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बोर्ड परीक्षा को सरल बनाने के प्रस्ताव से छात्रों के रट्टा लगाने की समस्या हल नहीं होगी: मनीष सिसोदिया

Updated Aug 11, 2020 | 16:31 IST

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में बोर्ड परीक्षा को सरल बनाने के प्रस्ताव से रट्टा लगाने की समस्या हल नहीं होगी।

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दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया
मुख्य बातें
  • शिक्षा प्रणाली अब भी मूल्यांकन प्रणाली का गुलाम बनी रहेगी: मनीष सिसोदिया
  • बोर्ड परीक्षाएं सरल बनाने से मूल समस्या हल नहीं होगी: सिसोदिया
  • दशकों बाद हाल ही में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई

नई दिल्ली: दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में बोर्ड परीक्षा को सरल बनाने के प्रस्ताव से रट्टा लगाने की समस्या हल नहीं होगी क्योंकि शिक्षा प्रणाली अब भी मूल्यांकन प्रणाली का गुलाम बनी रहेगी। दिल्ली के शिक्षा मंत्री सिसोदिया ने कहा कि नीति सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने में विफल है तथा निजी शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करती है और कुछ सुधार वास्तविकता पर आधारित नहीं हैं।

सिसोदिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा, 'हमारी शिक्षा प्रणाली हमेशा से मूल्यांकन प्रणाली का गुलाम रही है और आगे भी रहेगी। बोर्ड परीक्षाएं सरल बनाने से मूल समस्या हल नहीं होगी जो कि रट्टा लगाना है। जोर अब भी वार्षिक परीक्षाओं पर रहेगा, जरूरत सत्र के अंत में छात्रों का मूल्यांकन करने से जुड़ी अवधारणा को दूर करने की है, चाहे यह सरल हो या कठिन। यह कहकर कि बोर्ड परीक्षाएं सरल होंगी, हम मौजूदा ज्ञान का इस्तेमाल करने पर ध्यान केंद्रित करने की दिशा में हम आगे नहीं बढ़ रहे। नीति इस समस्या का समाधान करने में विफल रही है। कुछ प्रस्तावित सुधार अच्छे भी हैं और वास्तव में हम उनपर पहले से ही काम कर रहे हैं लेकिन कुछ केवल आशाओं पर आधारित हैं और उनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है।'

दशकों बाद हाल ही में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई। उन्होंने कहा कि इसमें सरकारी स्कूलों पर ध्यान नहीं दिया गया। सिसोदिया ने कहा कि इसमें इस बात का कोई जिक्र नहीं किया गया कि देश में सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए क्या किया जाना चाहिए या क्या किया जाएगा। क्या इसका मतलब यह है कि सभी पहलों को निजी स्कूलों और कॉलेजों में सफलतापूर्वक लागू किया जाएगा और यही एकमात्र तरीका है? 

उन्होंने सवाल उठाया, 'नीति कहती है कि परोपकारी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाएगा। स्कूलों की लगभग सभी बड़े चेन और यहां तक कि उच्च शिक्षण संस्थान एक परोपकारी मॉडल पर आधारित हैं, जिसे उच्चतम न्यायालय पहले ही ‘‘शिक्षण की दुकानें’’ कह चुका है। तो क्या हम सिर्फ उसे ही बढ़ावा देने वाले हैं? फिर हमें नई नीति की जरूरत क्यों है?'

गौरतलब है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में नयी शिक्षा नीति को मंजूरी दी, जिसने 1986 में लागू 34 वर्ष पुरानी शिक्षा नीति का स्थान लिया है। इसके माध्यम से स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा तक बड़े सुधारों का मार्ग प्रशस्त हुआ है ताकि भारत को ज्ञान आधारित महाशक्ति बनाया जा सके।