स्टानिस्लाव पेट्रोव, वो शख्स जिसने अपने दम पर दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध से बचा लिया था

शीत युद्ध के बाद जब यह खुलासा हुआ कि स्टानिस्लाव पेट्रोव ने किस तरह से दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध से बचाया था, तब उन्हें पुरस्कार देने की होड़ लग गई। उन्हें संयुक्त राष्ट्र में सम्मानित किया गया, ड्रेसडेन शांति पुरस्कार दिया गया। यहां तक कि उनके ऊपर डॉक्यूमेंट्री भी बनी।

मुख्य बातें
  • सोवियत सेना में सैन्य अधिकारी थे स्टानिस्लाव पेट्रोव
  • उनके एक फैसले से शुरू हो सकता था परमाणु युद्ध
  • शीत युद्ध के समय सोवियत संघ और अमेरिका के बीच थी तनातनी

स्टानिस्लाव पेट्रोव, वो शख्स जो अगर नहीं होते तो तीसरा विश्वयुद्ध हो ही जाता, उनके एक फैसले ने दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध से बचा लिया था। अगर वो जरा सा भी विचलित होते तो इस दुनिया का नक्शा कैसा होता, पता नहीं, लेकिन वर्तमान समय के जैसा तो बिलकुल नहीं होता। क्योंकि तब परमाणु युद्ध होना तय था।

कौन थे स्टानिस्लाव पेट्रोव

स्टानिस्लाव येवग्राफोविच पेट्रोव एक सोवियत सैन्य अधिकारी थे। शीत युद्ध के समय वो सोवियत वायु रक्षा बल में लेफ्टिनेंट कर्नल थे। पेट्रोव का जन्म 7 सितंबर 1939 को व्लादिवोस्तोक के पास हुआ था। उनके पिता, येवग्राफ ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लड़ाकू विमान के पायलट थे। उनकी मां एक नर्स थीं।

क्या हुआ था उस दिन

सोवियत वायु रक्षा बल में शामिल होने के बाद 1970 के दशक की शुरुआत में, उन्हें नाटो देशों के बैलिस्टिक मिसाइल हमलों का पता लगाने के लिए नियुक्त किया गया था। 26 सितंबर 1983 की सुबह जब पेट्रोव एक गुप्त बंकर में बैठकर अमेरिकी नेतृत्व वाली नाटो देशों की सेना पर नजर रखे हुए थे, तब उन्हें मिसाइल हमले की चेतावनी मिली। पहले स्क्रीन पर एक मिसाइल दिखा, फिर दो फिर ये बढ़ते गया। जब यह पांच की संख्या पर पहुंचा तो पेट्रोव थोड़े परेशान हुए।

इन मिसाइलों का निशाना सोवियत संघ था। पेट्रोव का काम था जैसे ही हमले की आशंका हो, वो ऊपर के अधिकारी को सूचित करें। पेट्रोव को लगा कि अगर उन्होंने ऊपर के अधिकारियों को यह बताया तो वो शायद ही इसे कंफर्म करें, क्योंकि इसके लिए समय नहीं होगा। वो सीधे परमाणु हमले का आदेश दे देंगे। इसलिए पेट्रोव ने उन्हें नहीं बताया, वो खुद इसकी जांच में जुट गए। पेट्रोव के इस व्यवहार से उनके सहयोगी भी परेशान हो उठे, वो उनसे बार-बार पूछते रहे कि क्या करना है लेकिन पेट्रोव उन्हें इंतजार करने के लिए कहते रहे।

क्यों था खतरा

दरअसल इस अटैक की चेतवनी के कुछ दिन पहले ही सोवियत संघ ने एक कोरियाई एयर लाइन्स फ्लाइट 007 को मार गिराया था। इसके गिरने के बाद से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनातनी बढ़ी हुई थी। शीत युद्ध का दौर था और कभी भी हमले की आशंका दोनों तरफ बनी हुई रहती थी।

हमले की चेतावनी के बाद क्या हुआ

इस हमले की चेतावनी के बाद पेट्रोव इंतजार करते रहे, उसका अध्ययन करते रहे। जब कुछ देर हो गया और मिसाइल हमले का अलार्म वैसे ही बजते रहा, जबकि सोवियत संघ के अंदर इतनी देर में मिसाइल का गिर जाना चाहिए था। साथ ही जब कहीं से भी कोई मिसाइल हमले की खबर नहीं मिली तो पेट्रोव समझ गए कि कुछ तो गड़बड़ है। फिर जब उन्होंने गहनता से जांच की तो पता चला कि सूर्य की किरणों को रडार ने मिसाइल हमले के रूप में प्रदर्शित कर दिया था। जिसके बाद पेट्रोव को अपने उस फैसले को लेकर गर्व हुआ, जिसमें उन्होंने ऊपर के अधिकारियों को इस चेतावनी के बारे में नहीं बताने का फैसला किया था।

इधर कुआं उधर खाई

पेट्रोव अगर इस हमले के बारे में बताते तो युद्ध होना तय था, वो भी परमाणु। अगर नहीं बताए और हमला हो जाता तो भी इसके लिए पेट्रोव को ही जिम्मेदार ठहराया था। मतलब उनके लिए ये फैसला लेना आसान नहीं था।

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शिशुपाल कुमार author

पिछले 10 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए खोजी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में एक अपनी समझ विकसित की है। जिसमें कई सीनियर सं...और देखें

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