- भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में मंदी में जा सकती है
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रोत्साहन उपायों का प्रभाव तीन प्रमुख पहलुओं पर निर्भर करेगा
- कोरोना वायरस महामारी के बाद उपभोक्ता मांग में सुधार में देरी होगी
नई दिल्ली : कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया है। तब से लेकर चौथी बार लॉकडाउन को बढ़ाया गया। लॉकडाउन की वजह से पूरा देश थम सा गया। आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो गई हैं। अब धीरे-धीरे फिर से शुरू की जा रही हैं। लेकिन लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला है। एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में मंदी में जा सकती है।
आय और रोजगार में कमी
डन एंड ब्रैडस्ट्रीट की ताजा आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि आय और रोजगार में कमी के साथ कोरोना वायरस महामारी के बाद भी काफी समय तक उपभोक्ता सतर्कता बरतेंगे। इससे उपभोक्ता मांग में सुधार में देरी होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की आर्थिक वृद्धि में सुधार इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार की ओर से दिए गए प्रोत्साहन पैकेज को किस तरीके से कितने समय में क्रियान्वित किया जाता है।
प्रोत्साहन उपायों का प्रभाव 3 पहलुओं पर
डन एंड ब्रैडस्ट्रीट इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रोत्साहन उपायों का प्रभाव तीन प्रमुख पहलुओं, लॉकडाउन को हटाने की अवधि, पैकेज के क्रियान्वयन की क्षमता और इसमें लगने वाले समय पर निर्भर करेगा। रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि सरकार की ओर से दिए गए उम्मीद से बड़े पैकेज से आर्थिक गतिविधियों को फिर शुरू करने में मदद मिलेगी।
रेपो रेट में कटौती से मिलेगी अर्थव्यवस्था को रफ्तार
डन एंड ब्रैडस्ट्रीट ने कहा कि इसके अलावा रिजर्व बैंक ने भी रेपो रेट में 0.40% की कटौती करने के साथ लोन की किस्त के भुगतान के पर रोक तीन महीने और बढ़ा दी है। इससे भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में मदद मिलेगी। सिंह ने कहा कि सरकार ने जिन भी उपायों की घोषणा की है वे सकारात्मक हैं। ज्यादातर उपाय अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष को मजबूत करने के बारे में हैं। लेकिन यह ध्यान देने की जरूरत है कि आपूर्ति के साथ-साथ मांग भी बढ़नी चाहिए।