इजरायल को मिला खुला अमेरिकी समर्थन पश्चिम एशिया में बढ़ायेगा तनाव? US की मंशा एक मंच पर हों अरब मुल्क!
यहूदी राष्ट्र की मदद से अमेरिका नाटो के तर्ज पर पश्चिम एशिया में सुरक्षा रेखा बनाने का खाका खींच रहा है, साथ ही उसे आगे रखते हुए अरब मुल्कों को भी एक मंच पर लाने की अमेरिकी मंशा पूरी होती दिख रही है। तेल अवीव की मदद से ही व्हाइट हाउस पश्चिम एशिया-यूरोप के बीच इक्नॉमी कॉरिडोर के सपने को साकार कर सकेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन-प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू
दिल्ली: भले ही इजरायल दक्षिणी-पश्चिमी एशिया में आता हो लेकिन व्हाइट हाउस के हुक्मरान अक्सर तेल अवीव की मदद से पूरे एशिया में अपना हित साधते आये है। भौगोलिक दृष्टि से दोनों के बीच लंबी महाद्वीपीय दूरी है, लेकिन कई मामलों में ये एक दूसरे के प्रतिपूरक है। मध्यपूर्व में अमेरिकी दखल इस्राइली मुखौटा ओढ़े हुए आता है। सामरिक, वैचारिक, आर्थिक और रणनीतिक रूप से दोनों ही मुल्क एक दूसरे से काफी गहराई तक जुड़े हुए हैं। कई दिग्गज कूटनीतिक जानकारों ने दीर्घकालीन भविष्यवाणी कर बताया है कि तेल अवीव और वाशिंगटन के बीच हितों के टकराव की संभावना ना के बराबर है।
इजरायल को मिली अमेरिकी छूट
जिन तेवरों के साथ प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू आगे बढ़ रहे है, उससे साफ है कि निर्वतमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उन्हें सख्त कदम उठाने के लिए खुली छूट दी है। गाजा में IDF की जंगी कार्रवाई और उस कार्रवाई का फैलाव पश्चिम एशिया के कई मुल्कों तक होना, इस्राइली जंगी तेवरों का बेरूत, तेहरान और साना तक पहुंचना, गाजा के बंधक संकट का जरूरत से ज्यादा लंबा खींचा जाना और आखिर में सत्ता में बने रहने की नेतन्याहू की जद्दोजहद से काफी कुछ साफ हो जाता है कि अमेरिकी निज़ाम ने उन्हें मनमाफ़िक कार्रवाई करने की छूट दे रखी है।
मध्यपूर्व में स्थिरता चाहता वाशिंगटन
पश्चिम एशिया ऊर्जा और रणनीतिक तौर पर वाशिंगटन के लिए काफी अहमियत रखता है। इस इलाके से निकलने वाला क्रूड ऑयल और नेचुरल गैस के भंडार अमेरिकी विकास के इंजन में जान फूंकने का काम करते है और अमेरिकी दबदबे वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ये बेहद अहम है। इस क्षेत्र में जंगी खलल के कारण तेल और प्राकृतिक गैस के उत्खनन, शोधन, भंडारण और परिवहन में आयी रूकावट का सीधा असर वैश्विक ऊर्जा पर पड़ता है। इसीलिए अमेरिकी सरकारें क्षेत्र में स्थिर और मजबूत राजनीतिक नेतृत्व का समर्थन करती आयी हैं। अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान और बगदाद में सद्दाम सरकार की गिराने के लिए अमेरिकी सैन्य दखल वाशिंगटन को काफी भारी पड़ा था। व्हाइट को जहां एक ओर अपने संसाधन अंधाधुंध युद्ध में झोंकने पड़ रहे थे, वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र से निकलने वाले ऊर्जा भंडार उसकी पहुंच से लगभग दूर रहे।
पश्चिम एशिया ने व्हाइट हाउस का ध्यान बंटाया
पूर्ववर्ती अनुभवों से सब़क लेते हुए अमेरिकी नीति नियंताओ का जोर मध्य पूर्व की स्थिरता पर ज्यादा रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और विदेश नीति का ताना बाना ऐसा बुना गया कि इस क्षेत्र में उसे कम संसाधन झोंकने पड़े, जिससे कि वो बीजिंग और क्रेमलिन को टक्कर देने की होड़ में अपना पूरा ध्यान लगा सके। ओवल ऑफिस से जारी निर्देशों से साफ है कि मध्य पूर्व से ज्यादा गंभीर खतरा उन्हें रूस और चीन से उठता दिखाई देता है। इन्हीं तथ्यों को केंद्र में रखते हुए इजरायल बड़ा अमेरिकी साझेदार बना हुआ है। यहूदी राष्ट्र की मदद से अमेरिका नाटो के तर्ज पर पश्चिम एशिया में सुरक्षा रेखा बनाने का खाका खींच रहा है, साथ ही उसे आगे रखते हुए अरब मुल्कों को भी एक मंच पर लाने की अमेरिकी मंशा पूरी होती दिख रही है। तेल अवीव की मदद से ही व्हाइट हाउस पश्चिम एशिया-यूरोप के बीच इक्नॉमी कॉरिडोर के सपने को साकार कर सकेगा। अमेरिकी निजाम का मंत्र साफ है ‘गाढ़े कारोबारी रिश्तों से मध्यपूर्व में शांति और स्थिरता।’
अमेरिकी सुरक्षा बलों की घर वापसी
बराक ओबामा के कार्यकाल से लेकर बाइडेन प्रशासन के दौरान इसी नीति को अमल में लाया गया। इसी पॉलिसी के चलते बगदाद में अमेरिकी सैनिकों की कदमताल थमी और यहूदी राष्ट्र-अरब मुल्कों के बीच रिश्ते शुरू करने की कवायदें परवान चढ़ने लगी। मध्यपूर्व में स्थिरता को लेकर ग्रहण 7 अक्टूबर 2023 हमास के हमले और उसके ऑपरेशन अल-अक्सा फ़्लड के चलते लगा। पश्चिमी एशिया से अमेरिकी सैन्य बलों की घर वापसी पर ब्रेक लगा गया क्योंकि मौके की नजाकत को भांपते हुए इजरायल को फौजी मदद का भरोसा देकर अमेरिका को वहां सैन्य मजबूती फिर से पुख्ता करनी पड़ी। इजरायल के समर्थन में वाशिंगटन को 25 बिलियन डालर से ज्यादा का खर्चा करना पड़ा। मध्य पूर्व में हुई इस उथल पुथल से क्रेमलिन और बीजिंग से पेंटागन का ध्यान हटता चल गया साथ ही ताइपे, सियोल, कीव और टोक्यो को फौजी साजोसामान और रसद मुहैया करवाने की उनकी पॉलिसी ढीली पड़ती चली गयी।
हर मोर्चे पर नेतन्याहू संग अमेरिकी हुक्मरान
7 अक्टूबर 2023 को हुए प्रकरण से लेकर अब तक वाशिंगटन इजरायल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है, इसके लिए उसने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। अमेरिकी जंगी जहाज़ी बेड़े लाल सागर और भूमध्य सागर में अपनी पूरी क्षमता के साथ हथियारबंद मुस्तैद खड़े है। अमेरिकी डिस्ट्रॉयर, फ्रिगेट शिप, क्रूजर और एयरक्राफ्ट कैरियर लगातार हाई अलर्ट मोड पर है यानी कि इजरायल की हिफाज़त के लिए सीधे तौर पर कई अमेरिकी जंगी फ्लीट पूरी तरह से हमलावर तैनाती पर है। वैश्विक संवाद मंचों पर भी ठीक यहीं समर्थन दिखायी देता है, संयुक्त राष्ट्र समेत दूसरे विमर्श मंचों पर अमेरिकी डिप्लोमैट नेतन्याहू की मजबूती पैरवी कर रहे हैं। इस दिशा में बनने वाले किसी भी नैरेटिव को बनने से पहले से ही ध्वस्त कर दिया जा रहा है। भले ही एक खास जमात गाजा कार्रवाई को नरसंहार का नाम दे रही हो लेकिन काउंटर पर्सपेक्टिव शानदार तरीके से पेश किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के खिलाफ कुछ आवाज़ें बुलंद हुई है लेकिन जवाबी तथ्यात्मक पलटवार करने में अमेरिकी-इस्राइली जुगलबंदी कोई कोताही नहीं बरत रही है। साथ ही अमेरिकी अगुवाई वाले सहयोगियों को भी फरमान जारी किया गया है कि इस मसले पर किसी तरह के जनाक्रोश के आगे ना झुका जाए।
नेतन्याहू विरोधियों को मिला मौका
हमास, हिजबुल्लाह और हूतियों का संयुक्त समर्थन करनी वाली जमात अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर दावा करती है कि दमिश्क में ईरानी दूतावास पर बमबारी, यमन में इस्राइली सैन्य दखल, इस्माइल हनियेह की हत्या, सीरिया के दक्षिणी सीमाई इलाकों पर इस्राइली कब्ज़े-कार्रवाई से शांति के दरवाज़े बंद हुए है। रही सही कसर लेबनान में हिजबुल्लाह के खात्मे और बशर अल असद के तख्त पलट ने पूरी कर दी। इस पूरे मामले में अमेरिका इजरायल के साथ खड़ा रहा है। इसी कथित सोच का समर्थन करने वाले लोगों का मानना है कि नेतन्याहू इन हालातों का फायदा अपनी सियासी चमक बढ़ाने के लिए कर रहे है। उनका कहना है कि इस्राइली प्रधानमंत्री रोडमैप कुछ इस तरह का होगा, वो अपने लोग में वजूद खत्म होने का डर बैठायेगें। जंग और संघर्ष को लंबा खींचने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे, आखिर में वो अपने सत्ता सहयोगियों को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए कुछ भी करेगें। कुछ हद तक ये थ्योरी और कथित रोडमैप आसानी से चल सकता है। नेतन्याहू पर घूस लेने, विवादास्पद बयान देने और धोखाधड़ी करने के आरोप है, यहूदियों के वर्ग विशेष में उन्हें लेकर गहरा असंतोष भी है। इन्हीं वजहों के कारण ये एजेंडा आसानी से फैल सकता है। कहीं ना कहीं एक सामाजिक खाई बनी है, जिसका फायदा नेतन्याहू आलोचक या यूं कहे कि इजरायल विरोधी लॉबी उठाना चाहती है। इसके इतर डेमोक्रेट खेमा नेतन्याहू के साथ बना हुआ है, ये सोच मध्य पूर्व में अमेरिकी प्राथमिकताओं से काफी ऊपर है।
तनाव खत्म होने की गारंटी नहीं
संघर्ष और उथल-पुथल वाली सोच का नतीजा था कि तेहरान ने दो बार बड़े पैमाने मिसाइल हमले इस्राइली सरजमीं पर किए। इससे पूरा मध्यपूर्व जंगी मुहाने पर पहुंच गया था। फिलहाल इस बात की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही है कि तेल अवीव और तेहरान के बीच खूनी पलटवार का एक और दौर नहीं होगा। तनाव कम करने के लिए वार्ता तो दूर की कौड़ी है, इस दिशा में यूएस प्रशासन के प्रयास भी शून्य ही है। अगर खुली और पूरी जंग होती है तो इसमें देश तो शामिल होगें ही साथ ही कई नॉन स्टेट ऐक्टर्स (प्रॉक्सी) भी शिरकत करेगें। इसका सीधा असर खाड़ी मुल्कों की इक्नॉमी पर पड़ेगा, उसे तबाह होने से कोई रोक नहीं पायेगा। अस्थिरता, शांति संतुलन ध्वस्त होने के साथ ही अब्राहम सहमति उड़न छू हो जायेगी, इससे वाशिंगटन की तयशुदा पॉलिसी पर दुविधाओं के बादल छा जायेगें।
तेहरान को उकसावे में डालती इजरायली कवायतें
अगर ये तस्वीर ना बने तो भी इजरायली तेवर तेहरान के लिए बदहज़मी बने रहते है। ईरान ने साफ कर रखा है कि यहूदी राष्ट्र की पारंपरिक तयशुदा राजनीतिक, वैचारिक, सामरिक और रणनीतिक कवायदें ही उसे उकसाने के लिए काफी है। ये हालात ही उसे नए हथियारों की खोज करने के लिए उकसाते है। कई मौकों पर ईरानी नेतृत्व साफ कर चुका है कि अगर ईरान के वजूद को खतरा महसूस होगा तो वो अपनी सैन्य रीति-नीति में बदलाव लाने के लिए मजबूर होगा। सीधे शब्दों में कहे तो न्यूक्लियर हथियार की ओर उसके कदम तेजी से बढ़ेगे, इससे जुड़ी ईरानी जनसमर्थन की लहर अयातुल्ला अली खामेनेई गाहे-बगाहे महसूस करते रहे है, उनकी तकरीरों में इसकी झलक साफ दिखती है।
बढ़ सकती है, परमाणु हथियारों की होड़
कई सामरिक जानकारों का मानना है कि जिस अंदाज़ में अमेरिका नेतन्याहू साथ खड़ा नज़र आ रहा है, उससे सालों से चल रही बातचीत का दौर बेकार चला जायेगा जो कि ईरानी परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए किया जा रहा था। अगर ऐसा होता है तो दुनिया भर में परमाणु हथियार हासिल करने की होड़ बढ़ेगी। ऐसे में अंकारा और रियाद समेत कई मुल्क न्यूक्लियर हथियार हासिल करने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर देगें। इन हालातों के बीच ग्लोबल क्रूड ऑयल और गैस सप्लाई चैन लगातार कमजोर होती जा रही है। लाल सागर में पैर जमाए हूती मिलिशिया इजरायल और उसके समर्थक देशों को निशाने पर ले रहे है, हूतियों के हमलों से कारोबारी आवाजाही के लिए बड़ा खतरा पैदा हुआ है। उनका मानना है कि गाज़ा संघर्ष थमने के बावजूद उनकी मांगों को दरकिनार किया गया है।
अमेरिका ने लगाया बड़ा दांव
होर्मुज जलडमरूमध्य, बाब अल-मंडेब और स्वेज नहर इन तीन अहम समुद्री रूटों पर हूतियों की सक्रियता बनी हुई है। तिजारती तौर पर दुनिया भर की मांग का करीब 40 फीसदी कच्चा तेल इन्हीं रास्तों से होकर गुजरता है। ईरानी आक्रामकता बढ़ती है तो इस्राइली ज़वाबी कार्रवाई के बाद हूती इन तीनों रास्तों पर बड़ी रूकावटें पैदा करेगें, इसका बुरा असर वाशिंगटन समेत दुनिया के कई हिस्सों पर पड़ेगा। वैश्विक आर्थिक संकट, क्षेत्रीय जंगी संघर्ष और कच्चे तेल-गैस की कीमतों में उछाल के बावजूद बाइडेन प्रशासन की प्राथमिकता नेतन्याहू ही रहेगें। इसके लिए अमेरिका कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहेगा, चाहे इसके लिए उसे संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय जैसे वैश्विक राजनीतिक विमर्श मंचों को भी दरकिनार क्यों ना करना पड़े। आखिर में वाशिंगटन का इजरायल के लिए बिना शर्त समर्थन अमेरिकी विदेश नीति के लिए बड़ा दांव है।
इस लेख के लेखक राम अजोर जो स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल इसके लिए उत्तरदायी नहीं है।
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