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योगी के खिलाफ कौन ? मौजूदा विधायक से लेकर इनको लुभाने की कोशिश

Updated Jan 18, 2022 | 13:16 IST

UP Assembly Election 2022: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर सदर सीट से चुनाव लड़ने से विपक्ष के लिए नई चुनौती खड़ी हो गई है। सपा, बसपा, कांग्रेस को अब योगी के खिलाफ मजबूत चेहरे की तलाश है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
गोरखपुर सदर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उम्मीदवार होंगे
मुख्य बातें
  • भाजपा के डॉ राधा मोहनदास अग्रवाल 4 बार से गोरखपुर सदर सीट से विधायक हैं।
  • अखिलेश यादव ने उनका टिकट कटने के बाद उन्हें सपा से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है।
  • गोरखपुर सदर सीट भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीटों में से एक है।

नई दिल्ली:  बीते शनिवार (15 नजवरी) को जब भाजपा के उत्तर प्रदेश प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर (सदर) से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो एक झटके में स्थानीय समीकरण बदल गए। मुख्यमंत्री के खुद चुनाव लड़ने से न केवल गोरखपुर सदर सीट 2022 के चुनावों की सबसे हॉट सीट बन गई। वहीं विपक्षी दलों की रणनीति को भी बड़ा झटका लगा है। 

समाजवादी पार्टी, बसपा सहित कांग्रेस के लिए अब दोहरी चुनौती है। एक तो उन्हें ऐसे मजबूत उम्मीदवार की तलाश है जो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ सके। साथ ही विपक्ष उम्मीदवार के जरिए यह भी साबित कर सके कि वह मुख्यमंत्री को वॉकओवर नहीं दे रहा है। इसके लिए सबसे पहला दांव समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा में सेंध लगाने को लेकर चला है।

4 बार के भाजपा विधायक को लुभाने की कोशिश

अखिलेश यादव ने रविवार को खुले तौर पर, गोरखपुर सदर सीट से भाजपा के चार बार के विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल को सपा से टिकट देने का ऑफर दिया । उन्होंने कहा कि अगर वह चाहें तो उन्हें सपा में शामिल किया जा सकता है। जाहिर है अखिलेश इस ऑफर से दो निशाने साध रहे हैं। एक तो वह राधा मोहन दास अग्रवाल को लगे झटके को भुनाकर उन्हें पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरा वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ, उन्हीं के पार्टी के सदस्य को अपने पाले में लाकर, उनके नेतृत्व पर सवाल उठाना चाहते हैं।

राधा मोहन दास से बनते-बिगड़ते संबंध

स्थानीय सूत्रों के अनुसार चार बार से विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल का टिकट कटने के बाद, अग्रवाल ने उस दिन फेसबुक लाइव का कार्यक्रम स्थगित कर दिया था। और लोगों से बातचीत बंद कर दी थी। हालांकि एक दिन बाद, वह कुछ संभले हुए नजर आए और उन्होंने ट्वीट किया कि विधायक रहने या न रहने से सेवा प्रभावित नहीं होगी। असल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल को राजनीति में एंट्री मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही 2002 में कराई थी। और बाद में उन्हें भाजपा में भी शामिल कराया। लेकिन बाद में दोनों में दूरियां बढ़ी। 2017 में अग्रवाल को मंत्री नहीं बनाए जाने की एक बड़ी वजह  दोनों की दूरी बताई गई थी। इसी बनते-बिगड़ते संबंध का अखिलेश यादव फायदा उठाना चाहते हैं।

मजबूत प्रत्याशी चुनौती

अखिलेश यादव के बयान से साफ है कि फिलहाल उन्हें योगी आदित्यनाथ के खिलाफ पार्टी में कोई मजबूत चेहरा नहीं दिख रहा है। ऐसे में अब पार्टी नए सिरे से कवायद कर रही है। वहीं कांग्रेस ने पहले महिला उम्मीदवार को सदर सीट से लड़ाने का फैसला कर लिया था लेकिन अब किसे उम्मीदवार बनाया जाय जो उसके लिए नए सिरे से मंथन शुरू हो गया है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार किसी ऐसे महिला उम्मीदवार की तलाश है जो योगी आदित्यनाथ को चुनौती दे सके। 2018 के उप चुनाव में कांग्रेस ने स्थानीय डॉक्टर सुरहिता करीम को लोकसभा के लिए उम्मीदवार बनाया था।

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इस बीच समाजवादी पार्टी ने पंचायत चुनावों के बाद खाली पड़े पदाधिकारियों की नियुक्ति भी कर दी है। पार्टी ने स्थानीय नेता अवधेश यादव को जिलाध्यक्ष जबकि कृष्ण कुमार त्रिपाठी को महानगर अध्यक्ष बनाया है। दोनों के जरिए ब्राह्मण और ओबीसी वोटर को साधने की कोशिश की गई है।

निषाद  और ब्राह्मण प्रत्याशी का चलेगा दांव ?

सूत्रों के अनुसार समाजवादी और बसपा निषाद उम्मीदवार की संभावना तलाश रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि 2018 में लोकसभा उप चुनाव में गोरखपुर से समाजवादी पार्टी, बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। और सपा के प्रवीण निषाद ने भाजपा उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ला को हराया था। हालांकि बाद में प्रवीण निषाद 2019 में भाजपा के टिकट पर सांसद बन गए। लेकिन स्थानीय स्तर पर निषाद वोटरों की संख्या को देखते हुए, निषाद प्रत्याशी का दांव भी चला जा सकता है। हालांकि इस बार 2018 जैसी न तो विपक्ष में एकजुटता है और न ही ये लोकसभा चुनाव हैं क्योंकि गोरखपुर सदर की सीट शहरी क्षेत्र की सीट है। और वहां पर ब्राह्मण और कायस्थ वोट की निर्णायक भूमिका है।  कुल मिलाकर गोरखपुर सदर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव लड़ना, विपक्ष के लिए नया सिरदर्द बन गया है। 
 

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