- कोरोना काल में भारत की वैश्विक स्वीकार्यता से चीन परेशान, अमेरिका से बढ़ी नजदीकी भी एक वजह
- पीएम मोदी का आत्मनिर्भर भारत का ऐलान भी चीन को खटक रहा है।
- अमेरिका सीधे तौर पर कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहा है, भारत ने जांच आयोग बनाने का किया था समर्थन
नई दिल्ली। अगर यह कहा जाए कि चीन इस समय मुश्किल के दौर से गुजर रहा है तो गलत नहीं होगा। लेकिन चीन के साथ पारंपरिक दिक्कत यह है कि उसकी कथनी और करनी में फर्क होता है अगर ऐसा न होता तो शायद 1962 की लड़ाई नहीं हुई होती। इस समय चीन के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि पूरी दुनिया उसे कोरोना वायरस के मुद्दे पर शक की निगाह से देख रही है। चीन के खिलाफ स्वतंत्र जांच आयोग की मांग पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हामी भर दी है और चीन की तरफ से चालबाजी भी शुरू हो चुकी है जिसका ट्रेलर सिक्किम और लद्दाख में दिखाई दे रहा है।
पीएमओ में हुई उच्चस्तरीय बैठक
लद्दाख में एलएसी के पास करीब पांच हजार चीनी सैनिक तैनात हैं तो भारत की तरफ से भी सैनिकों की तैनाती करके साफ संदेश दिया गया है कि चीन की नापाक कोशिश को अब हल्के में नहीं लिया जाएगा। मंगलवार को सीडीएस बिपिन रावत और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की बैठक हुई और लद्दाख के साथ साथ हिमाचल,उत्तरांचल और सिक्किम में भारतीय तैयारी की समीक्षा की गई। इसके साथ ही पीएमओ में भी उच्च स्तरीय बैठक हुई जिसमें चीन की उकसाने वाली भाषा पर भी चर्चा हुई।
चीनी सेना बुरे हालात के लिए रहे तैयार
सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की खबर के मुताबिक शी ने सेना को आदेश दिया कि वह सबसे खराब स्थिति की कल्पना करे, उसके बारे में सोचे और युद्ध के लिए अपनी तैयारियों और प्रशिक्षण को बढ़ाए, तमाम जटिल परिस्थितियों से तुरंत और प्रभावी तरीके से निपटे। साथ ही पूरी दृढ़ता के साथ राष्ट्रीय सम्प्रभुता, सुरक्षा और विकास संबंधी हितों की रक्षा करे।उनकी टिप्पणी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच करीब 20 दिन से जारी गतिरोध की पृष्ठभूमि में आयी है।
हाल के दिनों में तनाव बढ़ा
हाल के दिनों में लद्दाख और उत्तरी सिक्किम में भारत और चीन की सेनाओं ने अपनी उपस्थिति काफी हद तक बढ़ाई है। यह दोनों देशों की सेनाओं के बीच दो अलग-अलग तनातनी के दो सप्ताह बीत जाने के बाद भी तनाव बढ़ने और दोनों पक्षों के रुख में तनाव बढ़ने का स्पष्ट संकेत नजर आता है। 3,500 किलोमीटर लंबी एलएसी दोनों देशों के बीच एक तरह से सीमा का काम करती है।
दो ताकतवर मुल्क नहीं हो सकते दोस्त
कहा जाता है कि दुनिया के ताकतवर मुल्क स्वाभाविक तौर पर एक दूसरे के दोस्त नहीं हो सकते हैं। उनके बीच संंबंधों का ताना बाना जरूरतों के आधार पर टिका होता है। अगर चीन की बात करें तो यह ऐसा मुल्क है जिसने अपने फायदे को तवज्जो दिया। अगर भारत चीन संबंध की बात करें तो व्यापार का संतुलन चीन की तरफ झुका है। इसका अर्थ यह है कि चीन, भारत से आयात की अपेक्षा निर्यात अधिक करता है। लेकिन कोरोना काल की वजह से हालात में बदलाव हुए। पश्चिमी देश अपनी बर्बादी के लिए चीन को जिम्मेदार बताते हैं।
हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन और पीपीई किट ने बदली तस्वीर
इन सबके बीच हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन दवा ने समीकरण को बदला। प्रेसिडेंट ट्रंप कह चुके हैं संकट की इस घड़ी में वो भारत की मदद को कभी भूल नहीं सकते हैं। इसके साथ ही जब पीपीई किट का मुद्दा आया तो चीन की तरफ से पहले आनाकानी हुई फिर घटिया किट भेज दी गई। लेकिन भारत ने अपनी मेधा से चीन को बता दिया कि वो विश्व स्तरीय किट का उत्पादन कर सकता है जिसका जिक्र पीएम मोदी मे राष्ट्र के नाम संबोधन में किया भी था।