- सिकरवार पर 250 डकैती और 70 से ज्यादा हत्या का मामला
- सिकरवार ने 70 से 80 दशक के बीच चंबल पर किया था राज
- 17 सितंबर को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े जाएंगे अफ्रीका के 8 चीते
MP News: पान सिंह तोमर की कहानी तो आप सभी ने सुनी और देखी होगी। आज हम ऐसे ही एक दस्यु (डकैत) की कहानी बता रहे हैं। करीब एक दशक तक चंबल में भय व दहशत का पर्याप्त बन चुके रमेश सिंह सिकरवार की। 70 और 80 के दशक के बीच बीहड़ों में राज करने वाले 72 वर्षीय रमेश सिंह सिकरवार पर 250 से ज्यादा डकैती और 70 से ज्यादा हत्या का मामला दर्ज है। हालांकि 1984 में आत्मसमर्पण के बाद यह पूर्व डकैत लगातार समाज सेवा में जुड़ा है और अब यह एक "चीता मित्र" बन चुके हैं। रमेश सिंह सिकरवार अब अफ्रीका से आए चीतों के प्रति स्थानीय निवासियों को जागरूक करने के लिए उन गांवों की यात्रा कर रहे हैं, जहां पर कभी एक डकैत के रूप में उनका शासन चलता था।
दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने अफ्रीका से आठ चीते मंगाए हैं, जिसे 17 सितंबर को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा। जिसके बाद 70 साल पहले विलुप्त हो चुके चीतों का कूनो राष्ट्रीय उद्यान एक बार फिर से केंद्र बन जाएगा। इस कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे, जिसमें अगले पांच वर्षों में 50 चीतों को भारत लाने की योजना है।
दो दर्जन सहयोगियों के साथ कर रहे ग्रामीणों को जागरूक
सिकरवार को श्योपुर और मुरैना के 175 गांवों में "मुखिया" के रूप में जाना जाता है। 1984 में अपने गिरोह के 32 सदस्यों के साथ आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने आठ साल जेल में बिताए और रिहाई के बाद करहल में खेती शुरू कर दी। सिकरवार अपराध से भले ही दूर हो गए हैं, लेकिन गांवों में रॉबिन हुड के रूप में उसका प्रभाव और प्रतिष्ठा आज भी कायम है। यही कारण है कि जब कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को लाने की योजना बनी तो वन विभाग द्वारा सिकरवार से संपर्क किया। जिससे लोगों के अंदर इन चीतों के प्रति डर खत्म कर अच्छे से परिचित कराया जा सके।
श्योपुर संभागीय वन अधिकारी प्रकाश वर्मा ने कहा, हमने सिकरवार को अपनी चिंताओं के बारे में बताया और उनसे मदद मांगी। उन्होंने इस कार्य को एक मिशन के रूप में लिया। सिकरवार ने बताया कि, ग्रामीण उनके पास आकर इन चीतों को लेकर पहले ही डर जाहिर कर चुके थे। क्योंकि जंगल के आसपास रहने वाले ग्रामीण तेंदुए, काले हिरण और नील गाय से पहले ही परेशान हैं। हालांकि अब लोगों के अंदर से चीतों का डर खत्म हो रहा है। सिकरवार और इनके दो दर्जन सहयोगी प्रतिदिन गले में सफेद रंग का "चीता मित्र" दुपट्टा डालकर कुनो जंगल के पास के गांवों में घूमते हैं और इसके बारे में जागरूक करते हैं।