श्रीलंका के सबसे मजबूत राजनीतिक परिवार की दास्तां, जानें कैसे खत्म हो गया रसूख

राजपक्षे परिवार के पास पहली बार सत्ता साल 2005 में आई। जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति बने, उसके बाद उनकी मदद के लिए उनके भाई गोटबाया राजपक्षे अमेरिका से वापस लौटे और बाद में वह डिफेंस सेक्रेटरी बन गए। श्रीलंका में एलटीटीई के खात्म का श्रेय दोनों भाइयों की जोड़ी को जाता है। 2015 तक श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की सत्ता रही।

श्रीलंका के सबसे मजबूत परिवार की कहानी

मुख्य बातें
1. श्रीलंका में एलटीटीआई के खात्मे का श्रेय राजपक्षे परिवार को जाता है।
2.महंगाई के कारण बड़ी खाबादी भूखे सोने को मजबूर है।
3.नाराज भीड़ ने राजपक्षे परिवार के पैतृक घर पर आग लगा दी थी।

Sri Lanka Economic Crisis And Rajpaksa Family: साल 1948 में आजाद होने के बाद श्रीलंका के राजनीतिक इतिहास में राजपक्षे परिवार ने जैसा श्रीलंका की राजनीति में दबदबा रखा, वैसे कोई और नहीं कर पाया। एक समय राजपक्षे परिवार के 6 सदस्य श्रीलंका के शीर्ष पदों पर बैठे हुए थे। इसीलिए जब श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराया तो लोगों का सबसे ज्यादा गुस्सा उसी परिवार पर निकला।

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ऐसे था दबदबा

राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की सरकार और राजनीति में किस तरह आधिपत्य था, उसे इसी से समझा जा सकता है कि एक तरफ जहां गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे, वहीं उनके भाई महिंदा राजपक्षे देश के प्रधानमंत्री थे। जबकि भाई चमाल राजपक्षे सिंचाई मंत्री, अन्य भाई बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री थे। वहीं महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे खेल मंत्री और चमाल राजपक्षे के बेटे शशींद्र राजपक्षे कृषि मंत्री थे। यानी चार भाई और 2 बेटे ,श्रीलंका सरकार के सबसे अहम पदों पर बैठे हुए थे।

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