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हार के बावजूद अखिलेश क्यों एक्सप्रेस-वे पर लगा रहे हैं दांव,जानें किस बात का है डर

Updated Nov 19, 2021 | 19:26 IST

Akhilesh Yadav Politics: 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के लिए बेहद अहम हैं। पहली बार वह पूरी तरह से फ्री होकर समाजवादी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसे में पूर्वांचल के कई अहम जिले, उनके लिए बेहद अहम हैं।

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अखिलेश यादव ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर निकाली विजय यात्रा
मुख्य बातें
  • 2017 में अखिलेश यादव की सरकार ने आगरा-लखनऊ एक्स्प्रेस वे का निर्माण कराया था।
  • चुनावों में एक्सप्रेस-वे को सपा ने बड़ी उपलब्धि बताया था, इसके बावजूद उनकी सत्ता में वापसी नहीं हो पाई।
  • पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे जिन 9 जिलों से गुजरता है, उन क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी का बड़ा वोट बैंक रहा है।

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में इस समय सियासी हलचल पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर सिमट गई है। 16 नवंबर को जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सबसे लंबे एक्सप्रेस वे, पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन किया, उसी समय से समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक्सप्रेस-वे को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि यह एक्सप्रेस-वे समाजावादी पार्टी ने  प्लान किया था। उसके लिए बजट तय किया था, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की थी। ऐसे में भाजपा उसके काम का क्रेडिट ले रही है। सवाल यह उठता है कि 9 जिलों से गुजरने वाले  341 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेस-वे में ऐसा क्या है, कि अखिलेश इस पर दांव लगा रहे हैं।

अगले दिन अखिलेश ने निकाली विजय यात्रा

पू्र्वांचल एक्स्प्रेस-वे अखिलेश के लिए कितना अहम हैं, इसे इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने उद्घाटन के अगले दिन ही गाजीपुर से लखनऊ तक एक्सप्रेस-वे पर रथ यात्रा निकाल दी। और जिस यात्रा को यूपी सरकार 5-6 घंटे में पूरा होने का दावा कर रही है, उसे अखिलेश की विजय यात्रा दोपहर में शुरू होकर देर रात में जाकर पूरी की। इस दौरान अखिलेश ने गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, अयोध्या, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर,  बाराबंकी, अमेठी से होकर गुजरे और जनसभाएं की।

2017 में फेल हो गया था आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे का दांव

2012 में समाजवादी  पार्टी  की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे बनाने का फैसला किया था। 302 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे का निर्माण कार्य 2014 में शुरू हुआ और यह दिसंबर 2016 में चुनाव से पहले जनता के लिए खुल गया। एक्सप्रेस-वे  आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, शिकोहाबाद, औरैया, कन्नौज, कानपुर, हरदोई, उन्नाव और लखनऊ से होकर गुजरता है। अखिलेश यादव ने 2017 के चुनावों में इसे अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया। लेकिन उसके बावजूद वह सत्ता में वापसी नहीं कर पाए। 

इसलिए पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर लगा रहे है दांव

पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर,अमेठी,अयोध्या,अंबेडकर नगर, आजमगढ़,मऊ और गाजीपुर से गुजरेगा। ये वो क्षेत्र हैं, जहां पर समाजवादी पार्टी की मजबूत पकड़ रही है। आजमगढ़, गाजीपुर, मऊ, सुल्तानपुर ऐसे इलाके हैं, जहां सपा का बड़ा वोट बैंक है। 

अखिलेश यादव आजमगढ़ से सांसद है और उसके पहले उनके पिता मुलायम सिंह यादव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2012 में सपा को 10 में से 9 सीटें मिलीं थीं। जबकि 2017 में भाजपा की लहर में सपा को 5, बसपा को 4 सीटें मिलीं थी। भाजपा ने उनके गढ़ में सेंध लगाने  के लिए हाल ही में सुहेलदेव विश्वविद्यालय खोलने का ऐलान कर दिया है। साफ है  अखिलेश का गढ़ भाजपा के निशाने पर है।

इसी तरह गाजीपुर और मऊ भी ऐसा इलाका है, जहां पर समाजवादी पार्टी का मजबूत वोट बैंक है। 2012 में गाजीपुर की 7 में से 6 सीटें जीती थी। जबकि 2017 में भाजपा को 4, सपा को 2 और बसपा को एक सीट मिली थी। इसी तरह मऊ का इलाका बाहुबली मुख्तार अंसारी के प्रभाव क्षेत्र वाला है। जिनके परिवार के सदस्यों ने इस बार सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। और ओम प्रकाश राजभर का वोट बैंक भी अखिलेश के साथ हैं। जिले में 4 विधानसभा सीटें हैं। 

इसी तरह अंबेडकर नगर जिले में 4 विधाान सभा सीटें हैं। राम मनोहर लोहिया की जन्मभूमि पर बसपा का हमेशा से दबदबा रहा है। इस क्षेत्र में राम अचल राजभर, लालजी वर्मा जैसे बसपा नेताओं का प्रमुख जनाधार रहा है। और यहां से 2017 में भाजपा को जीत नहीं मिली थी। और इस बार ये दोनों नेता सपा में शामिल हो गए हैं। ऐसे में अखिलेश को इन नेताओं से पहले जैसे चमत्कार की उम्मीद थी। ऐसा ही हाल सुल्तानपुर का है। जो 2017 से पहले समाजवाजी पार्टी के लिए मजबूत क्षेत्र है। साफ है कि जिन  नौ जिलों से पूर्वांचल एक्स्प्रेस-वे गुजर रहा है। उसमें से अधिकांश जिले समाजवादी पार्टी के मजबूत गढ़ रहे हैं। भले ही 2017 में इन जिलों में 50 से ज्यादा सीटों पर भाजपा को 30 से ज्यादा सीटें मिली, लेकिन उसके बावजूद सपा का यहां मजबूत वोट बैंक हैं और अखिलेश 2022 में 2012 जैसा इतिहास दोहराना चाहते हैं। इसीलिए वह पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का फायदा किसी भी हालत में भाजपा के पाले में जाने नहीं देना चाहते हैं।

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