क्या एक-एक कर युद्ध की ओर बढ़ते जाएंगे देश? इजरायल-हिजबुल्लाह संघर्ष से डरी दुनिया; सवालों के घेरे में US का रुख
Israel-Lebanon Conflict: अमेरिका, फ्रांस तथा उनके अन्य सहयोगियों ने इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर वार्ताओं के लिए 21 दिन के संघर्ष विराम का आह्वान किया था, लेकिन इजरायल और हिजबुल्लाह दोनों ने ही इसे अनसूना कर दिया। वहीं, इस युद्ध को लेकर अमेरिका और पश्चिम के रुख को लेकर भी सवाल उढ़ रहे हैं।
इजरायल-लेबनान संघर्ष
मुख्य बातें
- इजरायल-हिजबुल्लाह के बीच तनाव जारी।
- पश्चिम देशों की अपील का नहीं हुआ कोई असर।
- दोहरे मोर्चे पर युद्ध लड़ रही इजरायली सेना!
Israel-Lebanon Conflict: मध्य पूर्व में जारी दो बड़े संघर्षों ने पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है। इजरायल एक साथ हिजबुल्लाह और हमास के साथ युद्ध में उलझा हुआ है। कई विश्लेषक और नेताओं ने चेतावनी दी है कि अगर शांति नहीं स्थापित हुई तो और देश भी इस संघर्ष में उलझ सकते हैं। यह संकट पूरे मध्य पूर्व को अपनी चपेट में ले सकता है। फिलहाल जो हालात हैं वे ज्यादा उम्मीद नहीं बांधते हैं।
'हिजबुल्लाह के खात्मे तक जारी रहेगी कार्रवाई'
लेबनान में इजरायल के हवाई हमले जारी हैं। हिजबुल्लाह के साथ संघर्ष में भी इजरायल वहीं भाषा बोल रहा है, जो हमास के साथ लड़ाई में बोलता रहा है। इस बार भी उसका कहना है कि हिजबुल्लाह के खात्मे तक उसकी कार्रवाई जारी रहेगी। हालांकि करीब साल भर के मिलिट्री ऑपरेशन के बाद वह गाजा में हमास को खत्म नहीं कर पाया है।
यहूदी राष्ट्र ने इस बात से इनकार कर दिया कि वह लेबनानी सशस्त्र समूह हिजबुल्लाह और लेबनानी राजनीतिक दलों के साथ युद्धविराम पर सहमत हो गया है। बता दें अमेरिका और सहयोगी देशों ने 21 दिनों के युद्धविराम की अपील की थी।
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'लेबनान में आफत का तूफान'
इससे पहले बुधवार को सुरक्षा परिषद की एक बैठक को संबोधित करते हुए यूएन चीफ एंटोनियो गुटेरस ने भी संकट के क्षेत्रीय रूप धारण कर लेने के खिलाफ आगाह किया। उन्होंने कहा, "लेबनान में आफत का तूफान मचा है। इजरायल और लेबनान को अलग करने वाली सीमा रेखा 'ब्लू लाइन' पर गोलाबारी हो रही है, जिसका दायरा व तीव्रता बढ़ती जा रही है।"
आखिर संघर्ष के बड़े स्तर पर फैल जाने का खतरा क्यों बना हुआ है? इसे समझने के लिए हमें मध्य पूर्व देशों की राजनीतिक पेचीदगियों को समझना होगा।
लेबनानी आर्मी से ज्यादा ताकतवर है हिजबुल्लाह
इजरायल और अरब देशों के संबंध ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण रहे हैं जिसके चलते यह क्षेत्र कई युद्धों को झेल चुका है। यहूदी राष्ट्र हिजबुल्लाह और हमास के साथ संघर्ष में उलझा है। इन दोनों को ईरान का खुला समर्थन हासिल है। विशेषकर हिजबुल्लाह की स्थापना ईरान का अहम रोल रहा है। ऐसा माना जाता रहा है कि हिजबुल्लाह लेबनानी आर्मी से भी ज्यादा ताकतवर है। उसके पास शक्तिशाली और आधुनिक हथियारों की कोई कम नहीं है।
हालांकि, अभी तक ईरान की इजरायल के लेबनान में मिलिट्री एक्शन पर कोई तीखी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं आई है। इसकी वजह ईरान के नवर्निवाचित राष्ट्रपति पेजेशकियन को माना जा रहा है कि जिन्होंने इस पूरे मसले पर अपना रुख काफी नरम रखा है, लेकिन कब तक वह नरम रुख पर टिके रहते हैं यह देखने वाली बात होगी। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है ईरान के कट्टरपंथी रूढ़िवादियों को उनका यह समझौतावादी रुख पसंद नहीं आ रहा है। अगर हिजबुल्लाह के खिलाफ इजरायल अपना अभियान बढ़ता है तो ईरान का चुप बैठे रहना मुश्किल होगा।
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एयर स्ट्राइक को अंजाम देता यहूदी राष्ट्र
गृहयुद्ध में उलझे सीरिया तक भी इस संकट की आंच पहुंचती दिख रही है। वैसे यहूदी राष्ट्र अक्सर सीरिया में एयर स्ट्राइक को अंजाम देता है। उसका दावा है कि यह कार्रवाई वह हिजबुल्लाह के खिलाफ करता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लेबनान में इजरायली मिलिट्री एक्शन के बाद बड़ी संख्या में लोग सीरिया की तरफ पलायन कर रहे हैं।
इजरायल हिजबुल्लाह संघर्ष
तस्वीर साभार : AP
इस बीच, इराकी शिया मिलिशिया कताइब हिजबुल्लाह के एक बयान के बाद यह आशंका उभर आई है कि क्या इराक और इजरायल के बीच भी संघर्ष शुरू हो सकता है। दरअसल, कताइब हिजबुल्लाह ने धमकी दी है कि अगर इजरायल ने इराक पर हमला किया तो वह देश में मौजूद अमेरिकी सेना पर हमला करेगा। मिलिशिया का दावा है कि इराकी एयर स्पेस में अमेरिका और इजरायल की तेज गतिविधियां देखी जा रही हैं और ये 'इराक के खिलाफ जायोनी (इजरायली) हमले की संभावना' का संकेत देती हैं।
इजरायल को निशाना बनाते रहे हैं हूती विद्रोही
यमन के हूती विद्रोही पहले से ही इजरायल के खिलाफ हैं। गाजा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ समर्थन जाहिर करने के नाम पर वे लाल सागर और अदन की खाड़ी से गुजरने वाले इजरायल से जुड़े जहाजों को निशाना बना रहे हैं। अमेरिका और उसके सहयोगियों का मिलिट्री एक्शन भी उन्हें रोकने में सफल नहीं हो पाया है।
वहीं मध्य पूर्व के अन्य देशों में जनता की हमदर्दी हिजबुल्लाह और विशेष रूप से हमास के साथ है। अरब देशों की सरकारों पर लगातार इजरायल के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का दबाव वहीं की जनता की ओर से बना हुआ है।
हाल ही में सऊदी क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान अल ने कहा कि 'पूर्वी येरूशलेम' राजधानी वाले एक 'स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य' के गठन के बिना सऊदी अरब इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं करेगा। क्या क्राउन प्रिंस का ये बयान जनता के इजरायल के प्रति कठोर रुख अपनाने के दवाब की वजह से आया है? क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में ये दोनों मुल्क संबंधों को समान्य बनाने की कोशिश कर रहे थे।
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सवालों के घेरे में पश्चिम की भूमिका
इस पूरे संकट में अमेरिका और पश्चिम की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। अमेरिका जहां एक तरफ शांति की अपील जारी कर रहा है। वहीं, दूसरी तरफ इजरायल को वह खुलकर समर्थन देता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजरायल ने गुरुवार को कहा कि उसे अपने चल रहे सैन्य प्रयासों का समर्थन करने और क्षेत्र में सैन्य बढ़त बनाए रखने के लिए अमेरिका से 8.7 बिलियन डॉलर का सहायता पैकेज मिला है।
पश्चिम की संदेहास्पद भूमिका इस संकट को और भी पेचीदा बनी रही है। वह उन कॉन्सपीरिएसी थ्योरी को बल दे रही है कि पश्चिम संकटग्रस्त मध्य पूर्व में ही अपना फायदा देखता है।
(इनपुट: आईएएनएस)
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अनुराग गुप्ता author
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