- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात सरकारों ने श्रम कानूनों में संशोधन किया या संशोधन का प्रस्ताव किया है
- इसके बाद इन संशोधनों का विरोध होना शुरू हो गया
- नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने इसे स्पष्ट करने का प्रयास किया
नई दिल्ली : कोरोना वायरस की वजह से 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन जारी है। इस वजह से देश भर में आर्थिक गतिविधियां थम गई थी। अब धीरे-धीरे उसमें गति देने का प्रयास किया जा रहा है। इस दरम्यान उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात सरकारों ने श्रम कानूनों में संशोधन किया या संशोधन का प्रस्ताव किया है ताकि उद्योग और कंपनियों को राहत मिल सके और रोजगार का निर्माण हो सके। इसके बाद इन संशोधनों का विरोध होना शुरू हो गया। विपक्षी पार्टियां कहने लगी कि ये सरकारें मजदूरों के खिलाफ काम कर ही हैं। सियासत गरमाने के बाद नीति आयोग ने इस स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए कहा है कि सरकार श्रमिकों के हितों का संरक्षण करने को प्रतिबद्ध है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने पीटीआई से कहा कि सुधारों का मतबल श्रम कानूनों को पूरी तरह समाप्त करना नहीं है। कुमार ने कहा कि मेरे संज्ञान में अभी आया है कि केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने अपने रुख को सख्त करते हुए राज्यों को स्पष्ट किया है कि वे श्रम कानूनों को समाप्त नहीं कर सकते हैं, क्योंकि भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) में हस्ताक्षर करने वाले देशों में है।
श्रम कानूनों में सुधार का मतलब समाप्त करना नहीं
उन्होंने कहा कि ऐसे में स्पष्ट है कि केंद्र सरकार का मानना है कि श्रम कानूनों में सुधार से मतलब श्रम कानूनों को समाप्त करने से नहीं है। सरकार श्रमिकों के हितों का संरक्षण करने को प्रतिबद्ध है। उनसे पूछा गया था कि क्या उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों द्वारा श्रम सुधार श्रमिकों के लिए किसी तरह का सुरक्षा जाल बनाए बिना किए जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल में एक अध्यादेश के जरिए विभिन्न उद्योगों को तीन साल तक कुछ निश्चित श्रम कानूनों से छूट दी है। कोरोना वायरस की वजह से प्रभावित आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार देने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। मध्य प्रदेश सरकार ने भी राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बीच आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन के लिए कुछ श्रम कानूनों में बदलाव किया है। कुछ और राज्य भी इसी तरह का कदम उठाने जा रहे हैं।
आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित
देश की वृहद आर्थिक स्थिति पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि शेष दुनिया की तरह भारत भी कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभाव से जूझ रहा है। इस महामारी की वजह से चालू वित्त वर्ष के पहले दो माह के दौरान आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। रिजर्व बैंक ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर नकारात्मक रहेगी। इस पर कुमार ने कहा कि नकारात्मक वृद्धि का अभी पूरी तरह अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अभी घरेलू और वैश्विक मोर्चे पर बहुत सी चीजें अज्ञात हैं।
आर्थिक पैकेज का मकसद कुल मांग में सुधार लाना
कुमार ने कहा कि सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का मकसद सिर्फ उपभोक्ता मांग नहीं, बल्कि कुल मांग में सुधार लाना है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ने प्रणाली में नकदी बढ़ाने के कई उपाय किए हैं। वित्त मंत्री भी बैंकों को ऋण का प्रवाह बढ़ाने को प्रोत्साहित कर रही हैं। इससे अर्थव्यवस्था की कुल मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि अब महत्वपूर्ण यह है कि वित्तीय क्षेत्र विशेष रूप से बैंक जोखिम उठाने से बचें नहीं और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) सहित अन्य क्षेत्रों को ऋण का प्रवाह बढ़ाएं। यदि ऐसा होता है तो मांग पैदा होगी और हम देश में आर्थिक गतिविधियों में सुधार देखेंगे।
सभी विकल्पों पर विचार कर रही है सरकार
यह पूछे जाने पर कि क्या रिजर्व बैंक को घाटे का मौद्रिकरण करना चाहिए, कुमार ने कहा कि कि सरकार प्रोत्साहन पैकेज के वित्तपोषण को सभी संभावित विकल्पों पर विचार कर रही है। इस संभावना कि चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियां भारत का रुख कर सकती हैं, कुमार ने कहा कि यदि हम कंपनियों को लक्ष्य करने के लिए सही नीतियां लाते हैं, तो मुझे कोई वजह नजर नहीं आती कि ये कंपनियां भारत नहीं आएं।