- परिवारवाद और निष्पक्षता चुनाव के सवाल पर फंसी है कांग्रेस
- करीब-करीब तय हो गया है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे।
- खबरें हैं कि मनीष तिवारी भी अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी पेश करने की संभावना तलाश रहे हैं।
Congress President Election: कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। वरिष्ठ नेता और राहुल गांधी के करीबी नेताओं में से एक जयराम रमेश के बयान से भी करीब-करीब साफ हो गया है कि इस बार राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ेंगे। और अभी तक के रूख से यही लगता है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री और गांधी परिवार के करीबी अशोक गहलोत सबसे मजबूत दावेदार हैं। लेकिन अध्यक्ष पद के लिए अब नेताओं की लिस्ट लंबी होती जा रही है। शशि थरूर के बाद ऐसी खबरें हैं कि पंजाब से सांसद मनीष तिवारी भी चुनाव लड़ने के लिए, अपने करीबियों से राय ले रहे हैं। इसके अलावा वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी अपनी दावेदारी से इंकार नहीं किया है।
लंबी हो रही है लिस्ट
अगर कांग्रेस के अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया को देखा जाय तो राज्य की इकाइयां और डेलीगेट्स की भूमिका सबसे अहम होती है। और अब तक 9-10 राज्य इकाइयों ने राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने के लिए प्रस्ताव पारित कर दिया है। इसके बावजूद वह चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है। ऐसे में अशोक गहलोत, शशि थरूर की लड़ाई साफ तौर पर देखी जा रही है। लेकिन इस लड़ाई में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेत नेता दिग्विजय सिंह के ताजा बयान ने सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि आप मुझे इस रेस से बाहर क्यों रख रहे हैं ?
और न्यूज एजेंसी आईएएनएस ने दावा किया है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी भी कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उनके करीबी सूत्रों ने खुलासा किया है कि उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में राज्य पार्टी के प्रतिनिधियों से मुलाकात की है, जो चुनाव में मतदाता हैं। यानी मनीष तिवारी भी इस रेस में शामिल हो सकते हैं।
1996 के चुनाव में तीन उम्मीदवार मैदान में थे
अगर अशोक गहलोत, शशि थरूर के अलावा कोई तीसरा नेता भी अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए उतरता है, तो ऐसा 1996 के बाद पहली बार होगा कि अध्यक्ष पद के लिए दो से ज्यादा उम्मीद मैदान में होंगे। उस वक्त सीताराम केसरी, राजेश पायलट और शरद पवार ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था। और गांधी परिवार उस चुनाव से अलग था। क्योंकि उस समय तक सोनिया गांधी की राजनीति में एंट्री नहीं हुई थी। और पार्टी में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का दौर था। इन चुनाव में सीताराम केसरी ने जीत हासिल की थी।
परिवारवाद और निष्पक्षता के सवाल पर फंसी है कांग्रेस
जिस तरह से इस बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव के लिए पार्टी की तरफ से कवायद की जा रही है, उससे यह तो साफ है कि वह परिवारवाद के आरोपों को निराधार साबित करना चाहती है। क्योंकि पिछले 8 साल में भाजपा के लिए कांग्रेस पर हमला करने का यह सबसे बड़ा हथियार बन चुका है। और अगर कोई गांधी परिवार से अलग पार्टी अध्यक्ष बनता है तो कांग्रेस के लिए 2024 के लोक सभा और इस बीच 12 राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव में परिवारवाद पर हमले से बचने का हथियार मिल जाएगा। साथ ही अगर शशि थरूर, मनीष तिवारी जैसे नेता अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ते हैं। तो शीर्ष नेतृत्व यह दावा कर सकेगा कि पार्टी में लोकतंत्र मजबूत है और निष्पक्ष चुनाव होते हैं। क्योंकि थरूर और मनीष तिवारी निष्पक्षता पर सवाल उठा चुके हैं।
साल 2000 के चुनाव में लगे थे धांधली के आरोप
साल 2000 का चुनाव सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच हुआ था। इन चुनावों में सोनिया गांधी को 7774 वोट मिले थे, जबकि जितेंद्र प्रसाद को केवल 94 वोट मिले थे। इसके बाद जितेंद्र प्रसाद गुट ने धांधली का आरोप लगाया था। उसका कहना था कि डेलीगेट के लिस्ट में फर्जी वोटरों को शामिल किया गया था। और उनकी लिस्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई थी। जिससे वह अपने समर्थन के लिए उनसे सहयोग मांग सकें।