मजबूरियां लाईं जिनपिंग-बाइडेन को एक दूसरे के करीब! 'गार्डन डिप्लोमेसी' के भी हैं मायने
जो लोग यहां पर नरेंद्र मोदी को कोसते हैं कि उन्होंने शी जिनपिंग को झूला क्यों झुलाया था। उन्हें डिप्लोमेसी के बारे में नहीं पता कि डिप्लोमेसी में ये सब किया जाता है फिर भले सामने कितना भी कट्टर दुश्मन क्यों ना हो, उससे रिश्ते सुधारने के कुछ एक प्रयास तो किए ही जाते हैं।
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बाग में टहलते जो बाइडेन और शी जिनपिंग।
Xi Jinping Biden Meeting: दुनिया के दो कट्टर दुश्मन। अगर एक गार्डन में एक साथ घूमते हुए दिखें तो दुनिया का दिमाग घूम जाता है कि आखिर इन कट्टर दुश्मनों के बीच चल क्या रहा है। ये दो कट्टर दुश्मन हैं अमेरिका और चीन। जिनके टॉप नेता गार्डन में वॉक करते दिखे हैं। ये तस्वीर अमेरिका के कैलिफोर्निया के पास एक गार्डन की है। जहां अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मिले। डिप्लोमेसी में इस तरह की वॉक बहुत मायने रखती है
याद कीजिए जो लोग यहां पर नरेंद्र मोदी को कोसते हैं कि उन्होंने शी जिनपिंग को झूला क्यों झुलाया था। उन्हें डिप्लोमेसी के बारे में नहीं पता कि डिप्लोमेसी में ये सब किया जाता है फिर भले सामने कितना भी कट्टर दुश्मन क्यों ना हो, उससे रिश्ते सुधारने के कुछ एक प्रयास तो किए ही जाते हैं। डिप्लोमेसी में दुश्मनी ऐसी नहीं होती कि बातचीत बंद कर दी जाती है या सामने वाले से मिला नहीं जाता है या मिल जाए तो कोई बड़ा तूफान आ जाएगा। बाइडेन और शी जिनपिंग भी एक दूसरे को पसंद नहीं करते। लेकिन फिर भी अगर वो मिल रहे हैं। एक साथ वॉक कर रहे हैं तो इसका कोई बड़ा मतलब होगा क्योंकि आप ये देखिए कि ये वही बाइडेन हैं जिन्होंने शी जिनपिंग को डिक्टेटर तक कह दिया था और अब जब शी जिनपिंग से मिले तो उसके बाद भी जिनपिंग को डिक्टेटर कह दिया।
जिनपिंग-बाइडेन के बीच 4 घंटे बातचीत
सोचिए ये सब तब हो रहा है जब बाइडेन ने शी जिनपिंग की अमेरिका में आवभगत की। शी जिनपिंग चीन से अमेरिका के कैलिफोर्निया तक आए। वहां पर बाइडेन से उनकी चार घंटे तक बातचीत हुई। बातचीत में बड़ी बातें भी निकल कर आई। और कुछ पुरानी बातों पर एक दूसरे से टकराव भी हुआ। ताइवान मसले को लेकर अमेरिका और चीन आमने-सामने आते रहते हैं। आपको याद होगा कि ताइवान के मामले में ही अमेरिका और चीन के बीच टकराव बढ़ गया था। क्योंकि अमेरिकी संसद की स्पीकर ताइवान के दौरे पर गई थी और ये चीन को पसंद नहीं आया था। इसके बाद मामला बहुत भड़क गया था। चीन ने अमेरिका से मिलिट्री कम्यूनिकेशन तोड़ लिया था।
कोल्ड वॉर या हॉट वॉर करना नहीं चाहते-जिनपिंग
लेकिन अब उसी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमेरिका के दौरे पर गए थे। जो जिनपिंग चीन से बाहर कहीं और कम ही निकलते हैं। और वहां पर जाकर बाइडेन से मीटिंग के बाद ये फैसला भी हो गया कि अमेरिका और चीन के बीच सैन्य संवाद फिर से शुरू होगा। ताकि दोनों देशों के सेनाओं के बीच कोई मिस कम्यूनिकेशन ना हो। शी जिनपिंग ने कह दिया कि वो किसी के साथ कोल्ड वॉर या हॉट वॉर करना नहीं चाहते और अमेरिका को भी चीन को दुश्मन की तरह नहीं देखना चाहिए।
चीन की आर्थिक हालत खराब, ग्रोथ कम हो रही
चीन अमेरिका को पछाड़ना या उसकी जगह लेना नहीं चाहता। और धरती इतनी बड़ी है कि दोनों शक्तियां एक साथ काम कर सकती हैं। ये बात इसीलिए हो रही हैं क्योंकि अमेरिका और चीन दोनों की अपनी अपनी मजबूरियां हैं। और ये मजबूरियां ही दोनों को दुश्मनी का माहौल छोड़ने को मजबूर कर रही हैं क्योंकि अमेरिका पहले यूक्रेन युद्ध में फंसा था और अब वो इजराइल युद्ध में फंस गया है। उसे यूक्रेन की भी मदद करनी है और इजराइल को भी पैसे हथियार देने हैं। उधर, चीन की आर्थिक हालत खराब है, वहां ग्रोथ कम हो रही है। बेरोजगारी बहुत है। विदेशी कंपनियां छोड़कर जा रही हैं। प्रॉपर्टी मार्केट खस्ताहाल है। चीन की आर्थिक हालत बहुत खराब इसलिए है क्योंकि विदेशी कंपनियां चीन से अपने कारोबार को समेट रही हैं और काफी तेज रफ्तार से हो रहा है क्योंकि अब इन कंपनियों को चीन में अब भविष्य नहीं दिख रहा है।
चीन में विदेशी निवेश माइनस में
चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती, कम ब्याज दरें और अमेरिका से टकराव की वजह से निवेशकों को चीन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं दिख रही 25 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि चीन में विदेशी निवेश माइनस में चला गया है। चीन में डायरेक्ट इनवेस्टमेंट लायबिलिटीज माइनस 11.8 अरब डॉलर रही। जिसका मतलब ये है कि विदेशी कंपनियां चीन में जितना निवेश कर रही हैं उससे ज्यादा पैसा निकाल रही हैं।
एप्पल अपने प्रोडक्शन यूनिट भारत जैसे देशों में स्थापित कर रही
इसके अलावा चीन में निवेश से विदेशी कंपनियों को जो कमाई हो रही है उस कमाई को वो फिर से चीन में नहीं लगा रही बल्कि वो दूसरे देशों में निवेश कर रही हैं। एपल कंपनी जिसके ज्यादातर फोन चीन में बनते हैं, वो अब अपने प्रोडक्शन यूनिट भारत जैसे देशों में स्थापित कर रही हैं। भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.5% है तो चीन की जीडीपी ग्रोथ 5% के आसपास ही है। भारत का टारगेट है कि वो 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। 2030 से पहले भारत जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
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