PAK:सेना से दुश्मनी भुट्टो परिवार से लेकर इमरान पर भारी ! जानें नेता क्यों पड़ जाते हैं कमजोर

Imran Khan And Pakistan Crisis: साल 1947 में आजाद होने के बाद पाकिस्तान के पहले 10 साल में 7 प्रधानमंत्री बने। इस अस्थिरता की वजह से वहां पर सेना को दखल देने का मौका मिला। और तत्कालीन सेना प्रमुख अयूब खान ने 1959 के आम चुनाव से पहले राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के साथ मिलकर सैनिक शासन लागू कर दिया ।

मुख्य बातें
  • पाकिस्तान के 75 साल के इतिहास में करीब 21 साल पाकिस्तान की कमान सैन्य शासकों के पास रही है।
  • पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी की सजा दी गई थी।
  • नवंबर में पाकिस्तान सेनाअध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा के रिटायरमेंट पर सबकी नजर है।
Imran Khan Shot Bullet in leg:पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर हुए जानलेवा हमले ने पड़ोसी मुल्क में नए संकट का आगाज कर दिया है। उन पर हमला ऐसे वक्त हुआ है, जब वह शहबाज शरीफ सरकार के खिलाफ हकीकी आजादी मार्च निकाल रहे थे। राजनीतिक संघर्ष के बीच पाकिस्तान में इसी महीने नवंबर में एक और बड़ा घटनाक्रम आगाज दे रहा है। इसी महीने पाकिस्तान सेना के अध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है। और वह सीधे इमरान खान के निशाने पर हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या बाजवा रिटायर होंगे ? यह बात इसलिए भी अहम हो जाती है कि आजाद पाकिस्तान के 75 साल के इतिहास में करीब 21 साल पाकिस्तान की कमान सैन्य शासकों के पास रही है। और इस समय जिस तरह पाकिस्तान संकट से गुजर रहा है, वैसी स्थिति में वहां बहुत कुछ संभव है।
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पाकिस्तान में सेना से दुश्मनी पड़ती है भारी !
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साल 1947 में आजाद होने के बाद पाकिस्तान के पहले 10 साल में 7 प्रधानमंत्री बने। इस अस्थिरता की वजह से वहां पर सेना को दखल देने का मौका मिला। और तत्कालीन सेना प्रमुख अयूब खान ने 1959 के आम चुनाव से पहले राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के साथ मिलकर सैनिक शासन लागू कर दिया । और वह पाकिस्तान के पहले सैन्य शासन बन गए। अयूब खान का 1959 से लेकर 1969 तक पाकिस्तान में शासन रहा। इसके बाद जब जुल्फीकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री और उनकी लोकप्रियता बढ़ी, तो उन्होंने सेना से अलग स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश की। लेकिन यह सेना को गंवारा नहीं था और 1977 में पाकिस्तान के सेना प्रमुख मोहम्मद जिया उल हक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को कुर्सी से हटाकर फिर से सेना का शासन लागू कर दिया गया। बाद में भुट्टों को फांसी दे दी गई।
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