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सच में 'शेरनी' हैं छुटनी देवी, जिन्‍हें कभी डायन बताकर ग्रामीणों ने खिला दिया था मैला, अब मिला बड़ा सम्‍मान

Updated Jan 28, 2021 | 11:34 IST

छुटनी देवी का नाम उन 102 हस्तियों में शामिल हैं, जिन्‍हें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्‍या पद्मश्री देने की घोषणा की गई है। उनकी कहानी प्रताड़नाओं और संघर्ष से भरी हैं। आज वह ऐसी महिलाओं के लिए ताकत बन चुकी हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
सच में 'शेरनी' हैं छुटनी देवी, जिन्‍हें कभी डायन बताकर ग्रामीणों ने खिला दिया था मैला, अब मिला बड़ा सम्‍मान

नई दिल्‍ली/रांची : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्‍या पर जब पद्म अलंकरण की घोषणा की गई तो उनमें एक नाम छुटनी देवी का भी था। झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले की निवासी छुटनी देवी का नाम साल 2021 में पद्मश्री पाने वाली 102 हस्तियों में शामिल हैं। आज हर कोई सम्‍मान के साथ ले रहा है, लेकिन एक वक्‍त ऐसा भी था, जब अपने ही गांव में उन्‍हें हद दर्जे की प्रताड़ना से गुजरना पड़ा। यह प्रताड़ना उन्‍हें 'डायन' होने के नाम पर दी गई। एक ऐसी प्रथा, जिसके नाम पर आज भी देश के दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उत्‍पीड़न के दौर से गुजरना पड़ता है। छुटनी देवी भी प्रताड़ना व उत्‍पीड़न के उसी दौर से गुजरीं, लेकिन अंतत: उन्‍होंने इसे ही अपनी ताकत बना ली और आज वह ऐसी ही असंख्‍य महिलाओं की ताकत बन गई हैं, जो कहीं न कहीं इस सामाजिक कुप्रथा का शिकार होती हैं।

ऐसे करती हैं महिलाओं की मदद

सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड की बिरबांस पंचायत के भोलाडीह गांव में रहने वाली छुटनी देवी यहीं एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) के सौजन्य से पुनर्वास केंद्र चलाती हैं। वह यहां आशा की निदेशक हैं और ऐसी तमाम महिलाओं को मदद मुहैया कराती हैं, जिन्‍हें डायन होने के नाम पर प्रताड़‍ित किया जाता है। उन्‍हें जहां से भी ऐसे मामलों की जानकारी मिलती है, वह अपनी टीम के साथ वहां पहुंच जाती हैं और फिर आरोपियों और अंधविश्‍वास फैलानेवालों को हवालात तक पहुंचा देती हैं। पीड़‍ित महिला को पहले तो वह पुनर्वास केंद्र ले जाती हैं, जहां उसे हर तरह से सुरक्षा का एहसास कराया जाता है और फिर मामले में कानूनी कार्रवाई के बाद वह ऐसी महिलाओं को उनके घर भी पहुंचाती हैं। इस दौरान यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि महिला के साथ अब किसी तरह का दुर्व्‍यव्‍हार न हो।

चेहरों पर मुस्‍कान ला रही यह कोशिश

ऐसा करते हुए छुटनी देवी अब तक 62 महिलाओं को डायन प्रथा के नाम पर होने वाली प्रताड़ना से मुक्‍त करा चुकी हैं। उनकी टीम में अधिवक्‍ता भी हैं, जो आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में उनका साथ देते हैं और आवश्‍यकता पड़ने पर पीड़‍िताओं की ओर से कोर्ट में पैरवी भी करते हैं। उनकी यह कोशिश आज ऐसी तमाम महिलाओं के चेहरे पर मुस्‍कान ला रही है, जिन्‍हें ग्रामीणों ने कभी डायन घोषित कर उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया। पीड़‍ित महिलाओं के चेहरे पर इसी मुस्‍कान को वह अपने लिए सच्‍चा सम्‍मान बताती हैं। उनकी कोशिशों का की नतीजा है कि आज उनके गांव में कोई भी किसी महिला को डायन घोषित करने और इसके नाम पर उन्‍हें प्रताड़‍ित करने से पहले सौ बार सोचता है और महिलाएं धीरे-धीरे इस कुप्रथा के कारण होने वाले उत्‍पीड़न से मुक्‍त हो रही हैं।

संघर्ष से भरा है छुटनी देवी का जीवन

आज सैकड़ों महिलाओं की ताकत बन चुकीं छुटनी का जीवन उत्‍पीड़न व प्रताड़नाओं की ऐसी ही कहानी से भरा परा है। यहां तक का सफर तय करने में उन्‍होंने लंबा संघर्ष तय किया है। आज 62 साल की छुटनी की शादी 12 साल की उम्र में हो गई थी। शादी के करीब 16 साल बाद 1995 में जब उनके एक पड़ोसी की नवजात बच्‍ची बीमार हुई तो ग्रामीणों ने शक जताया कि छुटनी ने उस पर टोना कर दिया। इसके बाद जो प्रताड़ना का दौर शुरू हुआ तो उसने थमने का नाम नहीं लिया। ग्रामीणों ने उन्‍हें डायन मान लिया। उन्‍हें पेड़ से बांधकर पीटा गया तो गांव से भी बाहर निकाल दिया गया। तब पति ने भी साथ नहीं दिया। उसे वहीं उसी गांव में रहना था और उसने चुपचाप ग्रामीणों के फैसले को मान लिया, जिसके बाद छुटनी देवी अपने बच्‍चों के साथ आठ महीने तक जंगलों में रहीं।

ग्रामीणों ने दी हद दर्जे की प्रताड़ना

एक बार एक तांत्रिक के कहने पर ग्रामीणों ने उन्‍हें मैला खिलाने की कोशिश भी की थी। जब उन्‍होंने इससे इनकार किया तो लोग उनके उन्‍हें जबरन इसे खिलाने लगे। इससे बचने के लिए जब छुटनी देवी भागीं तो लोगों ने उनका पीछा भी किया और एक जगह जबरन पकड़कर उन्‍हें मैला खिलाने की कोशिश करने लगे। उन्‍होंने लाख बचने की कोशिश की, पर वह उनके चंगुल से छूट नहीं पाईं और इसी धक्‍कामुक्‍की में मैला उनके शरीर के ऊपर गिर गया तो इसका कुछ हिस्‍सा उनके मुंह में भी जा पहुंचा था। इतना कुछ होने के बाद भी किसी के लिए सामान्‍य जीवन जी पाना आसान नहीं होता। लेकिन छुटनी ने खुद को संभाला। वह अपने मायके गईं, जहां उनके भाइयों ने उनका साथ दिया। इन सबसे उबरने में उन्‍हें 5 साल लग गए और आज वह ऐसी महिलाओं के लिए ताकत बन गई हैं, जो डायन प्रथा के नाम पर प्रताड़‍ित की जाती हैं। 

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