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Chandigarh News: ‘चंडी मंदिर’ से मिला चंडीगढ़ को नाम, मां ने अजुर्न को दिया था महाभारत विजय का वरदान

 Chandi Mandir
Updated Sep 24, 2022 | 16:02 IST

Chandigarh News: शिवालिक पहाड़ियों के बीच बसे प्राचीन चंडी मंदिर का इतिहास 5000 साल पुराना है। इस मंदिर को एक साधु ने तप के बल पर स्‍थातिप किया था। कहा जाता है कि वनवास के दौरान यहां पर पांडव रुके थे और अर्जुन ने यहां पर अपनी तपस्‍या से मां को खुश कर तेजस्‍वी तलवार और युद्ध में विजय का वारदान हासिल किया था।

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 Chandi Mandir Chandi Mandir
तस्वीर साभार:&nbspTwitter
चंडीगढ़ का प्राचीन चंडी मंदिर
मुख्य बातें
  • पांच हजार साल प्राचीन इस मंदिर को एक साधु ने किया था स्‍थापित
  • अर्जुन ने हासिल किया था तेजस्‍वी तलवार और युद्ध विजय का वारदान
  • प्रथम राष्ट्रपति ने इस मंदिर के नाम पर रखा था चंडीगढ़ शहर का नाम

Chandigarh News: शारदीय नवरात्र 26 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। शहर के सभी मंदिरों में इसकी तैयारी जोरशोर से चल रही है। तमाम मंदिरों को रोशनियों व फूलों से सजाया जा रहा है। इन मंदिरों में सबसे खास है चंडी मंदिर। इस मंदिर के नाम से ही चंडीगढ़ शहर को उसका नाम मिला। नवरात्रि में यहां पर हजारों-लाखों भक्‍त पहुंचकर आस्‍था की डुबकी लगाते हैं। पंचकूला से पिंजौर जाने वाली सड़क पर शिवालिक पहाड़ियों के बीच बसे इस प्राचीन मंदिर का इतिहास करीब 5000 वर्ष पुराना बताया जाता है।

मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हुए मंदिर प्रबंधक माता निर्मला देवी कहती है कि लोक कथाओं के अनुसार यहां पर एक साधु तप किया करते थे। वर्षों की तपस्‍या के बाद उन्‍हें एक मूर्ति मिली जो मां दुर्गा की थी। इस स्‍वरूप में मां महिषासुर का वध कर उसके ऊपर खड़ी थीं। साधु ने मां भगवती के इस स्‍वरूप को वहीं पर स्‍थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। साधु ने यहां पर घास, मिट्टी और पत्थर से मां का एक छोटा मंदिर बनाया और उसे चंडी मंदिर नाम दिया। इसके बाद मां के दरबार में आने वाले लोगों की मनोकामना पूरी होने के कारण मां का यह दरबार दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया।

वनवास के दौरान पांडव भी आए थे इस मंदिर

किवदंती के अनुसार कहा जाता है कि पांच पांडव अपने 12 वर्ष के वनवास के दौरान घूमते हुए यहां पर आए थे और चंडी माता का मंदिर देखा यहां पर ठहराव किया। कहा जाता है कि यहां पर अर्जुन ने पेड़ की शाखा पर बैठकर मां की तपस्या की थी, जिससे खुश होकर माता चंडी ने अजुर्न को तेजस्वी तलवार व जीत का वरदान दिया था। यहीं से पांडव कुरुक्षेत्र गए और महाभारत के युद्ध में वियज हासिल की। माता निर्मला देवी ने बताया कि इस मंदिर में अब मां की सेवा और देखभाल पूर्वज साधु महात्माओं की 62वीं पीढ़ी कर रही है। इस समय उनकी बेटी महंत बाबा राजेश्वरी जी गद्दी पर विराजमान हैं।

प्रथम राष्ट्रपति ने मां के दर्शन कर दिया था शहर को चंडीगढ़ नाम

सूरत गिरि जी महाराज 1953 में मंदिर के महंत थे। उस समय भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और पंजाब के गवर्नर सीपीएन सिंह मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आए थे। मंदिर के इतिहास और महत्व से प्रभावित डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उस समय घोषणा की थी कि अब चंडी माता के नाम पर शहर बसाया जाएगा। जिसके बाद चंडी माता के नाम पर चंडीगढ़ शहर बसाया गया।