चीनी जमीन पर ईरान-सऊदी अरब हुए एक, आखिर क्यों भड़क उठा इजरायल
सुन्नी बहुल सऊदी अरब और शिया बहुल ईरान ने फिर से कूटनीतिक रिश्तों को शुरू करने का फैसला किया है। इस डील में चीन की भूमिका अहम है जिस पर इजरायल भड़का हुआ है।
ईरान-सऊदी अरब में कूटनीतिक संबंधों का आगाज
दुनिया के जानकार इस बात से हैरान हैं कि ईरान और सऊदी अरब कैसे एक दूसरे के करीब आ रहे हैं। हाल ही में बीजिंग में सुन्नी बहुल सऊदी और शिया बहुल ईरान के बीच कूटनीतिक रिश्तों को फिर से शुरू किए जाने पर सहमति बनी है और इसमें चीन की भूमिका को प्रभावी बताया जा रहा है। हालांकि इस रिश्ते पर इजरायल भड़का हुआ है। मध्य पूर्व के प्रतिद्वंद्वियों के बीच सात साल के तनाव के बाद ईरान और सऊदी अरब शुक्रवार को राजनयिक संबंध बहाल करने और दूतावासों को फिर से खोलने पर सहमत हुए। चीन के साथ की गई बड़ी कूटनीतिक सफलता राष्ट्रों के बीच सशस्त्र संघर्ष की संभावना को कम करती है।लेकिन इन सबके बीच भारत पर इसका क्या असर पड़ने वाला है उसे भी समझना जरूरी है।
ईरान- सऊदी अरब में बनी सहमति
इस सप्ताह बीजिंग में हुई औपचारिक नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के बीच हुई डील चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि खाड़ी अरब राज्य संयुक्त राज्य अमेरिका को व्यापक मध्य पूर्व से धीरे-धीरे पीछे हटते हुए देखते हैं। यह तब भी आता है जब राजनयिक यमन में वर्षों से चले आ रहे युद्ध को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं, एक ऐसा संघर्ष जिसमें ईरान और सऊदी अरब दोनों ही गहराई से उलझे हुए हैं।ईरान की सरकारी मीडिया ने बैठक के चीन में लिए गए चित्रों और वीडियो को पोस्ट किया। इसमें सऊदी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मुसाद बिन मोहम्मद अल-ऐबन और चीन के सबसे वरिष्ठ राजनयिक वांग यी के साथ ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली शामखानी को दिखाया गया है। निर्णय लागू होने के बाद, दोनों देशों के विदेश मंत्री राजदूतों के आदान-प्रदान की तैयारी के लिए मिलेंगे। इसमें कहा गया है कि वार्ता चार दिनों से अधिक समय से आयोजित की गई थी।संयुक्त बयान में संबंधों को फिर से स्थापित करने और दूतावासों को दो महीने की अधिकतम अवधि के भीतर फिर से खोलने पर जोर दिया गया है।
क्यों भड़का इजरायल
इजरायल स्वाभाविक तौर पर मुस्लिम देशों को अपने हित में नहीं मानता है। ईरान से तनातनी किसी से छिपी नहीं है। जहां तक बात सऊदी अरब की है तो इजरायल को लगता है कि अमेरिका की मदद से वो सऊदी अरब को समझाने में कामयाब हो सकता है।लेकिन ईरान के था स्वाभाविक रिश्ते बना पाना आसान नहीं है। ऐसे में अगर कोई ताकतवर मुल्क ईरान की मदद करता है तो उसके हितों पर चोट पहुंचेगा।
भारत पर असर
जानकार बताते हैं कि सऊदी अरब और ईरान के एक साथ आने से भारत के हितों पर सीधे कोई नकारात्मक असर नहीं होगा। लेकिन अगर ईरान अपने मुल्क में चीनी गतिविधियों को बढ़ावा देने में मदद करता है तो उसकी वजह से मध्य एशिया से होने वाले व्यापार पर असर पड़ सकता है। हालांकि वैश्विक माहौल को देखते हुए ना तो सऊदी अरब और ना ही ईरान कोई ऐसा कदम उठाने के बारे में सोचेंगे जो भारतीय हितों के खिलाफ हो।
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