कम लागत में यूक्रेन में अब बड़ी तबाही मचा रहे पुतिन, बौखलाहट में हैं पश्चिमी देश

Russia Ukraine War : रूस के ड्रोन अटैक से यूक्रेन की चीखें निकल गई हैं। यूरोप के देश भी बिलबिला रहे हैं। यूरोप के देशों ने अब ईरान को टारगेट किया है और ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं। यूरोपियन यूनियन शाहिद एविएशन इंडस्ट्रीज पर प्रतिबंध लगाने जा रहा है, जो कामिकाज़ी ड्रोन्स बनाती है।

यूक्रेन के लिए रूस ने अपनी युद्ध रणनीति बदल दी है।

मुख्य बातें
  • ड्रोन से लड़ाई में रूस को कम लागत आ रही है जबकि यूक्रेन को बड़ा नुकसान हो रहा है
  • रिपोर्टों में कहा गया है कि हमलों के लिए रूस ने ईरान से बड़ी संख्या में घातक ड्रोन मंगाए हैं
  • यूक्रेन के शहरों पर पहले पुतिन ने मिसाइल और बम गिराए, अब ड्रोन से बना रहे हैं निशाना

Russia Ukraine War : यूक्रेन युद्ध अब ड्रोन वॉर में बदल गया है। पहले रूस के टैंक, बम और मिसाइलें यूक्रेन पर बरस रही थीं। पिछले कुछ वक्त से रूस ने रणनीति बदल दी और रूस अब यूक्रेन पर ताबड़तोड़ ड्रोन अटैक कर रहा है। इन ड्रोन्स ने यूक्रेन में बड़ी तबाही मचाई है और इससे यूक्रेन का सपोर्ट कर रहे पश्चिमी देश भी परेशान हो गए हैं, कि इससे यूक्रेन को कैसे बचाएं, क्योंकि पुतिन के ये ड्रोन्स की कीमत बहुत कम है, और इससे तबाही बहुत ज्यादा हो रही है। रूस के हमलों में सुसाइड ड्रोन्स का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन्हें कामिकाज़ी ड्रोन्स कहा जाता है। इन कामिकाजी ड्रोन्स में एक ड्रोन है शाहिद-136, जो ईरान में बना है और जिसे रूस यूक्रेन में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रहा है।

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रूस ने गेरान-2 के नाम से रीब्रांड किया

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शाहिद 136 ड्रोन को रूस ने गेरान-2 के नाम से रीब्रांड किया है। इसे फ्लाइंग बम भी कहा जाता है। क्योंकि इनके आगे का हिस्सा 30 से 50 किलोग्राम विस्फोटक से लैस होता है। टारगेट से टकराते ही विस्फोटक में धमाका होता है और इसी में टारगेट के साथ ड्रोन भी नष्ट हो जाता है। ये जीपीएस गाइडेड ड्रोन है, जो 2400 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं। यानी यूक्रेन के इलाके के बाहर से इन्हें यूक्रेन पर अटैक के लिए लॉन्च किया जा सकता है। ये ड्रोन्स इसलिए भी खतरनाक होते हैं, क्योंकि ये बहुत नीची और धीमी उड़ान भरते हैं। कम ऊंचाई में उड़ने और रफ्तार कम होने से इन्हें मार गिराना मुश्किल होता है। इनके Wings सिर्फ 2.5 मीटर लंबे होते हैं, जिन्हें रडार से पकड़ना भी मुश्किल होता है। अगर इन ड्रोन्स को बड़ी संख्या में झुंड के तौर पर अटैक के लिए भेज दिया जाए तो किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम के लिए इनसे मुकाबला करना बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है।

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