क्रिकेट जगत में कई ऐसे मौके आए जब खिलाड़ियों ने मैदान पर खेल से हटकर कुछ ऐसा किया जो हमेशा याद किया गया। इनमें से कुछ बहादुरी के किस्से भी थे और ऐसा ही एक किस्सा 18 साल पहले आज के दिन देखने को मिला था। आज की तारीख (10 फरवरी) को 2003 में विश्व कप मैच के दौरान कुछ ऐसा हुआ था जिसने कुछ समय के लिए राजनीति और क्रिकेट को एक ही जगह पर लाकर खड़ा कर दिया था।
मामला विश्व कप 2003 का है जब जिम्बाब्वे क्रिकेट टीम टूर्नामेंट में अपना पहला मैच नामीबिया के खिलाफ खेलने उतरी थी। मैच से करीब एक घंटा पहले ये खुलासा हुआ कि जिम्बाब्वे के दो दिग्गज खिलाड़ी हेनरी ओलंगा और एंडी फ्लावर बांहों में काली पट्टी बांधकर उतरेंगे। सबके दिल में सवाल था कि आखिर किस चीज का विरोध करने या किस दुखी पल के लिए ये दोनों खिलाड़ी काली पट्टी बांधने जा रहे हैं।
'लोकतंत्र की हत्या'
दरअसल ये विरोध था जिम्बाब्वे में मौजूद रॉबर्ट मुगाबे की तानाशाही सरकार के खिलाफ। दोनों खिलाड़ियों ने खुलकर साफ कर दिया था कि वो दोनों देश में लोकतंत्र की मौत का गम मनाने के लिए ये काली पट्टी बांधकर मैदान पर उतर रहे हैं। जिम्बाब्वे की जमीन पर खेलते हुए वहां की सरकार के खिलाफ इतना बड़ा कदम उठाना दिलेरी का काम था जो पूरी दुनिया के सामने इन दोनों खिलाड़ियों ने कर दिखाया था।
जिंबाब्वे ने जीता था मैच लेकिन..
उस दिन जिम्बाब्वे ने शानदार अंदाज में वो मुकाबला जीता। मैच के बाद हर जगह दोनों खिलाड़ियों के इस कदम को लेकर चर्चा थी। कभी गिरफ्तारी के कयास लगाए जाते तो कभी टीम से हटाने के। लेकिन धीरे-धीरे पूरे विश्व की मीडिया की नजरें गड़ गई थीं और उन्हें समर्थन मिल रहा था। जिंबाब्वे क्रिकेट बोर्ड एंडी फ्लावर को तो हटा नहीं सकता था क्योंकि वो उनका एकमात्र विश्व स्तरीय खिलाड़ी था।
इसलिए गाज हेनरी ओलंगा पर ही गिरनी थी। कुछ दिन तो ओलंगा को कुछ खबर नहीं दी गई। उन्हें दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ विश्व कप अभियान का अंतिम मैच खिलाया गया जिस दौरान खबरों के मुताबिक मैदान में सरकारी पुलिस चक्कर लगा रही थी। इससे पहले कि कुछ होता, मैच के बाद ओलंगा ने खुद ही संन्यास का ऐलान कर दिया। आलम ये था कि उन्हें टीम बस पर चढ़ने नहीं दिया गया और फ्लाइट टिकट थमाकर विदा होने को कह दिया गया।