Nepal Earthquake: वो 'एनर्जी' जिसके कारण पश्चिमी नेपाल में आते रहता है भूकंप, भविष्य में भी खतरा बरकरार
Nepal Earthquake: नेपाल स्थित राष्ट्रीय भूकंप निगरानी एवं अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक भरत कोइराला ने पीटीआई को बताया कि भारतीय और यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेटों में लगातार टक्कर हो रही है जिससे बहुत ही अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
नेपाल में क्यों आता है भूकंप
Nepal Earthquake: नेपाल में अक्सर भूकंप आते रहता है। छोटे-मोटे भूकंप तो यहां आम बात हैं, साल में कुछ भूकंप इतने तेज होते हैं कि दर्जनों लोगों की मौत हो जाती है। भूकंप वैज्ञानिक के मुताबिक हिमालय के भूकंप संभावित क्षेत्र में बसा नेपाल उन देशों में है, जहां पर भूकंप का सबसे अधिक खतरा है और इसमें भी पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र में बड़े भूकंप आने की आशंका है।
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नेपाल 11वां खतरनाक देश
पीटीआई के अनुसार सरकार की पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेस्मेंट (PDNA) रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल भूकंप के लिहाज से दुनिया का 11वां सबसे खतरनाक देश है। इसलिए जब नेपाल की पश्चिमी पहाड़ियों में शुक्रवार देर रात 6.4 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया तो यह इस महीने का पहला भूकंप नहीं था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम नेपाल में शुक्रवार करीब मध्य रात्रि आया भूकंप 2023 में आए 70 भूकंप में से एक है।
नेपाल में क्यों आता है भूकंप
नेपाल स्थित राष्ट्रीय भूकंप निगरानी एवं अनुसंधान केंद्र में वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक भरत कोइराला ने पीटीआई को बताया कि भारतीय और यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेटों में लगातार टक्कर हो रही है जिससे बहुत ही अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि नेपाल इन दोनों प्लेटों की सीमा पर है जो भूकंप के मामले में अतिसक्रिय इलाकों में आता है और इसलिए नेपाल में भूंकप आना सामान्य है। कोइराला ने कहा- "पश्चिमी नेपाल में बड़े भूकंप आने का खतरा है। पश्चिमी नेपाल में पिछले 520 सालों से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है। इसलिए बहुत सारी ऊर्जा एकत्रित हो गई है और भूकंप उस ऊर्जा को मुक्त करने का एकमात्र माध्यम है।"
जमा हो रखी है उर्जा
कोइराला ने कहा कि पश्चिमी नेपाल के गोरखा (जिला) से लेकर भारत के देहरादून तक टेक्टॉनिक हलचल के कारण बहुत सारी ऊर्जा जमा हो गई है। इसलिए, इन क्षेत्रों में ऊर्जा व्यय करने के लिए छोटे या बड़े भूकंप आ रहे हैं, जो सामान्य है। दुनिया की सबसे नयी पर्वत श्रृंखला हिमालय यूरेशियाई प्लेट, इसके दक्षिणी किनारे पर तिब्बत और भारतीय महाद्वीपीय प्लेट के टकराव के परिणामस्वरूप बनी और सदियों से टेक्टॉनिक गतिविधियों से विकसित हो रही है। ये प्लेट हर 100 साल में दो मीटर आगे बढ़ती हैं जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी के अंदर सक्रिय भूगर्भिक दोषों में संग्रहीत ऊर्जा अचानक मुक्त हो जाती है जिससे भूपर्पटी में हलचल होती है।
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