भारतीय स्टॉक मार्केट में हाल के समय में प्रारंभिक सार्वजनिक ऑफरिंग/ इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) की बाढ़ सी आ गई है। स्टॉक इन्डेक्स के अब तक के सबसे उच्च स्तर पर ट्रेड करने के साथ, बाजार में शीघ्र ही नए आईपीओ के आने के साथ ही, नए शेयरों को जारी करने का इस तरह का जोश देखने की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन, निवेश करने से पहले पूंजी बाजार में प्रवेश करने वाले प्रत्येक न्यू एन्ट्रेंट का मूल्यांकन विभिन्न फैक्टर्स के आधार पर किया जाना चाहिए क्योंकि जिस तरह से मार्केट इंटरमीडियरीज द्वारा उन्हें बताया जा रहा है, वे उतने आकर्षक नहीं भी हो सकते हैं। इसलिए, निवेशकों के लिए यह समझदारी की बात होगी की वे आईपीओ में निवेश करने से पहले पर्याप्त सावधानी बरतें, क्योंकि कभी-कभी इस तरह के निवेश जितने दिखाई देते हैं, उससे अधिक जोखिमपूर्ण हो सकते हैं।
आगे बढ़ने से पहले, आइये पहले यह समझते हैं कि आईपीओ होता क्या है?
प्रारम्भिक सार्वजनिक ऑफरिंग (आईपीओ), निवेशकों को शेयर जारी करके स्टॉक मार्केट से पूंजी जुटा कर किसी निजी रूप से धारित कंपनी को पब्लिक कंपनी बनाने की प्रक्रिया को कहा जाता है। आईपीओ से निजी फर्में अपनी आने वाली परियोजनाओं या विस्तार के लिए फंड जुटाने में समर्थ होती हैं और इसके बाद कंपनी की सार्वजनिक रूप से स्क्रूटनी किया जाना संभव होता है। स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की लिस्टिंग से कंपनी को अपना वास्तविक मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इस प्रकार की ऑफरिंग से आम निवेशक कंपनी के भावी विकास में भागीदारी करने में सक्षम होते हैं।
ऐसा कहने के बाद, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि सभी आईपीओ, सफल नहीं रहते हैं। इससे पहले अनेक ऐसे इश्यू रहे हैं जो कामयाब साबित नहीं हुए, जबकि काफी इश्यू सफल रहे और वे आज भी निवेशकों के निवेश में बढ़ोतरी कर रहे हैं। इस प्रकार, निवेशक को आईपीओ में निवेश करते समय बहुत अधिक सावधानी और बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना चाहिए।
यहां पर उन 5 सावधान करने वाले कदमों को बताया गया है जिनका आईपीओ में पैसा लगाते समय इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
डीआरएचपी को गहराई से पढ़ें
नई इकाई के ड्राप्ट रेड हेरिंग प्रोस्पेक्ट्स या डीआरएचपी में आईपीओ पेश करने वाली नई इकाई के बारे में विस्तृत जानकारी शामिल की गई होती है। डीआरएचपी, जिसे सिक्योरीटीज मार्केट रेगुलेटर यानी सिक्योरीटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (एसईबीआई) के यहां सब्मिट कराया जाता है, एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है और इसमें कंपनी के बारे में विस्तृत जानकारी शामिल की जाती है, जिसमें इसका कारोबार, पिछला परफॉर्मेंस, सम्पत्ति और देयताएं, आईपीओ के ज़रिए प्राप्त फंड्स की क्यों जरूरत है और वह इस फंड का क्या करेगी, और संभावित जोखिम फैक्टर्स, जो कंपनी के परफॉर्मेंस को प्रभावित कर सकते हैं। उसका ब्यौरा भी शामिल होता है, और इस प्रकार, शेयर की कीमत तय की जाती है। निवेश करने से पहले आपको इसे गहराई से पढ़ने में कोई गलती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि डीआरएचपी में वह महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है जिससे आपको कारोबार को बेहतर समझने में मदद मिल सकती है और आप एक समझदार निवेशक बन सकते हैं।
जुटाई गई पूंजी का उद्देश्य
कंपनी को पूंजी की आवश्यकता के बारे में 'क्यों चाहिए' फेक्टर को बहुत अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यदि कंपनी कर्ज में डूबी है और डीआरएचपी में यह उल्लेख किया जाता है कि प्राप्त फंड्स का इस्तेमाल मौजूदा कर्ज को चुकाने के लिए किया जाएगा, तो निवेशकों को इस प्रकार के इश्यू के प्रति सावधान हो जाना चाहिए। लेकिन, यदि उपयोग कर्ज के भुगतान और साथ ही विस्तार, दोनों उद्देश्यों से किया जाएगा, तो आप निवेश करने पर विचार कर सकते हैं। यदि कंपनी पहले से लाभ के साथ आगे बढ़ रही है और उसके पास समुचित कैश बैलेंस है, और एकमात्र अपने कारोबार में विस्तार करने और भावी लाभ को प्राप्त करने के लिए जुटाई जाने वाली पूंजी का इस्तेमाल करना चाहती है, तो ऐसे इश्यू में निवेश करना जरूरी हो जाता है।
प्रोमोटर्स को जानिए
कंपनी को चलाने वाले लोगों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इसमें फर्म के प्रोमोटर्स और मैनेजमेंट में अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी शामिल होते हैं। क्योंकि यह व्यक्ति कंपनी के लिए ड्राइविंग फोर्स हैं, इसलिए विकास की संभावनाएं उनकी सही कारोबारी निर्णय लेने की योग्यता पर निर्भर करती हैं। निवेशकों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि महत्वपूर्ण मैनेजमेंट अधिकारियों द्वारा कितने समय उस कंपनी में बिताया गया है।
संभावित ग्रोथ ड्राईवर्स
विभिन्न ग्रोथ ड्राईवर्स में कंपनी जिस सेक्टर में काम करती हैं, उसमें इसकी पोजिशन क्या है, इसका मार्केट शेयर कितना है, इसके उत्पादों की एक्सेसिबिलिटी और विजिबिलिटी कितनी है, भौगोलिक विस्तार कितना है, विस्तार योजनाएं क्या हैं, अनुमानित प्रोफिटेबिलिटी, आपूर्ति सीरीज, संकट को झेलने की क्षमता और कार्यकुशलता जैसे फेक्टर्स से भावी कारोबारी की संभावनाओं को निर्धारित किया जाता है।
जोखिम फैक्टर्स
कंपनी द्वारा अपने डीआरएचपी में बताए गए जोखिम फैक्टर्स पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ये फिल्टर्स की तरह काम करते हैं और जब बात आईपीओ में निवेश करने की आती है, तो इन्हीं के आधार पर तय किया जाता है कि क्या आईपीओ में निवेश किया जाए अथवा नहीं। कानूनी मुकदमेबाजी से लेकर मौसमी की आपदाएं और ब्याज दरों में नीतिगत परिवर्तन आदि अनेक जोखिम फैक्टर्स हो सकते हैं, जो कंपनी की भावी विकास संभावनाओं को बाधित कर सकते हैं।
अंत में
किसी अन्य निवेश की ही तरह, निवेश करने से पहले अपनी जोखिम उठाने की क्षमता का मूल्यांकन करें। आपको अपनी जोखिम को उठाने की क्षमता के अनुसार ही निवेश करना चाहिए। यदि बाजार में भागीदारी करने वालों के अनुसार कारोबार बहुत अधिक जोखिम भरा लगता है, और आपकी जोखिम को उठाने की योग्यता से मेल नहीं करता है, तो आईपीओ में निवेश करने से बचना ही बेहतर होगा। इसके अलावा, ऑफर की जाने वाली वैल्यूएशंस, विकास की संभावनाओं से मेल नहीं करती हैं, तो आपको इससे बचना चाहिए।
किसी आईपीओ पर विचार करते समय अपनी खुद की रिसर्च करने पर विचार करना चाहिए। नए इश्यू को शीघ्रतापूर्वक पैसा कमाने के इंस्ट्रुमेंट नहीं माना जाना चाहिए। और इसी के साथ-साथ, समान रूप से यह भी सच है कि आपको हर आईपीओ में निवेश करने की जरुरत नहीं है। आप कितना जोखिम उठा सकते हैं, इस बात के आधार पर फैसला करना उपयुक्त रहता है। यहां कहना जरूरी है कि समझदार निवेशक लंबी अवधि में बेहतर परफॉर्म करते हैं।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)