जयपुर : भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण ने शनिवार को कहा कि राजनीतिक विरोध का शत्रुता में बदलना स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि कभी सरकार और विपक्ष के बीच जो आपसी सम्मान हुआ करता था वह अब कम हो रहा है। न्यायमूर्ति रमण राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की राजस्थान शाखा के तत्वावधान में 'संसदीय लोकतंत्र के 75 वर्ष' विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि राजनीतिक विरोध, बैर में नहीं बदलना चाहिए, जैसा हम इन दिनों दुखद रूप से देख रहे हैं। ये स्वस्थ लोकतंत्र के संकेत नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार और विपक्ष के बीच आपसी आदर-भाव हुआ करता था। दुर्भाग्य से विपक्ष के लिए जगह कम होती जा रही है।
उन्होंने विधायी प्रदर्शन (परफारमेंस) की गुणवत्ता में गिरावट पर भी चिंता जताई। न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि दुख की बात है कि देश विधायी प्रदर्शन की गुणवत्ता में गिरावट देख रहा है। उन्होंने कहा कि कानूनों को व्यापक विचार-विमर्श और जांच के बिना पारित किया जा रहा है।
साथ ही भारत के चीफ जस्टिस ने देश में विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या पर चिंता जताते हुए कहा कि यह आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित कर रही है। उन्होंने कहा कि उन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाना होगा जिनके कारण लोगों को बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है।
न्यायमूर्ति रमण ने शनिवार को यहां एक कार्यक्रम में कहा कि देश के 6.10 लाख कैदियों में से करीब 80 प्रतिशत विचाराधीन बंदी हैं। उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ''एक सजा'' है। उन्होंने जेलों को "ब्लैक बॉक्स" बताते हुए कहा कि जेलों का विभिन्न श्रेणियों के कैदियों पर अलग-अलग प्रभाव होता है, विशेष रूप से वंचत समुदायों से ताल्लुक रखने वाले बंदियों पर।
उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सजा है। भेदभावपूर्ण गिरफ्तारी से लेकर जमानत पाने तक और विचाराधीन बंदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। जयपुर में 18वें अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासनिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए हमें समग्र कार्य योजना की जरूरत है।
न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि बिना किसी मुकदमे के लंबे समय से जेल में बंद कैदियों की संख्या पर ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि, उन्होंने कहा कि लक्ष्य विचाराधीन कैदियों की जल्द रिहाई को सक्षम करने तक सीमित नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके बजाय, हमें उन प्रक्रियाओं पर सवाल उठाना चाहिए जो बिना किसी मुकदमे के बड़ी संख्या में लंबे समय तक कैद की ओर ले जाती हैं। उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए पुलिस को प्रशिक्षण देना होगा, उसे संवेदनशील बनाना होगा और वर्तमान व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना होगा। उन्होंने कहा, "हम कितनी अच्छी मदद कर सकते हैं यह तय करने के लिए नालसा को उपरोक्त मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति ने कहा कि लोक अदालतों से लेकर मध्यस्थता तक, नालसा की सेवाओं का उपयोग करके छोटे-मोटे विवादों, पारिवारिक विवादों का निपटारा वैकल्पिक तरीकों से किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि न्याय चाहने वालों को अपने विवादों का सस्ता और शीघ्र समाधान मिल सकता। इससे अदालतों पर बोझ भी कम होगा। कार्यक्रम में उन्होंने नालसा एलएसीएमएस पोर्टल, मोबाइल ऐप और ई-प्रिजन पहल का भी उद्घाटन किया।
न्यायामूर्ति रमण ने कहा कि नया विधि सहायता मामला प्रबंधन पोर्टल और मोबाइल ऐप, विधि सहायता लाभार्थी के लिए बहुत मददगार होगा, क्योंकि विधि सहायता वकील के साथ मंच साझा करेंगे। उन्होंने कहा, "यह ऐप न केवल केस प्रबंधन की दक्षता में वृद्धि करेगा बल्कि मामले से निपटने के लिए जवाबदेही और पारदर्शिता भी लाएगा।"
ई-प्रिजन पोर्टल के बारे में उन्होंने कहा कि यह कैदियों के हितों को ध्यान में रखते हुए पारदर्शिता और समीचीनता की दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि देश की 1378 जेलों में 6.1 लाख कैदी हैं और वे हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्गों में से एक हैं। उन्होंने कहा कि जेल ब्लैक बॉक्स हैं। कैदी अक्सर अनदेखे, अनसुने नागरिक होते हैं।
उन्होंने कहा कि किसी भी आधुनिक लोकतंत्र को "कानून के शासन" के पालन से अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या समानता के विचार के बिना कानून का शासन कायम रह सकता है? आधुनिक भारत का विचार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करने के वादे के इर्द-गिर्द बनाया गया था।