- देश के ज्यादातर शहरों में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें आसमान पर
- पेट्रोल की कीमत 100 के करीब तो डीजल 80 के पार
- पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाए जाने पर विचार के संकेत
नई दिल्ली। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में आग लगी हुई है। देश के ज्यादातर शहरों में पेट्रोल 100 के करीब तो डीजल 90 के पार है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल के करीब है। विपक्षी दल तंज कसते हुए कहते हैं कि सीता के देश नेपाल में पेट्रोल और डीजल की कीमते नियंत्रण में है, रावण के देश श्रीलंका में पेट्रोलियम उत्पाद नियंत्रण में हैं तो भारत में कीमतें बेलगाम क्यूं हैं। यह बात अलग है कि जो विपक्षी दल आवाज उठा रहे हैं जब वो सरकार में थे हालात उनके नियंत्रण से बाहर थी। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और उससे निपटने का तरीका क्या है।
जीएसटी के दायरे में ना लाने के लिए दो तर्क
जानकार कहते हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने से राज्य दो वजहों से परहेज करते हैं। पहली वजह तो यह है कि जीएसटी के दायरे में ज्यादातर सामानों के आने की वजह से राज्य अब सीधे सीधे टैक्स इकट्ठा नहीं कर पाते हैं, उन्हें अपने बकाये के लिए केंद्र सरकार की तरफ देखना पड़ता है। बंगाल और पंजाब जैसे राज्य बार बार आरोप लगाते हैं उनके साथ सौतेला व्यवहार होता है। केंद्र सरकार जीएसटी बकाया देना है लेकिन उसमे तरह तरह के रोड़े अटकाए जा रहे हैं और उसका असर राज्य के विकास पर पड़ रहा है।
राजस्व हानि का खतरा
दूसरा पक्ष यह है कि पेट्रोलियन उत्पादों पर दो हिस्सों में टैक्स लगता है। एक तो केंद्र सरकार बेस प्राइस पर एक्साइज ड्यूटी लगाती है तो दूसरी तरफ अपनी तरफ से वैट लगाती हैं और इस तरह से राज्य को उन्हें राजस्व हासिल होता है। राज्यों को डर है कि अगर पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया गया तो उन्हें राजस्व की कमी का सामना करना पड़ेगा और वो जनहित के काम नहीं कर सकेंगे। यह सबसे बड़ी वजह है कि राज्य सरकारें इन्हें जीएसटी के दायरे से बाहर रखना चाहती हैं।
वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर का क्या कहना है
वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने संसद में कहा था कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सभी सरकारों को मिलजुल कर सोचने की जरूरत है। पेट्रोलियम पदार्थों की बेलगाम कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए जीएसटी के दायरे में लाना प्रभावी कदम है लेकिन इसके लिए जीएसटी काउंसिल से अनुमोदन होना जरूरी है। हालांकि विपक्ष खासतौर से कांग्रेस का कहना है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गेंद राज्यों के पाले में डालकर खुद को आजाद रखना चाहती है।