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#BattleForBengal: क्या मतुआ संप्रदाय बंगाल चुनाव में फिर से बीजेपी को अपना समर्थन देगा?

बीरेंद्र चौधरी | सीनियर न्यूज़ एडिटर
Updated Mar 30, 2021 | 12:41 IST

हाल ही में पीएम मोदी बंगलादेश यात्रा के दौरान मतुआ संप्रदाय के मंदिर में पूजा करने पहुँचे थे उसको लेकर पश्चिम बंगाल की राजनीति में उथल पुथल मची हुई है, जानें क्या है ये सारा मामला..

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मतुआ सम्प्रदाय के जनक थे हरिचंद ठाकुर जिन्हें संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं
मुख्य बातें
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगलादेश यात्रा के दौरान मतुआ संप्रदाय के मंदिर में पूजा करने पहुँच गए
  • उन्होंने वहां पूजा के साथ ही बांग्लादेश के मतुआ सम्प्रदाय को सम्बोधित भी किया

बंगाल का विधान सभा का चुनाव 27 मार्च से शुरू से शुरू हो चुका है और ये 29 अप्रैल को खत्म होगा और परिणाम घोषित होगा मई 2 को। लेकिन बंगाल चुनाव में मतुआ संप्रदाय काफी चर्चा में है क्योंकि लोकतंत्र के खेल में नंबर का बहुत अहमियत होता है। वही नंबर का खेल मतुआ संप्रदाय से जुड़ा है क्योंकि मतुआ संप्रदाय बंगाल के मतदाताओं की संख्या में 17 फीसदी हिस्सेदारी रखता है  और 17 फीसदी हिस्सेदारी चुनावी गणित में बहुत कुछ कहता है।  इसी हिस्सेदारी को पाने के लिए बीजेपी और टीएमसी में घमासान मचा हुआ है और इस चुनावी कुश्ती का रिजल्ट आएगा मई 2 को लेकिन इस चुनावी गणित को समझना बहुत जरुरी है।

हुआ ये कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगलादेश यात्रा के दौरान मतुआ संप्रदाय के मंदिर में पूजा करने पहुँच गए और वहां पूजा तो किये ही साथ ही बांग्लादेश के मतुआ सम्प्रदाय को सम्बोधित भी किया और मतुआ सम्प्रदाय के साथ अपने खास रिश्ते को भी बखान किया।

मोदी की मतुआ मंदिर में पूजा से बंगाल की  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भड़क गईं और सीधे सीधे सवाल खड़े कर दिए कि यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है और साथ ही आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री बांग्लादेश की धरती से पश्चिम बंगाल के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं और दौरे का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल में एक खास तबके के वोटों को हासिल करने के लिए कर रहे हैं। 

लाज़िमी सवाल उठता है कि आखिर ममता बनर्जी  इतना क्यों भड़क गयीं?  इसको जानने के लिए तीन बातों को समझना जरुरी होगा।

1- क्या है ये मतुआ समुदाय ? 

मतुआ  संप्रदाय  दलित समाज से ताल्लुकात रखता है लेकिन हिंदू धर्म को मानता है और इस संप्रदाय की शुरुआत भारत की आज़ादी से पूर्व 1860 में बंगाल में हुई थी।  इस सम्प्रदाय के जनक थे हरिचंद ठाकुर जिन्हें संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं और उन्हें श्री श्री हरिचंद ठाकुर कहा जाने लगा।   चूँकि भगवान विष्णु को मानते हैं इसीलिए इस सम्प्रदाय को वैष्णवाइट धर्माबलम्बी  भी कहा जाता है।

लेकिन भारत की आज़ादी के बाद हरिचंद ठाकुर अपने परिवार के साथ पश्चिम बंगाल में आकर बस गए। और सम्प्रदाय को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाया उनके परपोते प्रथम रंजन ठाकुर ने।  रंजन ठाकुर की  पत्नी बीणापाणि देवी मतुआ माता या बोरो मां कहलाने लगीं यानि बड़ी मां। बोरो मां ने मतुआ या नामशूद्र शरणार्थियों के लिए बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज गांव  बसाया और इस तरह से मतुआ सम्प्रदाय की शुरुआत हुई पश्चिम बंगाल में और आज की तारीख में पश्चिम बंगाल में मतुआ संप्रदाय की संख्या 17 फीसदी है। 
 
2- बंगाल के चुनाव में मतुआ वोट की अहमियत क्या है?

पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति या दलित समाज की आबादी करीब 1.84 करोड़ है जिसमें तक़रीबन  50 फीसदी मतुआ समुदाय  के लोग हैं। कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा की करीब 50 से 70 विधानसभा सीटों पर मतुआ  संप्रदाय ही  जीत और हार तय करता  है। ये तो हुई बात विधान सभा की।  10 लोकसभा सीटों कृष्णानगर, दार्जिलिंग, रानाघाट, कूचविहार, मालदा उत्तरी, रायगंज, मालदा दक्षिणी, जॉयनगर, बर्धमान पूर्वी, बर्धमान पश्चिम सीट पर मतुआ वोटर ही तय करते  हैं जीत और हार।

यदि 2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम देखें तो वो चौंकाने वाला है क्योंकि बीजेपी ने इन 10 में से 7 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी । इतना ही नहीं बल्कि मतुआ संप्रदाय से कई अन्य दलित समाज भी जुड़े हुए हैं और कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि पश्चिम बंगाल में मतुआ संप्रदाय को मानने वालों की तक़रीबन कुल आबादी तकरीबन 3 करोड़ है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति  में मतुआ समुदाय की अहमियत इतना क्यों  है।

3- मतुआ संप्रदाय का बंगाल की राजनीति से क्या रिश्ता रहा है?

शुरुआती दौर से ही हरिचंद ठाकुर परिवार और बंगाल  की राजनीति में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध रहा है।  और इसका प्रमाण है  प्रथम रंजन ठाकुर 1962 में ही कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी जीते थे। परिवार का सम्बन्ध कांग्रेस तक ही सीमित नहीं था बल्कि वामपंथी पार्टियों से भी काफी नजदीकी रहा। 

उसके बाद ममता बनर्जी ने भी मतुआ माता या बोड़ो मां से काफी नजदीकी रिश्ता बना लिया और उसी  रिश्ते की वजह से 2011 के विधान सभा चुनाव में ममता बनर्जी को जबरदस्त फायदा मिला । बल्कि  2014 में मतुआ माता के बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर टीएमसी के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी जीते । उनकी मौत के बाद उपचुनाव में टीएमसी ने उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर को टिकट दिया और उन्होंने भी जीत हासिल की।

मतुआ सम्प्रदाय का झुकाव ममता से हटकर मोदी की तरफ होने लगा

लेकिन 2019 आते आते मतुआ सम्प्रदाय का झुकाव ममता से हटकर मोदी की तरफ होने लगा।  बल्कि  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में  पश्चिम बंगाल में चुनाव अभियान की शुरुआत ही  मतुआ संप्रदाय के मठ से किया था। मतुआ माता के छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर बीजेपी में शामिल हो गए और 2019  के लोक सभा चुनाव में उनके बेटे शांतनु ठाकुर बनगांव से  चुनाव जीत  गए।

खास बात ये है कि पीएम मोदी के बांग्लादेश दौरे पर भी शांतनु उनके साथ गए थे। उसके बाद तो बीजेपी और मतुआ सम्प्रदाय के बीच खास रिश्ता बन गया। इस रिश्ते को और पक्का करने के लिए बीजेपी ने वादा किया है कि संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के तहत मतुआ संप्रदाय  के उन लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी जो अभी तक इससे वंचित हैं। 

मतुआ संप्रदाय 294 में से 50 से 70 विधान सभा सीटों का भाग्य तय करेगा

कुल मिलाकर मतुआ संप्रदाय 294 में से 50 से 70 विधान सभा सीटों का भाग्य तय करेगा और लोक सभा चुनाव का परिणाम 10 में से 7 बीजेपी के पक्ष में गया था ये तो सबको पता है। यही कारण है कि ममता बनर्जी मतुआ वोटों पर बीजेपी की मजबूत पकड़ को लेकर चिंतित हैं।

आखिर में सबसे बड़ा सवाल ये है कि अबकी बार मतुआ संप्रदाय अपना वोट किसे देगा : मोदी जी को या ममता दीदी को?  यदि लोक सभा चुनावों के रुझान को मानें तो मतुआ संप्रदाय बीजेपी के पक्ष में होता दिखाई दे रहा है लेकिन इसका असली उत्तर जानने के लिए इंतज़ार करना होगा 2 मई का।  चलिए करते हैं इंतज़ार।  

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