- वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.6% रही।
- दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.1% रही।
- तीसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 4.7% रही।
नई दिल्ली : वित्त वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) डेटा आज जारी किया गया है। इस तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 3.1% रही है, अनुमान 2.1% लगाया गया था। जबकि पूरे वित्त वर्ष का जीडीपी ग्रोथ 4.2 प्रतिशत रहा है जबकि अनुमान 4.4% लगाया गया था। सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों को व्यापक आर्थिक प्रदर्शन पर संकेत के लिए हर तीन महीने पर जारी किया जाता है। जनवरी-मार्च का जीडीपी आंकड़ा पहला बड़ा आधिकारिक अनुमान है जो हमें यह एहसास दिलाता है कि कोरोना वायरस के प्रकोप ने भारतीय अर्थव्यवस्था को किस हद तक प्रभावित किया है। वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.6%, दूसरी तिमाही में 5.1%, तीसरी तिमाही में 4.7% रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 5% वृद्धि दर का लगाया था अनुमान
देश की जीडीपी की वृद्धि दर बीते वित्त वर्ष 2019-20 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में घटकर 3.1% पर आ गई । राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। वृद्धि दर के आंकड़ों पर कोविड-19 संकट का प्रभाव भी पड़ा है। इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 5.7% रही थी। बीते पूरे वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 4.2% पर आ गई है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 6.1% रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने 2019-20 में आर्थिक वृद्धि दर 5% रहने का अनुमान लगाया था। एनएसओ ने इस साल जनवरी और फरवरी में जारी पहले और दूसरे अग्रिम अनुमान में वृद्धि दर 5% रहने का अनुमान लगाया था। कोरोना वायरस महामारी की वजह से जनवरी-मार्च, 2020 के दौरान चीन की अर्थव्यवस्था में 6.8% की गिरावट आई है। जनवरी-मार्च के दौरान दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियां सुस्त रहीं, जिसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा।
पूरी दुनिया में 11 मार्च को कोरोना वायरस को महामारी घोषित करने के बाद भारत ने 25 मार्च से देशव्यापी बंद की घोषणा की। तब से, लॉकडाउन को चार बार बढ़ाया गया है। सैद्धांतिक रूप से, लॉकडाउन ने मार्च के अंतिम सप्ताह में ही अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। लेकिन, वास्तव में, देशव्यापी लॉकडाउन के प्रभाव में आने से बहुत पहले अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई थी। ऐसा इसलिए है क्योंकि मार्च की शुरुआत से लोगों की आवाजाही में काफी गिरावट आई थी। इस कारण से, मार्च के महीने में ही कोरोना वायरस के प्रभाव अर्थव्यवस्था पहले से ही दिखाई देने लगा था।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का अनुमान
उधर रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा है कि भारत अब तक की सबसे खराब मंदी की स्थिति का सामना कर रहा है। आजादी के बाद यह चौथी और उदारीकरण के बाद यह पहली मंदी है, जो कि सबसे भीषण है। रेटिंग एजेंसी के मुताबिक, कोविड-19 महामारी की वजह से वित्तीय वर्ष 2021 (चालू वर्ष) में भारतीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत की कमी आई है। वहीं इसकी पहली तिमाही में 25% की बड़ी गिरावट की संभावना है। क्रिसिल का मानना है कि वास्तविक आधार पर करीब 10% सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) स्थायी तौर पर नष्ट हो सकता है। ऐसे में महामारी से पहले जो वृद्धि दर देखी गई है, उसके मुताबिक इसे ठीक होने में कम से कम तीन साल का वक्त लग जाएगा। क्रिसिल ने अपने पहले के अनुमान को संशोधित करते हुए और भी नीचे कर दिया है। एजेंसी ने कहा, इससे पहले 28 अप्रैल को हमने वृद्धि दर के अनुमान को 3.5% से कम कर 1.8% किया था। उसके बाद से स्थिति और खराब हुई है।
गैर-कृषि जीडीपी में 6% की होगी गिरावट
क्रिसिल ने कहा है कि हम उम्मीद करते हैं कि गैर-कृषि जीडीपी में 6% की गिरावट दर्ज की जाएगी। हालांकि कृषि क्षेत्र से कुछ राहत मिलने की उम्मीद जरूर है और इसमें 2.5 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पिछले 69 सालों में देश में केवल तीन बार 1958, 1966 और 1980 में मंदी आई थी। इसके लिए हर बार कारण एक ही था और वह था मानसून का झटका। इस वजह से खेती-बारी पर काफी बुरा असर पड़ा और अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ।
चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कुछ अलग
क्रिसिल ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कुछ अलग है, क्योंकि इस बार कृषि के मोर्चे पर राहत है और यह मानते हुए कि मानसून सामान्य रहेगा। यह झटके को कुछ कम जरूर कर सकता है। रेटिंग एजेंसी के अनुसार, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही सर्वाधिक प्रभावित हुई है। न केवल गैर कृषि कार्यों, बल्कि शिक्षा, यात्रा और पर्यटन समेत अन्य सेवाओं के लिहाज से पहली तिमाही बदतर रहने की आशंका है। इतना ही नहीं इसका प्रभाव आने वाली तिमाहियों पर भी दिखेगा। रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं।
लंबे समय तक प्रभावित रह सकती हैं आर्थिक गतिविधियां
उन राज्यों में भी आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक प्रभावित रह सकती हैं, जहां कोविड-19 के मामले ज्यादा हैं। मार्च में औद्योगिक उत्पादन में 16 फीसदी से अधिक की गिरावट आई। अप्रैल में निर्यात में 60.3 फीसदी की गिरावट आई और नए दूरसंचार ग्राहकों की संख्या 35 फीसदी कम हुई है। इतना ही नहीं रेल के जरिए माल ढुलाई में सालाना आधार पर 35 प्रतिशत की गिरावट आई है।