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Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड चुनावों में 'भूतिया गांव' का कनेक्शन, चौंकाती है कहानी

Updated Feb 14, 2022 | 14:00 IST

Uttarakhand Assembly Election 2022: उत्तराखंड में पलायन एक बड़ा मुद्दा है और राज्य में 1000 से ज्यादा गांव हैं, जहां पर बहुत कम लोग रहते हैं। इसीलिए उन्हें स्थानीय स्तर पर भूतिया गांव कहा जाने लगा है।

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
उत्तराखंड में खाली पड़े गांव
मुख्य बातें
  • पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जनपद में नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। 
  • पिछले 10 साल में एक लाख से ज्यादा लोगों ने स्थायी रूप से पलायन कर लिया है।
  • चुनावों में पलायन मुद्दा नहीं, आयोग के अनुसार रोजगार अवसर, स्वास्थ्य सेवाओं और बेहतर शिक्षा की कमी के कारण सबसे ज्यादा असर।

Uttarakhand Assembly Election 2022: वैसे तो उत्तराखंड (Uttarakhand) में आज, राज्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के राजनीतिक दलों के वादों के बीच वहां की जनता वोटिंग कर रही है। लेकिन राज्य के करीब 1100 गांव ऐसे हैं, जहां पर 98-99 फीसदी लोग वोट नहीं कर पाएंगे। इसकी वजह यह नहीं है कि वहां वोटिंग की व्यवस्था की दिक्कत है। समस्या बेहद अलग और डरावनी है। 

असल में ये गांव निर्जन हो चुके हैं। जहां वोट डालने के लिए कोई मौजूद ही नहीं है या इक्का-दुक्का लोग बचे हुए है। इसलिए इन गावों को स्थानीय लोग 'भुतिया गांव' (Ghost Village)कहते हैं। हालात इतने बदतर है कि मौजूदा सरकार ने 2017 में एक पलायन आयोग का गठन कर दिया। और उसकी 2018 में आई रिपोर्ट में यह बात समाने आई की 2011 की जनगणना के बाद 734 गांव निर्जन हो चुके हैं।

क्यों कहलाते हैं 'भूतिया गांव'

सामाजिक कार्यकर्ता और पलायन एक चिंतन के कोऑर्डिनेटर रतन सिंह असवाल ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल को बताया कि ताजा आंकड़ों के अनुसार राज्य में करीब 1100 गांव खाली हैं। यानी यहां पर कोई नहीं रहता है। इसीलिए इन्हें भूतिया गांव (Ghost Village)कहा जाता है। यहां पर वोटर लिस्ट में लोगों के नाम हैं पर वोट डालने वाले नहीं हैं या बहुत कम लोग बचे हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में कई प्रत्याशियों ने ऐसे वोटरों को बुलाने का काम किया है। लेकिन बहुत लोग आए नहीं है। हमारे आकलन के अनुसार ऐसे गांवों में के 98-99 फीसदी वोटर, वोट नहीं डालेंगे। क्योंकि वह यहां नहीं आएंगे। हालांकि यह आंकड़ा पंचायत चुनावों में 15-20 फीसदी बढ़ जाता है। क्योंकि ऐसे वोटरों को पंचायत चुनावों के प्रत्याशी अपने खर्चे पर गांव लाते हैं। इसलिए थोड़ी वोटिंग बढ़ जाती है।

गांवों के खाली होने की वजह शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। चिंता की बात यह है कि चुनावों में निर्जन गांव कोई मुद्दा ही नहीं है। सभी राजनीतिक दल फ्री योजनाओं के वादे के जरिए वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। माइग्रेशन, एजुकेशन, स्वास्थ्य सुविधाएं, पाने का पानी, चकबंदी, खेतों को बचाने के लिए जानवरों जैसे मुद्दे गायब है। अगर इन मुद्दों को हल किया जाय तो गांव का आदमी क्यों घर छोड़ कर जाएगा। 

क्या कहती है पलायन आयोग की रिपोर्ट

उत्तराखंड ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग की अप्रैल 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़ों की तुलना करने पर अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जनपद में नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। 

इन 10 वर्षों के दौरान 6,338 ग्राम पंचायतों से कुल 3,83,726 लोगों ने अस्थायी और 3,946 ग्राम पंचायतों से 1,18,981 लोगों ने स्थायी रूप से पलायन किया। सभी जिलों में 26 से 35 आयु वर्ग के युवाओं ने सबसे अधिक पलायन किया। इनका औसत 42.25 फीसदी है।

रिपोर्ट के अनुसार पलायन की सबसे बड़ी वजह रोजगार है। इसकी वजह से 50.16 फीसदी लोग पलायन कर गए। इसके बाद अच्छी  शिक्षा के लिए करीब 15 फीसदी, स्वास्थ्य सेवाओं में कमी के कारण 8.83 फीसदी लोगों ने पलायन किया।  जंगली जानवरों से तंग आकर पलायन और कृषि उत्पादन में कमी होना भी पलायन की एक बड़ी वजह रहा है।

2011 की जनगणना से पहले उत्तराखंड में कुल 16,793 गांवों में से 1,048 गांव निर्जन पाए गए थे। लेकिन आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट दी तो बताया कि जनगणना के बाद राज्य में 734 अन्य गांव निर्जन हो चुके हैं, जबकि 565 गांव ऐसे पाए गए, जहां एक दशक के दौरान आबादी में 50 फीसदी से अधिक कमी आई थी। 

राज्य सरकार ने 2020 में पलायन को रोकने के लिए मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की । इसके तहत राज्य के प्रभावित कुल 474 गांवों को पहचान कर उसमें रिवर्स पलायन करने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि स्थानीय हालात बताते हैं कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

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