- सरकार ने 2022-23 के लिए करीब 11.58 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेने का लक्ष्य रखा है।
- 7.5 लाख करोड़ रुपये CAPEX का ऐलान किया गया है जिसमें मौजूदा वित्त वर्ष की तुलना में 35% की बढ़ोतरी की गई है।
- घटी इनकम और कम बचत से परेशान मध्यम वर्ग को किसी भी तरह की फौरी राहत नहीं मिली है।
नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट को अगर दस शब्दों में पिरोया जाय तो यह ऐसा बजट है जिसमें 5 राज्यों में चुनाव होने के बाद भी जीरो पॉलिटिक्स है, बढ़ती महंगाई के बाद भी उधार लेकर खर्च बढ़ाने का जोखिम लेने वाला और घटी इनकम और कम बचत से परेशान मध्यम वर्ग को किसी भी तरह की फौरी राहत नहीं देने वाला है।
लोक लुभावन घोषणाओं से रखा दूर
आम तौर पर चुनावों के ठीक पहले किसी भी बजट में रेवड़ियां बांटने की परंपरा रही है। ऐसे में इस तरह की उम्मीद इस बार भी थी। लेकिन वित्त मंत्री ने पूरी तरह से इससे परहेज रखा है। उनका सारा फोकस लॉन्ग टर्म रिजल्ट पर है। और ज्यादा से ज्यादा खर्च बढ़ाने पर है। इसीलिए मिडिल क्लास, गरीब तबका, किसान, कॉरपोरेट और युवा चाहे कोई भी वर्ग हो, उनके लिए नई योजनाओं से ज्यादा मौजूदा योजनाओं के विस्तार पर ही फोकस किया गया है।
इनकम टैक्स को लेकर भी ईज ऑफ लिविंग पर ही फोकस किया गया है। मसलन आईटीआर में सुधार के लिए दो साल का वक्त और कैपिटन गेन टैक्स को 15 फीसदी करना और एनपीएस में टैक्स डिडक्शन में समानता लाने (केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी अब एक जैसे) जैसे ही कदम उठाए गए हैं।
क्या महंगाई बढ़ाएगा बजट
वित्त मंत्री ने जो सबसे बड़ा जोखिम लिया है वह महंगाई को लेकर ही है। क्योंकि उन्होंने साफ कर दिया है कि वह इस समय राजकोषीय घाटे की चिंता नहीं करेंगी और उसके लिए उधार लेकर खर्च बढ़ाएंगी। सरकार ने 2022-23 के लिए करीब 11.58 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेने का लक्ष्य रखा है। जो कि मौजूदा वर्ष की तुलना में करीब 2 लाख करोड़ रुपये है। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 9.7 लाख करोड़ का लक्ष्य रखा गया था।
लेकिन इस कदम का असर आम आदमी की जेब पर पड़ने की पूरी आशंका है। क्योंकि इस समय बांड बाजार में 10 साल के लिए ब्याज दरें करीब 7 फीसदी हैं। ऐसे में अगर केंद्र सरकार को यह कर्ज 7 फीसदी पर मिलेगा तो राज्यों के लिए और महंगा होगा। और जब सरकार महंगा कर्ज लेकर खर्च करेगी तो उसकी भरपाई ऊंचे टैक्स से होगी। तो यहां लगता है कि वित्त मंत्री ने ज्यादा खर्च कर ग्रोथ बढ़ाने के लिए महंगाई को लेकर जोखिम लिया है।
कोटक महिंद्रा लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर महेश बाला सुब्रमण्यन के अनुसार जहां ईंधन और खाद्य मुद्रास्फीति की वजह से कमोडिटी की ऊंची कीमतों के कारण महंगाई को लेकर चिंताएं हैं। वहीं सरकार इसे दरकिनार कर ग्रोथ पर दांव लगा रही है। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 6.9% का राजकोषीय घाटा और अगले वित्त वर्ष के लिए 6.5% का लक्ष्य बहुत अधिक लग सकता है, लेकिन ग्लोबल परिस्थितियों में महामारी के कारण ग्रोथ को गति देने के लिए इसकी आवश्यकता भी है है। अच्छी खबर यह है कि पूरा अतिरिक्त राजकोषीय घाटा कैपेक्स की ओर जा रहा है जिसका अर्थव्यवस्था पर मल्टीप्लायर असर पड़ेगा।
आरबीआई पर प्रेशर
हालांकि वित्त मंत्री का जोखिम लेने वाला यह दांव आरबीआई पर जरूर प्रेशर बढ़ा सकता है। क्योंकि वह इस हफ्ते अपनी मौद्रिक नीति पेश करने वाला है। और उस पर निश्चित तौर पर 14 फीसदी तक पहुंच चुकी थोक महंगाई का प्रेशर रहेगा। ऐसे में कर्ज अगर महंगा होता है तो ग्रोथ पर प्रभावित होगी। ऐसे में शायद वह वित्त मंत्री के रास्ते पर चले और महंगाई के जोखिम को दरकिनार कर ग्रोथ पर दांव लगाए।
क्या करना चाहती हैं वित्त मंत्री
तो उसकी झलक 7.5 लाख करोड़ की एक बड़े CAPEX की घोषणा में दिखती है। जिसमें मौजूदा वित्त वर्ष की तुलना में 35% की बढ़ोतरी की गई है। यह लक्ष्य इस मायने में अहम है क्योंकि इस खर्च का सीधा ग्रोथ पर दिखता है। वित्त मंत्री निवेश-आधारित विकास और रोजगार सृजन के लिए इस तरह का बड़ा दांव चल रही है। इसमें जबसे ज्यादा उम्मीद उन्हें पीएलआई स्कीम से दिख रही है। जिसके जरिए अगले 5 साल में 60 लाख नए रोजगार के अवसर की बात उन्होंने कही है। उन्हें उम्मीद है कि सरकार के इस भारी-भरकम खर्च करने से प्राइवेट सेक्टर भी निवेश के लिए आगे आएगा। जो कि कोविड के बाद से जोखिम लेने से बच रहा है।
वित्त मंत्री ने 2022-23 में 39.44 लाख करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान किया है। यह 2021-22 के 34.83 लाख करोड़ के बजट अनुमान से पांच फीसदी और 37.70 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 4.6 फीसदी ज्यादा है। इसके अलावा राज्यों को निवेश बढ़ाने के लिए एक लाख करोड़ रुपये की वित्तीय मदद दी जाएगी। साथ ही उनके जीएसडीपी के चार फीसदी तक राजकोषीय घाटा ले जाने की इजाजत होगी। इससे भी राज्यों के लिए खर्च करने की गुंजाइश बढ़ेगी।
इस जोखिम पर स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक की क्लस्टर सीईओ (भारत और साउथ एशिया मार्केट) जरीन दारूवाला का कहना है, यह ग्रोथ आधारित बजट है। पिछले 15 साल में कैपेक्स में पहली बार इतना खर्च किया जा रहा है। ज्यादा टैक्स कलेक्शन और रोजकोषीय उपलब्धता की वजह से सरकार के पास अतिरिक्त खर्च की गुंजाइश है। सरकार के बढ़े खर्च से प्राइवेट सेक्टर निवेश में बढ़ोतरी होगी।
विनिवेश पर हकीकत या राजनीति का डर
आम तौर पर उदारीकरण के बाद विनिवेश हमेशा से वित्त मंत्रियों और अर्थशास्त्रियों के लिए ग्लैमरस शब्द रहा है। इसलिए हर बार लंबे-चौड़े लक्ष्य रखे जाते हैं। लेकिन इस बार वित्त मंत्री ने ऐसा नहीं किया है। एक तो मौजूदा वित्त वर्ष के लिए पूर्व लक्ष्य 175000 करोड़ रुपये को घटाकर केवल 78 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है और दूसरा अगले वित्त वर्ष के लिए भी इसे केवल 65 हजार करोड़ रुखा गया है। इसमें सबसे बड़ी बात एलआईसी के आईपीओ के लेकर है। क्योंकि अब दो हिस्सो में आने का बात है। असल में विनिवेश को लेकर प्राइवेट सेक्टर से ठंडा रिस्पांस मिलने की वजह से वित्त मंत्री ने अब हकीकत वाला लक्ष्य रखने की कोशिश की है।
डिजिटल करंसी
इसी तरह वित्त मंत्री ने टेक्नोलॉजी के दौर में तालमेल बिठाते हुए जहां आरबीआई द्वारा डिजिटल करंसी लाने की बात कही है। वहीं डिजिटल एसेट की कमाई पर 30 फीसदी टैक्स लगाकर, मोटी कमाई कर रहे लोगों से सरकार की कमाई में योगदान देने का प्रावधान किया है। हालांकि अभी क्रिप्टो करंसी पर टैक्स को लेकर उन्होंने यही कहा है कि इस पर आ रहा कानून आगे की चीजे क्लीयर करेगा। लेकिन 30 फीसदी टैक्स से सरकार की मंशा जरूर साफ हो गई है, कि वह क्षेत्र को कमाई का बड़ा जरिया मान रही है। और साथ ही आम लोगों को इसके जोखिम से दूर रखना चाहती है।
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