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पुत्ती था असल नाम, स्कूल के लिए थी कभी एक ही फ्रॉक, नॉन-वेज छोड़ अब नहीं चखती लहसुन-प्याज...ऐसी है 'शिवभक्त' द्रौपदी मुर्मू की अनसुनी दास्तां

अभिषेक गुप्ता | Principal Correspondent
Updated Jul 25, 2022 | 12:53 IST

उपरबेड़ा गांव में मुर्मू के उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक बासुदेव बेहरा ने बताया, ‘‘द्रौपदी के पिता बिरंच टुडू उपरबेड़ा गांव के प्रधान थे और परिवार गरीबी से जूझ रहा था। वह एक फ्रॉक में स्कूल आती थीं और उनके पास ज्योमेट्री बॉक्स नहीं होता था। स्कूल ने उन्हें ज्योमेट्री बॉक्स प्रदान किया था।’’

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य लोगों का अभिवादन स्वीकारती द्रौपदी मुर्मू। (फोटोः @narendramodi)
मुख्य बातें
  • द्रौपदी मुर्मू बन गईं देश की 15वीं राष्ट्रपति, CJI एन. वी. रमण ने दिलाई शपथ
  • बोलीं- मैं देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति भी हूँ जिसका जन्म आज़ाद भारत में हुआ
  • सियासत में नहीं चाहती थीं आना, पति बोले थे- हम छोटे लोग, टीचर बनीं यही बहुत


द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गई हैं। सोमवार (25 जुलाई, 2022) को संसद के सेंट्रल हॉल में उन्होंने पद और गोपनीयता की शपथ ली। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एन. वी. रमण उन्हें शपथ दिलायी। वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं। आइए जानते हैं, उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी और रोचक बातें: 

मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ। पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और पिता दोनों ही गांव के प्रधान रहे। वह मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा के स्कूल से पढ़ीं। श्याम चरण मुर्मू से उनकी शादी हुई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनका प्रेम विवाह हुआ था। श्याम शादी का प्रस्ताव लेकर उनके पास पहुंचे थे,  जबकि उन्हें दहेज में गाय, बैल और 16 जोड़ी कपड़े मिले थे। 

पति और दो बेटों के निधन के बाद मुर्मू ने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा हासिल करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी बेटी शादीशुदा हैं और वह भुवनेश्वर में रहती हैं। मुर्मू ने एक टीचर के तौर पर व्यावसायिक जीवन शुरू किया और फिर धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा। रोचक बात है कि वह सियासत में नहीं आना चाहती थीं। पति तो यही कहा करते थे कि हम छोटे लोग हैं। पत्नी टीचर बन गईं, यही बहुत है।

साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उनके राष्ट्रपति बनने पर दुनियाभर के नेताओं ने इसे भारतीय लोकतंत्र की जीत करार दिया है। द्रौपदी मुर्मू के भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने के भले कितने भी राजनीतिक अर्थ लगाए जाएं लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि यह जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश के लोकतांत्रिक सफर में एक खूबसूरत पड़ाव है।

सावन और सोमवार से भी उनका बड़ा ही रोचक कनेक्शन है। दरअसल, सावन के पहले सोमवार को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट पड़े थे, जबकि दूसरे सोमवार को उन्होंने शपथ ली और आधिकारिक तौर पर देश की नई राष्ट्रपति बनीं। वह बाबा शिव की भक्त बताई जाती हैं। कहा जाता है कि जब घर में त्रासदी का पहाड़ उन पर टूट पड़ा था, तब वह अध्यात्म के रास्ते पर चलते हुए आगे बढ़ी थीं। ग्रामीणों के हवाले से कुछ खबरों में कहा गया कि वह शिव बाबा का ध्यान नहीं छोड़ सकती हैं। हालांकि, उनके कमरे में शिव की कोई तस्वीर या मूर्ति नहीं है। वह उन्हें निरंकार रूप में मानती हैं।

मुर्मू कभी नॉन वेज खाया करती थीं, पर प्याज-लहसुन तक नहीं चखतीं। अब वह पखाल (पानी का भात) और सजना (सहजन का साग) का स्वाद लेंगी। घर से जुड़े लोगों के मुताबिक, वह नाश्ते में ड्राय फ्रूट्स, लंच में चावल, सब्जी और रोटी के बाद डिनर में हल्दी वाला दूध पीना पसंद करती हैं। बेबाक और धाकड़ अंदाज वाली मुर्मू को बचपन में प्यार-दुलार में पुत्ती कहा जाता था, पर उनके एक मास्टर ने इसे बदलकर द्रौपदी कर दिया था। (एजेंसी इनपुट्स के साथ) 

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