्ध हुई हिंसा के बाद इन बातों पर चर्चा होने लगी है। हसीना ने छात्र आंदोलन के बाद पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

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बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले

Hindus in Bangladesh: बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर लगातार हो रहे हमले के मद्देनजर अब हिंदू नेता एक समर्पित राजनीतिक दल के गठन पर मंथन कर रहे हैं। ये कदम अस्थिरता और भय के माहौल में हिंदुओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व की सख्त जरूरत को दर्शाता है। ‘बांग्लादेश हिंदू बुद्धिस्ट क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल (बीएचबीसीओपी)’ और अन्य संगठनों के हिंदू नेता अब पृथक राजनीतिक दल के गठन या आरक्षित संसदीय सीट की मांग की संभावना पर चर्चा करने में लगे हैं। बीएचबीसीओपी के प्रेसिडियम सदस्य काजल देबनाथ ने कहा, फिलहाल तीन विकल्पों पर विस्तार से चर्चा की जा रही है। पहला, 1954 से पृथक निर्वाचन प्रणाली पर लौटना; दूसरा, हिंदुओं के लिए एक अलग राजनीतिक पार्टी का गठन ; और तीसरा, अल्पसंख्यकों के लिए संसद में सीट आरक्षित करना।

हिंदू समुदाय पर 2010 हमले हुए

आवामी लीग की नेता शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद हिंदू समुदाय के विरुद्ध हुई हिंसा के पश्चात इन बातों पर चर्चा होने लगी है। हसीना ने छात्र आंदोलन के बाद पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। देबनाथ ने बताया कि बीएचबीसीओपी द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के हिसाब से हिंदू समुदाय पर हमले की 2010 घटनाएं हुईं जिनमें हत्या, मारपीट, यौन हमला, मंदिरों पर हमला और संपत्ति नष्ट किया जाना शामिल है। वैसे, इन हमलों की संख्या पर बांग्लादेश सरकार की ओर से कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया गया है। हिंदू समुदाय के नेता राजन कर्माकर ने कहा, एक राजनीतिक दल बनाने के बारे में चर्चा एवं विचारों का आदान-प्रदान हमारी शीर्ष प्राथमिकता है। हालांकि अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है, देखते हैं आगे क्या होता है।

1971 के बाद अब 22 फीसदी से घटकर 8 फीसदी रह गए

उन्होंने कहा, प्रस्तावित राजनीतक दल बदलाव का एक महत्वपूर्ण जरिया हो सकता है और सुनिश्चित करेगा कि उनकी चिंताओं को सुना जाए तथा उनका समाधान हो। ऐतिहासिक रूप से, 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेश में हिंदू कुल जनसंख्या का करीब 22 प्रतिशत थे लेकिन आज वे करीब आठ प्रतिशत रह गए हैं। हिंदुओं ने हिंदू जनसंख्या में इस गिरावट के लिए सामाजिक-राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेले जाने एवं हिंसा को जिम्मेदार ठहराया है। फलस्वरूप राजनीतिक रूप से लामबंद होने की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है। हालांकि, देबनाथ ने कहा कि हिंदुओं के लिए पार्टी बनाने से अल्पसंख्यकों को संभवत: फायदा नहीं होगा क्योंकि इससे धर्मनिरपेक्ष वोट बिखर सकते हैं और मकसद में कामयाबी नहीं मिल पाएगी।

कैसे पूरा होगा सियासी मकसद

उन्होंने कहा, हिंदू आबादी बांग्लादेश में फैली हुई है। कुछ इलाकों में इसके 35 प्रतिशत मतदाता हैं, जबकि ज्यादातर जगहों पर 6-8 प्रतिशत मतदाता हैं। पिछले चुनाव में आवामी लीग के जो हिंदू नेता जीते थे, उन्हें हिंदू वोट के साथ-साथ दूसरे समुदायों के अवामी समर्थकों के वोट भी मिले थे। देबनाथ ने कहा, लेकिन अगर वही व्यक्ति हिंदू पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ता है, तो वह दूसरे समुदायों से वोट हासिल नहीं कर पाएगा। इसलिए संसद में प्रतिनिधि भेजने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। हिंदू समुदाय में इस बात पर भिन्न-भिन्न राय है कि एक पृथक राजनीतिक दल बनाया जाए या वर्तमान धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ हाथ मिलाया जाए।

संसद में आरक्षण की मांग का भी विकल्प

बांग्लादेश जातीय हिंदू मोहजोत के महासचिव गोबिंद चंद्र प्रमाणिक ने कहा, हमें अपने साझा लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एकजुट होकर ही हम महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। यह हमारे लिए आगे आकर राजनीतिक परिदृश्य में अपना स्थान पुनः प्राप्त करने का समय है। चूंकि हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग अवामी लीग से जुड़ा हुआ है, इसलिए भी हम हमलों का सामना कर रहे हैं। देबनाथ ने कहा कि महिलाओं के लिए जिस तरह से संसदीय सीट आरक्षित की गई हैं, उसी तरह से आरक्षण एक समाधान हो सकता है। (पीटीआई-भाषा)
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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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