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UGC EXAM DEBATE: यूनिवर्सिटी के फाइनल ईयर के एग्जाम को लेकर देश में इतना बड़ा बवाल क्यों मचा हुआ है?

बीरेंद्र चौधरी | सीनियर न्यूज़ एडिटर
Updated Jul 12, 2020 | 12:03 IST

UGC Exam: कोरोना काल में केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर तय करें कि पूरे देश में परीक्षा होगी या नहीं क्योंकि देश के लाखों लाख छात्रों के भविष्य का सवाल है।

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कोरोना काल में परीक्षाओं को लेकर बना हुआ है संशय
मुख्य बातें
  • सभी विश्वविद्यालय फाइनल ईयर के एग्जाम को 30  सितंबर संपन्न कर लेंगे: UGC
  • छात्रों और कुछ राज्यों द्वारा फाइनल ईयर एग्जाम का विरोध  किया जा रहा है
  • दिल्ली सरकार का फैसला- स्टेट यूनिवर्सिटी में फिलहाल कोई एग्जाम नहीं होगा

एक तरफ, जुलाई 11 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानि यूजीसी ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि सभी विश्वविद्यालय गाइडलाइन के दायरे में आते हैं। चाहे वो केंद्रीय हों अथवा राज्यों के विश्वविद्यालय। कोई भी यूजीसी के आदेश मानने से इनकार नहीं कर सकता है। इसका मतलब हुआ कि सभी केंद्रीय और राज्यों के विश्वविद्यालयों को यूजीसी का आदेश मानना होगा।

इस संबंध में यूजीसी सचिव प्रोफेसर रजनीश जैन ने कहा है कि उन्हें कई राज्यों द्वारा एग्जाम नहीं कराए जाने की घोषणा की जानकारी मिली है। इस संबंध में यूजीसी उन राज्यों और विश्वविद्यालयों से बात करेगी। जहां तक कोरोना संक्रमण का सवाल है तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी छात्रों की सुरक्षा को लेकर सजग है। इसी सजगता को ध्यान में रखते हुए यूजीसी ने हेल्थ मिनिस्ट्री के एसओपी को सख्ती से लागू करने का आदेश दिया है और सभी विश्वविद्यालयों को हेल्थ मिनिस्ट्री के एसओपी को लागू करने का प्रावधान करना होगा। उन तैयारियों को जांच करने के बाद ही एग्जाम का अंतिम फैसला लिया जायेगा। 

छात्रों और कुछ राज्यों द्वारा फाइनल ईयर एग्जाम का विरोध 

दूसरी तरफ, यूनिवर्सिटी के फाइनल ईयर के एग्जाम को रद्द कराने के लिए छात्रों द्वारा अभियान चलाया जा रहा है और साथ ही कुछ राज्यों द्वारा इसका समर्थन भी किया जा रहा है। बल्कि राज्यों जैसे दिल्ली सरकार ने अपने विश्वविद्यालयों  के परीक्षा न कराए जाने की एकतरफा घोषणा भी कर दी है। 

दिल्ली सरकार द्वारा एग्जाम ना कराए जाने का फैसला 

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जुलाई 11 को घोषणा की कि कोरोना महामारी को देखते हुए दिल्ली सरकार ने तय किया है कि उनकी किसी स्टेट यूनिवर्सिटी में फिलहाल कोई एग्जाम नहीं होगा। इसमें फाइनल ईयर के एग्जाम भी शामिल हैं। लोगों को डिग्री यूनिवर्सिटी द्वारा तय मूल्यांकन मापदंडों के हिसाब से दी जाएगी। अब दिल्ली सरकार की आईपी यूनिवर्सिटी, आंबेडकर यूनिवर्सिटी, डीटीयू व अन्य संस्थानों में एग्जाम नहीं होंगे। लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) से जुड़े दिल्ली सरकार के कॉलेजों के बारे में केंद्र को फैसला करना होगा। दिल्ली सरकार का मानना है कि ऐसे मे जिस सेमेस्टर को पढ़ाया नहीं गया, उसकी परीक्षा कराना मुश्किल है। 

दिल्ली, पंजाब और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री की एग्जाम ना कराए जाने के लिए प्रधानमंत्री को चिठ्ठी 
 
दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष  सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली के चीफ मिनिस्टर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के साथ बाकी राज्यों की भी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज के एग्जाम कैंसल करवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिठ्ठी लिखी है। बल्कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने भी एग्जाम नहीं कराये जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिठ्ठी लिखी है।  

यूजीसी ने जारी की संशोधित गाइड लाइन

जुलाई 6 को यूजीसी ने अपनी संशोधित गाइड लाइन जारी की थी जिसमें फाइनल ईयर एग्जाम को अनिवार्य बताया था। साथ ही ये भी कहा था कि सभी विश्वविद्यालय फाइनल ईयर के एग्जाम को 30  सितंबर संपन्न कर लेंगे। यूजीसी के गाइड लाइन का खास अहमियत होता है क्योंकि यूजीसी ही देश के सभी विश्वविद्यालय और कॉलेजों का वैधानिक रूप से मुखिया होता है और उसके आदेशों का उल्लंघन करना कानूनी रूप से वैधानिक नहीं होता है।   

यूजीसी के गाइड लाइन में लचीलापन 

यूजीसी ने अपने आदेश में ये भी कहा था कि यदि कोई छात्र विशेष स्थिति में 30 सितम्बर तक फाइनल ईयर एग्जाम नहीं दे पाता है तो वैसी स्थिति में यूजीसी उन छात्रों के लिए एग्जाम की विशेष व्यवस्था करेगी। वैसे यूजीसी फर्स्ट ईयर और सेकंड ईयर के एग्जाम को पहले ही रद्द कर चुकी है और उन छात्रों को इंटरनल असेसमेंट के आधार पर प्रमोट कर दिया जायेगा। 

अंतिम विचार 

पहला, देश के सभी विश्वविद्यालय और कॉलेज यूजीसी तहत आते हैं इसलिए मूल रूप से इनका मुखिया यूजीसी ही होता है और उसकी बात या आदेश को ना मानना एक कानूनी अर्चन पैदा करना होगा। यदि हर राज्य अपने अपने तरह के कानून बनाकर फैसला लेने लगे तो फिर यूजीसी का मतलब क्या रह जायेगा। 

दूसरा, यूजीसी ने अपने गाइड लाइन में सिर्फ फाइनल ईयर एग्जाम की बात करता है वो भी ऑफ लाइन, ऑन लाइन या दोनों मिलकर। उसके बाद भी यदि कोई छात्र 30 सितम्बर तक एग्जाम नहीं दे पता है तो उसके लिए बाद में एग्जाम की विशेष व्यवस्था। इससे ज्यादा लचीलापन क्या हो सकता है?

तीसरा, आज कोरोना काल के कटु परिस्थिति को कोई नकार नहीं सकता है इसलिए ऐसी कठिन परिस्थिति में ये जरुरी है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर तय करे कि पूरे देश में परीक्षा होगी या नहीं होगी क्योंकि देश के लाखों लाख छात्रों के भविष्य का सवाल है। छात्रों के भविष्य के नाम पर राजनीति करना एक अछम्य अपराध ही साबित होगा।