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ऐसे बनता है दिमाग में ट्यूमर, 10-15 महीने में हो सकती है मौत

Updated Mar 11, 2018 | 07:55 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

यदि समय पर रहते हुए इस ब्रेन ट्यूमर की पहचान होकर मरीज को इसका ईलाज नहीं मिल पाएं तो मरीज की 10-15 महीनें मौत हो जाती हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
ब्रेन ट्यूमर

नई दिल्ली. बॉलीवुड एक्टर इरफान खान ने सोशल मीडिया पर अपने फैंस को बताया था कि वो एक दुलर्भ बीमारी से जूझ रहे हैं।  इरफान ने लिखा कि हफ्तेभर में उनके पास इस बीमारी के संबंध में जांच रिपोर्ट आ जाएगी, इसके बाद वह जानकारी साझा करेंगे। इसके बाद से उनकी बीमारी को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक  इरफान को ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफोर्मे (जीबीएम) ग्रेड-4 जैसे जानलेवा ब्रेन ट्यूमर होने की बात भी सामने आई थी। 

क्‍या है जीबीएम? 
ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफॉर्म या जीबीएम एक तरह का जानलेवा ब्रेन ट्यूमर है। ये ट्यूमर ज्यादातर व्यस्कों में पाया जाता है। जीबीएम का विकास स्टार के आकार वाली कोशिकाओं की लीनीऐज से होता है, जिसे एस्ट्रोसाइट्स कहते है। यह कोशिकाएं, तंत्रिका कोशिकाओं को समर्थन प्रदान करती है। अगर समय पर रहते हुए इस ब्रेन ट्यूमर की पहचान होकर मरीज को इसका ईलाज नहीं मिल पाएं तो मरीज की 10-15 महीनें मौत हो जाती हैं।

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ये है मुख्य कारण
जीबीएम कई अलग-अलग तरह की कोशिकाओं से मिलकर बनाता है। इसका होने का कारण अभी तक ज्ञात नहीं है लेकिन बहुत से शोध के द्वारा यह बताया गया है कि आनुवंशिक परिवर्तन इसका मुख्य कारण हो सकता है। जीबीएम मुख्य रूप से दिमाग के सेरिब्रल हेमिस्फेरेस भाग में विकसित होता है, लेकिन यह ब्रेनस्टेम, रीढ़ की हड्डी या ब्रेन के अन्य भागों में भी विकसित हो सकता है।

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ब्‍लड टेस्‍ट से भी मालूम 
ब्लड टेस्ट से बेहद ही कम कीमत और कम से कम समय में जीबीएम का पता लगाकर मरीज को बचाया जा सकता है। वहीं इसका इलाज केवल सर्जरी के जरिए ही होता है। इसके अलावा रेडिएशन, कीमोथेरेपी, कंबाइंड रेडिएशन और कीमोथेरेपी का इस्तेमाल भी किया जाता है। यदि सर्जरी से  ट्यूमर नहीं निकलता तो इसके लिए रेडिएशन या फिर कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।

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