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Jagdeep Death: धर्मेंद्र ने ऐसे किया 'सूरमा भोपाली' जगदीप को याद, कहा- 'मुझे देते थे अठन्नी-चवन्नी'

Updated Jul 10, 2020 | 16:14 IST

Jagdeep Death Dharmendra: शोले के सूरमा भोपाली यानी जगदीप के निधन के बाद कई दिग्गज उन्हें खास अंदाज में याद कर रहे हैं। अब धर्मेंद्र ने बताया कि कैसे उनकी और जगदीप की दोस्ती हुई।

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Jagdeep
मुख्य बातें
  • जगदीप के निधन के बाद शोले के वीरू धर्मेंद्र ने उन्हें याद किया है।
  • धर्मेंद्र ने बताया कि उनकी कुछ महीने पहले ही जगदीप से बात हुई थी।
  • धर्मेंद्र ने कहा कि हम शुरुआत से ही काफी अच्छे दोस्त बन गए थे।

मुंबई. शोले के सूरमा भोपाली उर्फ जगदीप के निधन के बाद बॉलीवुड में शोक की लहर है। कई सेलेब्स जगदीप से जुड़ी अपनी यादों को शेयर कर रहे हैं। अब शोल के वीरू यानी धर्मेंद्र ने बताया कि वह पिछले दिनों ही जगदीप से मिले थे। 

दैनिक भास्कर से बातचीत में धर्मेंद्र ने बताया कि कुछ महीने पहले जगदीप कई दफा मुझसे मिले थे। उन्होंने मुझे कुछ पुराने सिक्के दिए, खास अठन्निया लाकर मुझे दी। जगदीप ने कहा-' पाजी मुझे पता है कि आपको पुराने सिक्कों का बहुत शौक है।' 

धर्मेंद्र आगे कहते हैं- 'उन्हें पता था कि मुझे पुराने सिक्के जमा करने का काफी शौक है। बचपन में चवन्नी की काफी कीमत होती थी।' जगदीप ने मुझसे कहा- 'मेरे पास कुछ पड़े हैं प्लीज आप उन्हें ले लीजिए।'

खाने-पीने के थे शौकीन 
धर्मेंद्र बताते हैं कि हम शुरुआत के दिनों में ही काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। जगदीप खाने-पीने के बेहद शौकीन थे। इसके अलावा वह बेहद ही अच्छा खाना भी बना लेते थे। साल 1988 में उन्होंने सूरमा भोपाली नाम से फिल्म बनाई थी। इसमें मेरी गेस्ट अपीरियंस थी। 

बकौल धर्मेंद्र- 'जब उनकी मां बीमार पड़ी तो मैं उनसे मिलने जाया करता था। उनके बच्चे जब छोटे थे तभी से मेरा उनके घर पर आना-जाना लगा रहता था। प्रतिज्ञा, शोले, सूरमा भोपाली हमने साथ कई बड़े प्रोजेक्ट किए। वह बहुत बड़े फनकार थे। ' 

अमर है सूरमा भोपाली का किरदार 
धर्मेंद्र कहते हैं- 'शोले में सूरमा भोपाली का किरदार अमर है। जब तक लोग फिल्में देखते रहेंगे और फिल्म इंडस्ट्री रहेगी तब तक सूरमा भोपाली का किरदार अमर रहेगा। हम उसे कभी भी भूल नहीं सकते हैं।' 

जगदीप को याद करते हुए आखिर में धर्मेंद्र कहते हैं- ' हम दोनों इतने साल तक साथ रहे। मुझे अब ऐसा लग रहा है कि मेरे अंदर कुछ टूट गया है। उन दौर में तौर-तरीके कुछ और थे। एक मां-बहन की इज्जत, लोक लिहाज हुआ करते थे।'   

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