- भारतीय रुपये के कमजोर होने से महंगाई बढ़ सकती है।
- डॉलर की मजबूती से आयात महंगा हो जाएगा।
- इस साल की शुरुआत से ही रुपया डगमगा रहा है।
नई दिल्ली। आज भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले (Rupee vs Dollar) 80 से भी नीचे गिर गया। शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 पर आ गया। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत पिछले आठ सालों में 16.08 रुपये यानी 25.39 फीसदी फिसल चुकी है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में विनिमय दर 63.33 रुपये प्रति डॉलर थी।
मजबूत हो रहा है डॉलर
इस साल की शुरुआत से रुपया अब तक 7.6 फीसदी गिर चुका है। भारतीय रुपये के नुकसान का मतलब अमेरिकी मुद्रा के लिए लाभ है। इस साल की शुरुआत से डॉलर में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा रेपो रेट में की गई वृद्धि से भी रुपये में कमजोरी का सिलसिला नहीं रुका है क्योंकि देश के जून व्यापार घाटे के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद चालू खाता घाटा बढ़ रहा था।
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क्यों कमजोर हो रहा है रुपया?
दरअसल रूस और यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) की वजह से भू-राजनीतिक संकट और अनिश्चितताओं ने ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं के संकट को और बढ़ा दिया। यह अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि वे अभी महामारी के कारण हुई मंदी से उबर रही थीं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा, उच्च वैश्विक कच्चे तेल की कीमत (Crude oil Price) और बढ़ती मुद्रास्फीति (Inflation) ने भी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की परेशानियां बढ़ा दी है।
रुपये की कमजोरी का एक अन्य प्रमुख कारण विदेशी पोर्टफोलियो कैपिटल का आउटफ्लो है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने 2022-23 में अब तक भारतीय इक्विटी बाजारों से लगभग 14 अगब डॉलर की निकासी की है।
वैश्विक कारणों से गिर रहा है रुपया: वित्त मंत्री
सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने लोकसभा में कहा था कि रूस-यूक्रेन संकट, कच्चे तेल के बढ़ते दाम और वैश्विक वित्तीय स्थितियों के सख्त होने की वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से लगभग अरबों डॉलर निकाल लिए हैं, जिससे मुद्रा पर असर पड़ा है। हालांकि ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी मुद्राएं अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की तुलना में ज्यादा गिरी हैं। ऐसे में इस साल इन मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया मजबूत हुआ है।
गिरावट का असर कैसे होगा?
रुपये में गिरावट का सबसे प्रमुख असर आयातकों पर होगा, जिन्हें अब इम्पोर्ट के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। रुपये की कमजोरी से आयात महंगा हो जाएगा। भारत कच्चा तेल, कोयला, प्लास्टिक सामग्री, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वनस्पति तेल, फर्टिलाइजर, मशीनरी, सोना, कीमती और अर्ध-कीमती स्टोन, आदि आयात करता है। हालांकि रुपये के मूल्य में गिरावट से निर्यात सस्ता होगा।
इसके अलावा, विदेश में पढ़ाई करने का लक्ष्य बना रहे छात्रों पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि अब फीस में वृद्धि देखने को मिलेगी। रेमिटेंस (वह पैसा जो विदेश में रहने वाले लोग अपने परिवार को भारत में भेजते हैं) की बात करें, तो अब इसकी लागत ज्यादा होगी क्योंकि वे रुपये के संदर्भ में ज्यादा पैसे भेजेंगे।