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डिमांड को पटरी पर आने में लंबा समय लगेगा, असर काफी गंभीर : RBI

Updated Aug 26, 2020 | 11:22 IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि अबतक सकल मांग के आकलन से पता चलता है कि खपत पर असर काफी गंभीर है।

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महामारी से प्रभावित मांग को सरकारी खपत से सहारा मिलने की उम्मीद है

मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मंगलवार को कहा कि अर्थव्यवस्था में मांग को पटरी पर आने में लंबा समय लगेगा और इसका कोविड-19 के पहले के स्तर पर पहुंचना सरकारी खपत पर निर्भर करेगा। आरबीआई ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि भारत को सतत वृद्धि की राह पर लौटने के लिए तेजी से और व्यापक सुधारों की जरूरत है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि साल के दौरान अबतक सकल मांग के आकलन से पता चलता है कि खपत पर असर काफी गंभीर है और इसके पटरी पर तथा कोविड-19 के पूर्व स्तर पर आने में लंबा समय लगेगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सोच समझकर की जाने वाली यानी मनमर्जी वाली व्यक्तिगत खपत नदारद है। अर्थव्यवस्था में परिवहन, सेवा, होटल, मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियां विशेष रूप से प्रभावित हैं। इन क्षेत्रों में खपत की हिस्सेदारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 60 प्रतिशत है। आरबीआई के अनुसार आने वाले समय में महामारी से प्रभावित मांग को सरकारी खपत से सहारा मिलने की उम्मीद है। निजी खपत मांग में सुधार को तभी आगे बढाएगी जब यह मजबूत होगी। जबतक खर्च योग्य आय नहीं बढ़ती है और लोग मनमर्जी से खर्च करने की स्थिति में फिर आ जाते हैं तब तक जरूरी खर्च के जरिए ही निजी मांग बढेगी।

रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में हमेशा की तरह आर्थिक वृद्धि का अनुमान नहीं दिया है। हालांकि उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के 2020-21 में 3.7 प्रतिशत और ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) के 7.3 प्रतिशत गिरावट के अनुमान का जिक्र किया है। आर्थिक वृद्धि दर कोविड-19 महामारी से पहले नरम पड़ गयी थी। देश की जीडीपी वृद्धि दर 2019-20 में 4.2 प्रतिशत रही जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से सबसे कम है। पहली तिमाही का जीडीपी आंकड़ा 31 अगस्त को जारी होगा। वैश्विक तथा घरेलू एजेंसियों ने अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान जताया है।

आरबीआई ने कहा कि उच्च आवृत्ति के संकेतक बताते हैं कि गतिविधियों में कमी ऐतिहासक रूप से अभूतपूर्व है। रिपोर्ट के अनुसार देश के कई भागों में ‘लॉकडाउन’ में ढील के बाद मई और जून में जो तेजी दिखी थी, वह जुलाई और अगस्त में हल्की पड़ती नजर आयी। इसका कारण कुछ क्षेत्रों में फिर से ‘लॉकाउन’ लगाया जाना या कड़ाई से उसका पालन करना रहा। यह बताता है कि आर्थिक गतिविधियों में गिरावट दूसरी तिमाही में भी बनी रहेगी।

आरबीआई ने कहा कि महामारी का विश्व अर्थव्यवस्था गहरा प्रभाव पड़ेगा। भविष्य इस बात पर निर्भर है कि कोविड-19 महामारी कितनी तेजी से फैलती है, कबतक बनी रहती है और टीके की खोज कबतक होती है। रिजर्व बैंक ने कहा कि महामारी के बाद के परिदृश्य में तेजी से और व्यापक सुधारों की जरूरत होगी। उत्पाद बाजार से लेकर वित्तीय बाजार, कानूनी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मोर्चे पर व्यापक सुधारों की जरूरत होगी। तभी वृद्धि दर में गिरावट से उबरा जा सकता है और अर्थव्यवस्था को वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ मजबूत और सतत वृद्धि की राह पर ले जाया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के पास वैश्विक वित्तीय संकट में उपलब्ध संसाधनों के मुकाबले कोविड-19 से निपटने को लेकर काफी कम गुंजाइश है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि महामारी के दौरान कर्ज और आकस्मिक देनदारियों के कारण राजकोषीय नीति का रास्ता कठिन होगा।

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