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Coronavirus Impact on economy: कोरोना की चोट से अर्थव्यवस्था भी बीमार, क्या नोटों की छपाई है इलाज?

Updated May 13, 2020 | 14:53 IST

What is the rule for printing notes in India: दरअसल ज्यादा नोट की छपाई नही की जा सकती। इसलिए कई मानकों का रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पालन करता है और उसी आधार पर नोटों की छपाई करता है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
What is the rule for printing of notes in India
मुख्य बातें
  • कोरोना वायरस की वजह से देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है
  • केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है
  • RBI नोटों की छपाई अंधाधुंध नहीं कर सकती है इसके लिए कई मानकों का ध्यान रखना होता है

नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी की वजह से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। कोरोना संकट और लॉकडाउन के मद्देनजर ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के सभी पश्चिमी देशों को अर्थव्यवस्था सहित कई मोर्चे पर बुरी तरह जूझना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने कोरोना संकट के मद्देनजर 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है जो देश की जीडीपी का 10 फीसदी है। सरकार हर मुमकिन कोशिश कर रही है कि कोरोना संकट के मद्देनजर देश के आर्थिक हालात को उबारा जाए और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाई  जाए। एक सवाल बहुत लोगों के जेहन में उठता है कि क्या ऐसा मौके पर सरकार अत्यधिक नोटों को छापकर क्या आर्थिक संकट दूर कर सकती है? आइए जानते है इसे लेकर क्या है नियम और जानकारों की राय।

क्या कहते हैं जानकार

कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर सरकार द्वारा बाजार से कर्ज जुटाने की सीमा में 54 फीसदी की वृद्धि किए जाने के बाद विशेषज्ञ सरकार के घाटे को पूरा करने के लिए एक सीमा तक नये नोट छापे जाने के मत में दिखते हैं। इनके मुताबिक इस समय अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिये व्यय बढ़ाने की जरूरत है और यह नहीं किया गया तो इससे नुकसान उठाना पड़ सकता है, जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कर्ज के लिए रिजर्व बैंक से नोट निकाले जाने के विचार का समर्थन किया था। उन्होंने अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिये सरकारी कर्ज के लिए रिजर्व बैंक द्वारा अतिरिक्त नोट जारी किए जाने और राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की वकालत की। कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने भी गरीबों की मदद करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये लीक से हटकर संसाधनों का प्रबंधन करने का सुझाव दिया है। 

इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने भी सरकार के द्वारा अधिक उधार लेने और राजकोषीय घाटे की कीमत पर अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के विचार का पक्ष लिया है। उनके मुताबिक गरीबों और अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिये इस समय खर्च नहीं करने के नतीजे बहुत गंभीर और अपूरणीय होंगे। देवेंद्र कुमार पंत ने कहा - "इस समय आवश्यकता धन की है। केंद्र सरकार को सबसे अच्छा और सबसे बड़ा कर्जदार होने के नाते, इस असाधारण समय में भारी कर्ज उठाने की जरूरत है और राजकोषीय घाटे व अन्य चीजों को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिये। अभी सिर्फ पैसे की जरूरत है।’

क्या सरकार अपनी मर्जी से नोट छाप सकती है?

सरकार अपनी मर्जी के मुताबिक नोट नहीं छाप सकती बहुत ज्यादा नोट छापने से रुपए की वैल्यू घट जाएगी और महंगाई बढ़ जाएगी नोट छापने का फैसला सरकार, रिजर्व बैंक करते हैं नोट छपाई का काम रिजर्व बैंक का होता है इसमें राजकोषीय, घाटा, विकास दर, , महंगाई, चलन में मौजूद करेंसी जैसे कई कारक होते हैं भारत में मिनिमम रिजर्व सिस्टम के आधार पर नोट छपते हैं इसके तहत रिजर्व बैंक को अपने फंड में हमेशा 200 करोड़ की संपत्ति रखनी होती है। इसमें 115 करोड़ रुपए का सोना और 85 करोड़ की विदेशी संपत्ति रखनी होती है। भारत में देवास, नासिक, मैसूर और सल्बोनी में नोट छापे जाते हैं।

नोट की छपाई में किन बातों का रखा जाता है ध्यान?

आमतौर पर आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नोट यानी मुद्रा  की छपाई सोने का भंडारण और सॉवरेन बांड को ध्यान में रखकर करता है। अगर वह इसका ख्याल नहीं रखे तो महंगाई एकदम से बढ़ेगी और भारतीय रुपये का मूल्य तेजी से गिर जाएगा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की रेंटिंग भी प्रभावित होगी। क्योंकि बाजार में अगर ज्यादा नोट आ जाएंगे तो उससे मुद्रा का अवमूल्यन होगा और वह स्थिति बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं होगी। 

गौर हो कि कोरोना वायरस महामारी के कारण देश भर में अब तक 2,100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है तथा 63 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। वैश्विक स्तर पर, इससे मरने वालों की संख्या 2.79 लाख से अधिक हो चुकी है और 40 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं।
 

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