- नियोक्ता और कर्मचारी के लिए भविष्य निधि योगदान की दरों में कटौती की गई है
- इससे कर्मचारियों की टेक एट होम सैलरी बढ़ जाएगी
- इस कदम से 4.3 करोड़ ईपीएफ सदस्यों और 6.5 लाख प्रतिष्ठानों को फायदा होगा
कोरोना वायरस महामारी के कारण लिक्युडिटी संकट से निपटने के लिए, श्रम और रोजगार मंत्रालय ने तीन महीने मई, जून और जुलाई के लिए नियोक्ता और कर्मचारी के लिए भविष्य निधि योगदान की दरों में कटौती की है। मौजूदा मूल वेतन में से 12% योगदान को कम करके 10 प्रतिशत करने के लिए अधिसूचित किया है। यह भविष्य निधि अधिनियम के तहत कवर किए गए प्रतिष्ठानों के सभी वर्गों को कवर करेगा। इस कदम से 4.3 करोड़ सदस्यों और 6.5 लाख प्रतिष्ठानों को फायदा होगा। ईपीएफ प्रशासनिक चार्ज (ईपीएफ मजदूरी का 0.5% न्यूनतम 500 रुपए के तहत) और ईडीएलआई योगदान (मजदूरी का 0.5%) दोनों नियोक्ताओं द्वारा देय में कोई बदलाव नहीं हुआ है। तीन महीने के दौरान योगदान की कम दर (10%) योगदान की न्यूनतम दर है। नियोक्ता, कर्मचारी या दोनों उच्च दर पर भी योगदान कर सकते हैं। जबकि अंशदान की कम दर ईपीएफ संग्रह को लंबे समय में कम कर देगी। लेकिन इससे पेंशन अंशदान में कमी नहीं होगी क्योंकि वेतन का 8.33% (15,000 रुपए की सीमा के तहत) नियोक्ता के ईपीएफ अंशदान से कर्मचारियों के पेशन स्कीम (ईपीएस) में डायवर्ट किया जाएगा।
ईपीएफ का ऐसे करें कैलकुलेशन
ईपीएफ योगदान दर में कटौती होने से कर्मचारियों को अधिक वेतन मिलेगा। यहां तक कि कंपनियों को कर्मचारियों के वेतन में दो प्रतिशत कम देना पड़ेगा। उदाहरण के लिए अगर किसी कर्मचारी का मासिक मूल वेतन 10,000 रुपए है तो अब ईपीएफ के लिए 1000 रुपए काटा जाएगा। अब तक 1,200 रुपए काटा जाता था। कर्मचारियों को ईपीएफ योगदान भी 1200 रुपए के बदले 1000 रुपए हो जाएगा। ईपीएफओ द्वारा जारी किए गए एफएक्यू में कहा गया है कि कॉस्ट ऑफ द कंपनी (सीटीसी) मॉडल की लागत में, यदि 10,000 रुपए मासिक ईपीएफ वेतन है, तो कर्मचारी को नियोक्ता से सीधे 200 रुपए अधिक मिलेंगे क्योंकि नियोक्ता का ईपीएफ/ईपीएस योगदान कम हो जाता है और कर्मचारी के वेतन से भी 200 रुपए कम काटे जाते हैं।
ऐसे मिलेगा अधिक वेतन
कर्मचारियों के मासिक ईपीएफ योगदान शेयर को 12% से घटाकर 10% करने से कर्मचारियों के मासिक वेतन में वृद्धि होगी। सीटीसी में, नियोक्ता के अंशदान भी 12% से घटाकर 10% करने से कर्मचारी के मासिक वेतन में वृद्धि होगी। जहां नियोक्ता कर्मचारी को अतिरिक्त भुगतान के तौर पर में अंतर का भुगतान करता है। कर्मचारियों को एक्स्ट्रा भुगतान टैक्स योग्य होगा। उदाहरण के लिए, 10,000 रुपए की सैलरी पर नियोक्ता और कर्मचारी प्रत्येक को 1,200 रुपए के बजाय 1,000 रुपए का योगदान करते हैं। कर्मचारियों को एक्स्ट्रा 400 रुपए टेक एट होम सैलरी मिलेगी। यानी 10,000 रुपए बेसिक सैलरी है तो अब कर्मचारी को 400 रुपए अधिक मासिक वेतन के साथ मिलेगा। इस भुगतान पर टैक्स लगेगा।
ईपीएफ पर ब्याज दर 8.5%
वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए, ईपीएफ लॉन्ग टर्म के लिए बचाने का एक आदर्श तरीका है बशर्ते कि ग्राहक हर नौकरी में बदलाव पर रुपयों की निकासी ना करे। ईपीएफ में निवेश से धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपए पर टैक्स छूट मिलती है, अर्जित ब्याज टैक्स फ्री होता है और रिटायरमेंट के बाद अंतिम निकासी भी टैक्स फ्री होती है। 2019-20 के लिए ब्याज दर 8.5% है, जो सभी फिक्ड डिपोजिट में सबसे अधिक है।
स्वैच्छिक भविष्य निधि योगदान
चूंकि ईपीएफ में कम योगदान लंबे समय में संग्रह को प्रभावित करेगा, जो कोई नकदी संकट की स्थिति का सामना नहीं कर रहे हैं, वे स्वैच्छिक भविष्य निधि योगदान (वीपीएफ) का विकल्प चुन सकते हैं। हालांकि, एक कर्मचारी को नियोक्ता के साथ चेक करना होगा क्योंकि उनमें से अधिकांश अपने कर्मचारियों को वित्तीय वर्ष की शुरुआत अप्रैल के महीने में वीपीएफ शुरू करने की अनुमति देते हैं। वीपीएफ की ब्याज दर ईपीएफ के समान है। यदि वीपीएफ संभव नहीं है, तो कोई व्यक्ति सार्वजनिक भविष्य निधि में निवेश कर सकता है। लेकिन इसमें ब्याज दर 7.1 प्रतिशत है।