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पर्यावरण आज की समस्या है कल की नहीं:  सद्गुरु  

Updated Apr 14, 2020 | 15:01 IST

पर्यावरण एक कल का मुद्दा अब और नहीं रह गया है कि अगली पीढ़ी कष्ट सहेगी। यह आज का मुद्दा है। अभी, दुनिया की 95 प्रतिशत आबादी में उनके चारों ओर बढ़ रही पर्यावरण से जुड़ी आपदा के बारे में बिलकुल भी जागरूकता नहीं है।

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कावेरी पुकारे कावेरी नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान है।
मुख्य बातें
  • नदी घाटी की 25 प्रतिशत जमीन को जो सरकार के कब्जे में है, जंगल में बदल देना चाहिए
  • नदी घाटी का पर्यावरण जमीन के मालिक के लिए बहुत लाभदायक हो सकता है
  • पर्यावरण एक कल का मुद्दा अब और नहीं रह गया है कि अगली पीढ़ी कष्ट सहेगी

सद्गुरुः भारत की नदियों में पानी कुछ ही दशकों में नाटकीय रूप से कम हो गया है। कुछ नदियां और झरने पूरी तरह से सूख गए हैं। सौभाग्य से, हमारी नदियां ज्यादातर जंगलों से पोषित हैं, हिमनद से नहीं - जब हमारा मन चाहे, हम हिमपात नहीं करा सकते, लेकिन हम जंगलों में वनस्पतियों को पुनः कायम कर सकते हैं। 

पेड़ों, मिट्टी और नदियों का संबंध

भारत में वर्षा औसतन पैंतालीस दिन होती है। उन पैंतालीस दिनों में जो भी पानी गिरता है, उसे हमें धरती में 365 दिन तक रोककर रखना होता है और धीरे-धीरे नदियों और दूसरे जलाशयों में रिसकर जाने देना होता है। आप धरती में पानी सिर्फ तभी रोककर रख सकते हैं अगर मिट्टी में जरूरी जैविक तत्व हों। आम तौर पर, यह समझा जाता है कि किसी मिट्टी को मिट्टी कहने के लिए उसमें कम से कम दो प्रतिशत जैविक तत्व होने चाहिए, लेकिन आज भारत की लगभग पच्चीस प्रतिशत जमीन में जैविक तत्व बस 0.05 प्रतिशत ही बचा है। इसका मतलब है कि हम समृद्ध मिट्टी को बहुत तेजी से रेत और रेगिस्तान में बदल रहे हैं। आज, अगर आप भारत के ऊपर से उड़ते हैं, तो आप अधिकतर भूरी, बंजर जमीन और बहुत कम हरे-भरे इलाके देखेंगे। 

तो हम जैविक तत्व को वापस कैसे डालें? यह कहां से आता है? इसके लिए एकमात्र स्रोत पशुओं का गोबर और पेड़ों के पत्ते हैं। क्या इसका मतलब है कि हमें हर जगह जंगल वापस लाने होंगे? यह संभव नहीं है, लेकिन हमने एक आसान समाधन का प्रस्ताव रखा है कि नदी घाटी की 25 प्रतिशत जमीन को, जो सरकार के कब्जे में है, जंगल में बदल देना चाहिए - सिवाय उनके जिन्हें अगले पचास सालों में विकास के लिए निर्धारित किया गया है। बाकी जमीन खेती की जमीन है। यहां पर, एकमात्र तरीका कृषिवानिकी या पेड़ों पर आधारित खेती का है। 

कावेरी पुकारे - उष्णकटिबंधीय दुनिया के लिए परिवर्तन लाने वाला अभियान

अगर हम किसानों को पेड़ों पर आधारित खेती के लिए प्रोत्साहित कर सकें, तो पेड़ों से जैविक तत्व, और खेतों के पशुओं का गोबर नदियों और मिट्टी को पुनर्जीवित देगा। गरीब किसानों के लिए भी यह एक बहुत लाभदायक उद्यम होगा। इसलिए, यह पर्यावरण बनाम अर्थव्यवस्था नहीं है; नदी घाटी का पर्यावरण जमीन के मालिक के लिए बहुत लाभदायक हो सकता है। यही हमारे कावेरी पुकारे अभियान का सार है।

कावेरी पुकारे कावेरी नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान 

कावेरी पुकारे कावेरी नदी को पुनर्जीवित करने का अभियान है। इस नदी में पानी खतरनाक ढंग से 40 प्रतिशत से अधिक कम हो गया है। हम किसानों को कृषिवानिकी की ओर ले जा रहे हैं और कावेरी नदी घाटी में 2.42 अरब पेड़ लगा रहे हैं। यह एक तिहाई घाटी को पेड़ों से ढंक देगा और नदी में बहाव बढ़ जाएगा। पेड़ लगाने के साथ-साथ बीच में दूसरी फसल उगाने के इस तरीके से किसानों के लिए कई लाभ हैं, जिनमें मिट्टी की उर्वरता में सुधार, फसल की बेहतर उपज, और जमीन में पानी का स्तर बढ़ना शामिल हैं। लेकिन सबसे बढ़कर, फल, लकड़ी और पेड़ के दूसरे उत्पादों के बिकने से किसान की आय कई गुना बढ़ जाती है। तमिलनाडु में, हमने 69,760 किसानों को पेड़ आधारित खेती में लगाया है और पांच से सात सालों में उनकी आय 3 से 8 गुना बढ़ गई है। एक बार जब हम इसे लाभदायक सिद्ध कर देते हैं, और यह कावेरी घाटी में बड़े पैमाने पर लागू करने योग्य है, तो इसे स्वाभाविक रूप से दूसरी नदियों के लिए दोहराया जा सकता है। यह सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि उष्णकटिबंधीय दुनिया के लिए भी परिवर्तन लाने वाला अभियान है। 

एक जागरूक पृथ्वी - दुनिया के लिए समाधान लाना

पर्यावरण एक कल का मुद्दा अब और नहीं रह गया है कि अगली पीढ़ी कष्ट सहेगी। यह आज का मुद्दा है। अभी, दुनिया की 95 प्रतिशत आबादी में उनके चारों ओर बढ़ रही पर्यावरण से जुड़ी आपदा के बारे में बिलकुल भी जागरूकता नहीं है। पर्यावरण के प्रति जागरूकता लोगों के सिर्फ एक छोटे से वर्ग में सीमित है, और उनमें भी, पर्यावरण की सोच अधिकतर, नहाते वक्त कम पानी इस्तेमाल करने, और दांत ब्रश करते वक्त नल बंद करने तक ही सीमित है। यह शानदार बात है कि लोग इस बारे में जागरूक हैं कि वे क्या इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन यह पर्यावरण के लिए एक व्यापक समाधान नहीं है। लोगों को, धन को, और राजनीतिक वर्ग को जुटाना सर्वोपरि है। 

मैं संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं और दूसरी ताकतों के साथ काम कर रहा हूं, और एक ‘जागरूक पृथ्वी’ के इस विचार को प्रस्तुत कर रहा हूं। 5.2 अरब लोग ऐसे देशों में रह रहे हैं जो वोट कर सकते हैं और अपने देश के नेतृत्व को चुन सकते हैं। इनमें से, हम कम से कम तीन अरब लोगों को यह सुनिश्चित करने के लिए जगाना चाहते हैं कि दुनिया में अब पर्यावरण के मुद्दे सरकारों को चुनें। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ऐसा होने की जरूरत है - भूमध्यरेखीय, उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय, और समशीतोष्ण क्षेत्र। हम इसे सरलता के इस स्तर पर लाना चाहते हैंः उनको जानना चाहिए कि पर्यावरण से जुड़ी कौन सी पांच चीजें उनके देश में जरूर होनी चाहिए, और दो या तीन चीजें जो कभी नहीं होनी चाहिए। अगर हम यह करते हैं, तब चुनाव घोषणपत्र में पर्यावरण, अगर पहला नहीं, तो कम से कम दूसरे नंबर का मुद्दा बन जाएगा। जब पर्यावरण चुनाव का एक मुद्दा बनता है, सिर्फ तभी यह सरकार की नीति तय करेगा, और सिर्फ तभी इसके लिए ज्यादा बड़ा बजट रखा जाएगा, ताकि समाधन निकलें। 

इस धरती को समृद्ध और उपजाऊ और पर्याप्त पानी के साथ छोड़कर जाने के लिए हम अपने बच्चों के प्रति देनदार हैं। लोगों की एक पीढ़ी के रूप में, हमारे पास अपने गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होते पर्यावरण को पुनःस्थापित करने की जिम्मेदारी और मौका है। जिस भी तरीके से आप कर सकें, आप इसका एक हिस्सा बनिए। भारत में पचास सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।

 (सदगुरु श्री जग्गी वासुदेव देश के विख्यात आध्यात्मिक गुरु हैं))
 

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