पाकिस्तान में मार्शल लॉ की चर्चा से घबराए लोग, जानें क्यों डराता है यह कानून

What is Martial Law: मॉर्शल लॉ किसी भी देश में उस समय लागू किया जाता है जब सामान्य व्यवस्था बनाए रखने में सामान्य पुलिस नाकाम हो जाती है। क्या पाकिस्तान उस दौर से गुजर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक वहां के लोगों को डर सता रहा है कि कभी भी फौजी कानून को लागू किया जा सकता है।

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पाकिस्तान में लोगों को मॉर्शल लॉ का डर !

What is Martial Law: जब किसी देश में आंतरिक हालात खराब हो जाते हैं तो सामान्य व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी पाकिस्तान इस समय अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। ज्यादातर इलाकों में बिजली संकट, लोगों के सामने खाने पीने के चीजों की कमी, आसमान छूती कीमतों से लोग परेशान हैं। सियासी तौर पर पाकिस्तान अस्थिरता की तरफ बढ़ा रहा है। हर एक दिन पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान, शहबाज शरीफ सरकार पर निशाना साध रहे हैं। ऐसे में आम लोगों को मॉर्शल लॉ लागू किए जाने का डर सता रहा है। दरअसल पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने देश में आपातकाल या मार्शल लॉ के बारे में अपनी आशंका व्यक्त की है। यहां पर हम बताएंगे कि मॉर्शल लॉ क्या होता है।

क्या होता है मॉर्शल लॉ

पुलिस से लेकर सेना के हाथों में सौंप दी जाती है। ऐसी सूरत में फौज के नियम कायदे अमल में आते हैं। पाकिस्तान में लोगों को इस बात का डर सता रहा है कि देर सबेर शहबाज शरीफ सरकार मॉर्शल लॉ के लागू होने का ऐलान कर सकती है। इसके जरिए नागरिक अधिकार प्रभावित होते हैं। खासतौर से राजनीतिक दलों की सभाओं पर रोक लग जाता है। इसके साथ ही नेताओं की गिरफ्तारी की आशंका बढ़ जाती है।

पाकिस्तान में मॉर्शल लॉ का इतिहास

भारत के साथ ही पाकिस्तान भी अंग्रेजी सरकार से आजाद हुआ था। लेकिन आजादी का अहसास लोग टुकड़ों में करते रहे। 1958 से 1971 तक अलग अलग चरणों में फौजी कानून, 1977 से 1988 और 1999 से 2008 तक पाकिस्तान पर सेना की हुकुमत रही।अयूब खान के दौर में जब पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थरिता, और सांप्रदायिक तनाव बढ़ने लगा तो सत्ता पर फौज काबिज हो गई। पाकिस्तान में पहली बार 7 अक्टूबर 1958 को सेना ने कमान संभाली।

फौजी कमान के असफल प्रयास

  • 1951 में पाकिस्तान के इतिहास में तख्तापलट के कई असफल प्रयास हुए हैं। पहला उल्लेखनीय प्रयास 1951 में मेजर जनरल अकबर खान के नेतृत्व में रावलपिंडी की साजिश थी, जिसमें पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की सरकार के खिलाफ वामपंथी कार्यकर्ता और सहानुभूति रखने वाले अधिकारी शामिल थे। प्रमुख कवि-बौद्धिक फैज अहमद फैज के शामिल होने का संदेह था।
  • 1980 में, मेजर जनरल तजम्मुल हुसैन मलिक द्वारा 23 मार्च, 1980 को पाकिस्तान दिवस पर जिया-उल-हक की हत्या की साजिश का पर्दाफाश किया गया और उसे विफल कर दिया गया।
  • 1995 में, इस्लामिक चरमपंथियों के समर्थन से मेजर जनरल जहीरुल इस्लाम अब्बासी के नेतृत्व वाली बेनजीर भुट्टो की सरकार के खिलाफ तख्तापलट का प्रयास विफल हो गया था। जनरल जिया उल हक के शासनकाल के दौरान अपने निर्वासन के दौरान मुस्तफा खार द्वारा कथित तख्तापलट की कोशिश को सेठ आबिद द्वारा डबल एजेंट की भूमिका निभाने और साजिश के बारे में सेना को सूचित करने के कारण पहले ही विफल कर दिया गया था। कथित तौर पर मुस्तफा खार ने अपने लंदन उच्चायोग में एक भारतीय एजेंट के साथ बातचीत के बाद कुछ असंतुष्ट सेना अधिकारियों को एक सुरक्षित घर का विवरण प्रदान किया था जहां सीधे भारत से हथियार खरीदे गए थे।

क्या कहते हैं जानकार

जानकारों का कहना है कि शासन व्यवस्था का सबसे मधुर स्तंभ और आधार लोकतंत्र ही होता है। लोग अपनी पसंद की सरकारों को चुनने का काम करते हैं। लेकिन जब चुनी हुई सरकार व्यवस्था कायम करने में नाकाम होती है तो फौज द्वारा तख्ता पलट की संभावना बढ़ जाती है। अगर आप पाकिस्तान के इतिहास पर नजर डालें तो आजादी के सिर्फ चार साल बाद ही तख्ता पलट की नाकाम कोशिश हुई। भले ही वो कोशिश नाकाम रही हो लेकिन एक बड़ा संदेश छिपा हुआ था। आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि पाकिस्तान की आम अवाम का भरोसा सरकार से हटने लगा था। पाकिस्तान में फौजी हुकुमत या सैन्य शासन के लिए यह बड़ा आधार बना। अगर फौजी शासन की बात करें तो पाकिस्तान अब तक के इतिहास में करीब 70 फीसद सैन्य शासन के दौर से गुजरा है। आमतौर पर मार्शल लॉ के लागू होने के बाद लोगों को डर लगता है कि नागरिक स्वतंत्रता पर कुठाराघात होगा। लेकिन इसका सबसे अधिक खौफ राजनीतिक दलों के नेताओं को होता है।
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ललित राय author

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